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मन जब तक निर्विचार नही होता तब: New Inspirational Story in Hindi with moral




मन जब तक निर्विचार नही होता तब तक अशांत रहता है
मन जब तक विचारों से लड़ता है, विचारों को जकड़े रहता है तथा इससे और उसी प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं और परिणाम मे और भी अशांत हो उठता है
ध्यान है मन का विचारों से ना लड़ना
ध्यान है मन का विचारों को ढीला छोड़ देना और तब धीरे धीरे विचारों की आवाजाही कम हो जाती है तथा मन शांत होने लगता है
और तब मात्र चेतना का बोध रह जाता है
मन शून्य हो जाता है, मन शांत हो जाता है
इस शांत, निर्विचार अवस्था को ही ध्यान कहते हैं

दुःख संसार के प्रति अत्यधिक गंभीर होने के कारण होता है,संसार को गंभीरता से लेने के कारण होता है और इसी वजह से व्यक्ति परमात्मचिंतन से भी विमुख रहता है और जीवन में परमानन्द की बातें उसे भ्रांत लगती हैं।
यदि तुमने परमात्मा को गंभीरता से लिया है तो तुम संसार को कभी भी गंभीरता से नहीं लोगे
क्यूंकि तब व्यक्ति भलीभांति जान जाता है कि समय या तो वो चिंता में व्यतीत कर सकता है या चिंतन में

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व्यक्ति के सकारात्मक होने मे सबसे बड़ी बाधा उसका स्वयं का अहंकार है जो व्यक्ति को उसकी नकारात्मकता का बोध ही नही होने देता


Moral


पत्थर सदैव हथौड़े की अन्तिम चोट से टूटता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उससे पहले की सभी चोटें बेकार गई।हमेशा यह ध्यान रहे किे.....सफलता निरन्तर प्रयासों का परिणाम है... चलते रहिये....आगे बढ़ते रहिए।...




सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जोयोगसूत्रके नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।


आज के इस अशान्त तथा भौतिकतावादी वातावरण में जो भी साधक ध्यान करते हैं वे विश्व का कल्याण करते हैं क्योंकि "जो पिंडे सो ब्रह्माण्डे'' जब-जब एक भी चित्त शान्त होता है, तो शान्ति से पूर्ण तरंगे ब्रह्माण्ड में भी शान्ति का संचार करती हैं।
ऐसे ही यदि अधिक से अधिक लोग ध्यान करें तो जगत में शान्ति स्थापित करने में ये बहुत बड़ा योगदान होगा, क्यूँकि हमारे भीतर की प्रकृति ही बाहर की प्रकृति को निर्धारित करती है। आज के युग में सबसे अधिक जिस वस्तु की आवश्यकता है वह है-शान्ति। तो क्यूँ हम सब प्रभु के दिए जीवन में से थोड़ा-थोड़ा समय ध्यान के लिए लगाकर स्वयं को तथा विश्व को शान्ति देने का महान कार्य करें?



Do it yourself to fulfil your spiritual desires when you want, where you want (Completely free of charge)


Please forward this message, might be useful for needy person. This is useful for those who really want to do Yoga and meditation.


Thank You for having patience and reading this. 

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