वेदांत दर्शन क्या है?
ऋषियो ने क्यो कहा है 'सिद्धयोग' को महायोग?
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सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
गुण और उनका प्रभाव क्या है
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वैदिक धर्मशास्त्र ब्रह्म के द्वैतवाद को स्वीकार करते हैं जिसमें एक ओर वह आकार रहित, असीमित, शास्वत तथा अपरिवर्तनशील, अतिमानस चेतना है तो दूसरी ओर उसका चेतनायुक्त दृश्यमान तथा नित्य परिवर्तनशील भौतिक जगत है। यह चेतना भौतिक जगत के सभी सजीव तथा निर्जीव पदार्थों पर, जो तीन गुणों के मेल से बने हैं, अपना प्रभाव डालती है। सात्विक (प्रकाशित, पवित्र, बुद्धिमान व धनात्मक) राजस (आवेशयुक्त तथा ऊर्जावान) और तामस (ऋणात्मक, अंधकारमय, सुस्त तथा आलसी)।
सत्व संतुलन की शक्ति है। सत्व के गुण अच्छाई, अनुरूपता, प्रसन्नता तथा हल्कापन हैं। राजस गति की शक्ति है। राजस के गुण संघर्ष तथा प्रयास, जोश या क्रोध की प्रबल भावना व कार्य हैं। तमस निष्क्रियता तथा अविवेक की शक्ति है। तमस के गुण अस्पष्टता, अयोग्यता तथा आलस्य हैं।
मनुष्यों सहित सभी जीवधारियों में यह गुण पाये जाते हैं। फिर भी ऐसे विशेष स्वभाव का एक भी नहीं है जिसमें इन तीन लौकिक शक्तिओं में से मात्र एक ही हो। सब जगह सभी में यह तीनों ही गुण होते ह लगातार तीनों ही गुण कम ज्यादा होते रहते हैं यह निरन्तर एक दूसरे पर प्रभावी होने के लिये प्रयत्नशील रहते हैं। यही वजह है कि कोई व्यक्ति सदैव अच्छा या बुरा, बुद्धिमान या मूर्ख, क्रियाशील या आलसी नहीं होता है।
जब किसी व्यक्ति में सतोगुणी वृत्ति प्रधान होती है तो अधिक चेतना की ओर उसे आगे बढाती है जिससे वह अतिमानसिक चेतना की ओर, जहाँ उसका उद्गम था, वापस लौट सके और अपने आपको कर्मबन्धनों से मुक्त कर सके। राजसिक या तामसिक वृत्ति प्रधान व्यक्ति सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु के समाप्त न होने वाले चक्र में फँसता है। सिद्धयोग की साधना, सात्विक गुणों का उत्थान करके अन्ततः मोक्ष तक पहुँचाती है जो अन्तिम रूप से आध्यात्मिक मुक्ति है।
वृत्तियाँ क्या हैं?
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प्रत्येक मनुष्य में तीन वृत्तियाँ होती हैं। इन वृत्तियों के अनुसार ही, समग्र रूप से, मनुष्य का व्यवहार होता है। यह वृत्तियाँ, सत्व, रजस और तमस गुणों से प्रभावित होती है। गीता तथा योग सूत्र के अनुसार इनमें से प्रत्येक गुण सिद्धयोग की साधना से उभारा या दबाया जा सकता है। महाकाव्य महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि राजस तथा तामस वृत्तियों को दबाने तथा सात्विक वृत्तियों के उत्थान में, ध्यान मदद करता है जिससे व्यक्ति स्थायी स्वास्थ्य, सच्चा उच्च ज्ञान एवं आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकता है। वैदिक धर्म शास्त्रों के अनुसार केवल एक समर्थ सिद्ध गुरू ही परमार्थवाद संबंधी उद्देश्य वाले साधक को योग में दीर्क्षत करके उसकी वृत्तियों में धनात्मक परिवर्तन ला सकता है। चकि सतोगुण एक संतुलनकारी शक्ति है जो सत्य ज्ञान की मार्गदर्शक है, बडे स्तर पर इसकी अभिवृद्धि सम्पूर्ण मानवता का रूपान्तरण कर उसे लडाई-झगडों से मुक्त कर सकती है तथा विश्व में शान्ति एवं एकता ला सकती है।
वृत्ति परिवर्तन व बुरी आदतों का छूटना
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इसी प्रकार निरन्तर नाम जप व ध्यान से वृत्ति परिवर्तन भी होता है। मनुष्य में मूलतः तीन वृत्तियाँ होती हैं। सतोगुणी, रजोगुणी एवं तमोगुणी। मनुष्य में जो वृत्ति प्रधान होती है उसी के अनुरूप उस का खानपान एवं व्यवहार होता है। निरन्तर नाम जप के कारण सबसे पहले तमोगुणी (तामसिक) वृत्तियाँ दबकर कमजोर पड जाती हैं बाकी दोनों वृत्तियाँ प्राकृतिक रूप से स्वतंत्र होने के कारण क्रमिक रूप से विकसित होती जाती हैं। कुछ दिनों में प्रकृति उन्हें इतना शक्तिशाली बना देती है कि फिर से तमोगुणी वृत्तियाँ पुनः स्थापित नहीं हो पाती हैं। अन्ततः मनुष्य की सतोगुणी प्रधानवृत्ति हो जाती है। ज्यों-ज्यों मनुष्य की वृत्ति बदलती जाती है दबने वाली वृत्ति के सभी गुणधर्म स्वतः ही समाप्त होते जाते हैं। वृत्ति बदलने से उस वृत्ति के खानपान से मनुष्य को आन्तरिक घृणा हो जाती है। इसलिये बिना किसी कष्ट के सभी प्रकार की बुरी आदतें अपने आप छूट जाती हैं। इस संबंध में स्वामी विवेकानन्द जी ने अमेरिका में कहा था “कि मनुष्य उन वस्तुओं को नहीं छोडता वे वस्तुऐं उसे छोडकर चली जाती हैं।”
यह परिवर्तन सम्पूर्ण मानव जाति में समान रूप से हो रहा है इसमें जाति भेद एवं धर्म परिवर्तन जैसी कोई समस्या नहीं है। इसमें साधक स्वयं के धर्म में रहता हुआ इस योग की साधना कर सकता है। मोक्ष का अर्थ है मनुष्य अपने जीवनकाल में ही पूर्णता प्राप्त कर ले, इस स्थिति पर पहुँचने पर साधक पूर्ण शान्ति अनुभव करता है। उसे किसी प्रकार का शारीरिक एवं मानसिक कष्ट नहीं रहता है।
शान्ति की तलाश
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इस युग का मानव भौतिक विज्ञान से शान्ति चाहता है परन्तु विज्ञान ज्यों-ज्यों विकसित होता जा रहा है, वैसे-वैसे शान्ति दूर भाग रही है और अशान्ति तेज गति से बढती जा रही है। क्योंकि शान्ति का सम्बन्ध अन्तरात्मा से है, अतः विश्व में पूर्ण शान्ति मात्र वैदिक मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर ही स्थापित हो सकती है। अन्य कोई पथ है ही नहीं। भारतीय योग दर्शन में वर्णित “सिद्धयोग” से विश्व शान्ति के रास्ते की सभी रुकावटों का समाधान सम्भव है।
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Guru Siyag Siddha Yoga The Way, Meaning, Means, and Method of
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An Introduction to खेचरी मुद्रा, शीर्षासन, संजीवनी मंत्र by Gurudev
"केवल भारतीय योग दर्शन है जो मनुष्य के पूर्ण विकास की बात करता है,और क्रियात्मक योग करवाता है" - Guru
Siyag
"जब कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है तो ऊपर उठना शुरू कर देती है,
इसमें पाँच प्रकार के वायु होते हैं प्राण,अपान,समान,उदान और व्याम...." -
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Siddha Yoga In Short: |
Anyone | of any religion, creed, color, country |
Anytime | morning, noon, evening, night |
Any duration | 5, 10, 12, 15, 30 minutes. For as much time as you like. |
Anywhere | office, hosme, bus, train |
Anyplace | on chair, bed, floor, sofa |
Any position | cross-legged, lying down, sitting on chair |
Any age | child, young, middle-aged, old |
Any disease | physical, mental and freedom from any kind of addiction |
Any stress | related to family, business, work |
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