- कर्मयोग की क्रियात्मक साधना🌿
देखिये, जैसे पहिया चलता है, किन्तु धुरी स्थिर रहती है, वैसे ही मन को भगवान् में स्थिर रखिये एवं शरीरेन्द्रिय से कर्म करते रहिये ।
यदि कोई यह कहे कि ईश्वर से प्रेम बढ़ जायगा तो कर्म गड़बड़ होने लगेगा, तो प्रथम तो ऐसा कम होगा और यदि हो भी तो उसकी परवाह न करो । अन्ततोगत्वा कर्म छूट भी जाय तो तुम उस जिम्मेदारी से मुक्त हो । जान-बूझकर कर्म छोड़ देना एवं ईश्वर-प्रेम भी न करना अनुचित है, वह दण्ड का भागी होगा ।
इस प्रकार गृहस्थादि के कार्य करते हुए मन को ईश्वर में लगाते हुए कर्मयोग का क्रियात्मक पालन करना चाहिये । प्रथम अभ्यास करना पड़ेगा, पश्चात् अपने आप होने लगेगा । पहले जब साइकिल चलाना सीखते हो तो कठिनाई महसूस होती है, पश्चात् अभ्यास हो जाने पर हाथ पैर से काम होता रहता है और आप बात भी करते रहते हैं । ऐसे ही थोड़ा अभ्यास करने पर स्वयं होने लगेगा ।
अस्तु, कुछ समय का नियम बनाकर प्रतिदिन श्यामसुन्दर का स्मरण करते हुए रोकर उनके नाम-गुण-लीलादि का संकीर्तन एवं स्मरण करो, यह कर्म-सन्यास की साधना है, एवं शेष समय में संसार का सम्पूर्ण आवश्यक कार्य करते हुए बार-बार यह महसूस करो कि श्यामसुन्दर हमारे प्रत्येक कार्य को देख रहे हैं और उन्हें आप दिखा-दिखाकर कर्म कर रहे हैं । इस प्रकार कर्म भी न्यायपूर्ण होगा एवं थकावट भी न होगी तथा अभ्यास परिपक्व होगा । एक बार करके देखिये । बस इससे अधिक मुझे कुछ नहीं कहना है ।
इस प्रकार जब रोकर आँसू बहाये जायेंगे, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु ईश्वरीय नियमानुसार दिव्य-प्रेमदान करेगा, तब ईश्वर-प्राप्ति होगी एवं तुम्हारा परम चरम लक्ष्य प्राप्त होगा । किन्तु, यह सब होते हुए भी एक बात सबसे अधिक विचारणीय है, वह है कुसंग से बचना । अन्यथा, जैसे एक सूरदास रस्सी बट रहा है; ५० फुट रस्सी बटने के पश्चात् जब पीछे की और देखा तो रस्सी एक ही फुट मिली, सब रस्सी भैंस खा गई, वैसी ही स्तिथि होगी ।
सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
आज के इस अशान्त तथा भौतिकतावादी वातावरण में जो भी साधक ध्यान करते हैं वे विश्व का कल्याण करते हैं क्योंकि "जो पिंडे सो ब्रह्माण्डे''। जब-जब एक भी चित्त शान्त होता है, तो शान्ति से पूर्ण तरंगे ब्रह्माण्ड में भी शान्ति का संचार करती हैं।
ऐसे ही यदि अधिक से अधिक लोग ध्यान करें तो जगत में शान्ति स्थापित करने में ये बहुत बड़ा योगदान होगा, क्यूँकि हमारे भीतर की प्रकृति ही बाहर की प्रकृति को निर्धारित करती है। आज के युग में सबसे अधिक जिस वस्तु की आवश्यकता है वह है-शान्ति। तो क्यूँ न हम सब प्रभु के दिए जीवन में से थोड़ा-थोड़ा समय ध्यान के लिए लगाकर स्वयं को तथा विश्व को शान्ति देने का महान कार्य करें?
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spiritual desires when you want, where you want (Completely free of charge)
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and meditation.
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