♧ पापा। पापा मुझे मेंहदी लगवा दो न ♧
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मुझे मेंहदी लगवानी है
"पंद्रह साल की चुटकी बाज़ार में
बैठी मेंहदी वाली को देखते ही
मचल गयी...
"कैसे लगाती हो मेंहदी "
विनय नें सवाल किया...
"एक हाथ के पचास दो के सौ ...?
मेंहदी वाली ने जवाब दिया.
विनय को मालूम नहीं था मेंहदी
लगवाना इतना मँहगा हो गया है.
"नहीं भई एक हाथ के बीस लो
वरना हमें नहीं लगवानी."
यह सुनकर चुटकी नें मुँह फुला लिया.
"अरे अब चलो भी ,
नहीं लगवानी इतनी मँहगी मेंहदी"
विनय के माथे पर लकीरें उभर आयीं .
"अरे लगवाने दो ना साहब..
अभी आपके घर में है तो
आपसे लाड़ भी कर सकती है...
कल को पराये घर चली गयी तो
पता नहीं ऐसे मचल पायेगी या नहीं.
तब आप भी तरसोगे बिटिया की
फरमाइश पूरी करनेको...
मेंहदी वाली के शब्द थे तो चुभने
वाले पर उन्हें सुनकर विनय को
अपनी बड़ी बेटी की याद आ गयी..?
जिसकी शादी उसने तीन साल पहले
एक खाते -पीते पढ़े लिखे परिवार में की थी.
उन्होंने पहले साल से ही उसे छोटी
छोटी बातों पर सताना शुरू कर दिया था.
दो साल तक वह मुट्ठी भरभर के
रुपये उनके मुँह में ठूँसता रहा पर
उनका पेट बढ़ता ही चला गया
और अंत में एक दिन सीढियों से
गिर कर बेटी की मौत की खबर
ही मायके पहुँची.
आज वह छटपटाता है
कि उसकी वह बेटी फिर से
उसके पास लौट आये..?
और वह चुन चुन कर उसकी
सारी अधूरी इच्छाएँ पूरी कर दे...
पर वह अच्छी तरह जानता है
कि अब यह असंभव है.
"लगा दूँ बाबूजी...?,
एक हाथ में ही सही "
मेंहदी वाली की आवाज से
विनय की तंद्रा टूटी...
"हाँ हाँ लगा दो.
एक हाथ में नहीं दोनों हाथों में.
और हाँ, इससे भी अच्छी वाली हो
तो वो लगाना."
विनय ने डबडबायी आँखें
पोंछते हुए कहा
और बिटिया को आगे कर दिया.
जब तक बेटी हमारे घर है
उनकी हर इच्छा जरूर पूरी करे,
क्या पता आगे कोई इच्छा
पूरी हो पाये या ना हो पाये ।
ये बेटियां भी कितनी अजीब होती हैं
जब ससुराल में होती हैं
तब माइके जाने को तरसती हैं।
सोचती हैं
कि घर जाकर माँ को ये बताऊँगी
पापा से ये मांगूंगी बहिन से ये कहूँगी
भाई को सबक सिखाऊंगी
और मौज मस्ती करुँगी।
लेकिन
जब सच में मयके जाती हैं तो
एकदम शांत हो जाती है
किसीसे कुछ भी नहीं बोलती
बस माँ बाप भाई बहन से गले मिलती है।
बहुत बहुत खुश होती है।
भूल जाती है
कुछ पल के लिए पति ससुराल।
क्योंकि
एक अनोखा प्यार होता है मायके में
एक अजीब कशिश होती है मायके में।
ससुराल में कितना भी प्यार मिले
माँ बाप की एक मुस्कान को
तरसती है ये बेटियां।
ससुराल में कितना भी रोएँ
पर मायके में एक भी आंसूं नहीं
बहाती ये बेटियां
क्योंकि
बेटियों का सिर्फ एक ही आंसू माँ
बाप भाई बहन को हिला देता है
रुला देता है।
कितनी अजीब है ये बेटियां
कितनी नटखट है ये बेटियां
खुदा की अनमोल देंन हैं
ये बेटियां हो सके तो
बेटियों को बहुत प्यार दें
उन्हें कभी भी न रुलाये
क्योंकि ये अनमोल बेटी दो
परिवार जोड़ती है
दो रिश्तों को साथ लाती है।
अपने प्यार और मुस्कान से।
हम चाहते हैं कि
सभी बेटियां खुश रहें
हमेशा भले ही हो वो
मायके में या ससुराल में।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
आज के इस अशान्त तथा भौतिकतावादी वातावरण में जो भी साधक ध्यान करते हैं वे विश्व का कल्याण करते हैं क्योंकि "जो पिंडे सो ब्रह्माण्डे''। जब-जब एक भी चित्त शान्त होता है, तो शान्ति से पूर्ण तरंगे ब्रह्माण्ड में भी शान्ति का संचार करती हैं।
ऐसे ही यदि अधिक से अधिक लोग ध्यान करें तो जगत में शान्ति स्थापित करने में ये बहुत बड़ा योगदान होगा, क्यूँकि हमारे भीतर की प्रकृति ही बाहर की प्रकृति को निर्धारित करती है। आज के युग में सबसे अधिक जिस वस्तु की आवश्यकता है वह है-शान्ति। तो क्यूँ न हम सब प्रभु के दिए जीवन में से थोड़ा-थोड़ा समय ध्यान के लिए लगाकर स्वयं को तथा विश्व को शान्ति देने का महान कार्य करें?
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spiritual desires when you want, where you want (Completely free of charge)
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and meditation.
Thank You for having patience and
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