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क्या होता है ध्यान? What is meditation : meditation benefits




दोस्तो हम केवल बॉडी रूपी यंत्रा नही हैं. अपितु बॉडी और माइंड के मिश्रण से बने भगवान की एक अद्भुत कृति है. लेकिन ना जाने क्यूं लोग केवल बॉडी के जरूरतो को पूरा करने मे ही लगे रहते हैं . लेकिन अगर हमे स्वस्थ जीवन जीना है तो क्या हमे तन और मन दोनो को ख्याल नही रखना चहहिए ? आज कल के भारी और प्रतियोगी वातावर्ण मे बॉडी और माइंड के बिच का तादात्मया कंही छट जा रहा है. लेकिन भगवान का शुक्र है की उन्हहोने ईसका भी उपया हमे प्रदान कर रखा है.आज की प्रॉब्लम्स का एक मात्रा उपय है ध्यान . आइये आज हम ध्यान के पहलूयो पर एक नजर डाले.

ध्यान क्या है?
आंखे बंद कर के किसी शक्ति/ हाइयर एनर्जी को देखना ही ध्यान कहलाता है.

ध्यान मे क्या होता है?
जैसा की सभी जानते ही होंगे की अगर एक खाली तलाव और एक पानी से बहरपुर तलाव हैं अगर दोनो के अपसा मे किसी नाले से जोड़ा जाये तो पानी वाले तलाव का पानी खाली पड़े तलाव के तरफ प्रवाहित होना शुरु हो जाता है. बिल्कुल यही होता है ध्यान मे. हम जिस भी शक्ति का ध्यान करते हैं, उससे सम्बंध जुड़ते ही उसकी शक्तिया , अच्छे गुण , हमारी तरफ आने लगती हैं और हम उनके जैसा बनाने लगते हैं.

ध्यान के फायदे
ध्यान के बहुविध लाभ हैं
  1. समस्त शारीरिक व्याधियों का पूर्णतया उपचार संभव हो जाता है|
  2. स्मरण शक्ति का विकास होता है|
  3. अनुपयोगी आदतें स्वयमेव समाप्त हो जाती हैं|
  4. मन सदैव शांत व प्रसन्न रहता है|
  5. हम सभी कार्य अधिक कुशलतापूर्वक कर पाते हैं|
  6. नींद के लिए कम समय की आवश्यकता पड़ती है|
  7. सम्बंधों में अधिक गुणवत्ता व तृप्ति का भाव आता है|
  8. विचार शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है|
  9. उचित अनुचित में भेद कर पाने की क्षमता बढ़ जाती है|
  10. जीवन का ध्येय बेहतर समझ आने लगता है|
स्वास्थ्य लाभ – समस्त शारीरिक व्याधियाँ मानसिक चिंताओं के फलस्वरूप जन्म लेती हैं सभी मानसिक चिंताएँ बौद्धिक अपरिपक्वता के कारण होती हैं| यह बौद्धिक अपरिपक्वता आध्यात्मिक – ऊर्जा व समझदारी की कमी के कारण पैदा होती है| रोग मूलतः हमारे पूर्वजन्मों के  ऋणात्मक अथवा नकारात्मक कर्मों के कारण पैदा होते हैं| जब तक नकारात्मक कर्म निष्प्रभाव नहीं हो जाते, यह रोग भी हमें छोड़ कर नहीं जाते, इन कर्मों के निराकरण के लिए कोई भी दवा काम नहीं करती|

ध्यान के द्वारा हम प्रचुर मात्रा में आध्यात्मिक ऊर्जा व समझदारी प्राप्त कर लेते हैं| तब हमारी बुद्धि भी परिपक्व होने लगती है| धीरे धीरे सभी मानसिक चिंताएँ समाप्त हो जाती हैं और सभी व्याधियाँ भी अदृश्य होने लगती हैं| ध्यान ही सभी रोगों के उपचार का एक मात्र उपाय है|

स्मरण शक्ति में बढ़ोतरी – ध्यान द्वारा प्राप्त प्रचुर आध्यात्मिक ऊर्जा हमारे मस्तिष्क को अधिक कुशलतापूर्वक काम करने में मदद करती है| हमारा मस्तिष्क अपनी अधिकतम क्षमता के साथ काम कर पाता है| ध्यान द्वारा स्मरण शक्ति में अतिशय वृद्धि होती है| अतएव विद्यार्थियों के लिए तो ध्यान बेहद ज़रूरी है – चाहे वे स्कूल में पढ़ते हों या यूनिवर्सिटी में|

अनुपयोगी आदतों का अंत - हम सभी में कोई न कोई बेकार आदत होती ही है जैसे आवश्यकता से अधिक खाना, सोना अथवा बातें करना, मदिरा पान करना आदि| ध्यान द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक ऊर्जा व समझदारी के कारण ये सभी बेकार की आदतें स्वाभाविक रूप से खुद ही मरण को प्राप्त हो जाती हैं|

आनंदयुक्त मन – जीवन में सभी को कभी न कभी पराजय, अपमान व पीड़ा का अनुभव होता ही है| आध्यात्मिक ऊर्जा व ज्ञान से समृद्ध व्यक्ति का जीवन हमेशा शान्तिमय व आनंदमय रहता है चाहे उसके जीवन में पराजय, अपमान व पीड़ा आती रहे|

कार्यकुशलता में बढ़ोतरी – अत्यधिक आध्यात्मिक ऊर्जा व भरपूर आध्यात्मिक ज्ञान होने के कारण व्यक्ति अपने सभी काम, चाहे वे शाररिक हों अथवा मानसिक, अधिक कार्य कुशलता व दक्षता के साथ कर पाता है|

नींद के लिए कम समय की आवश्यकता – ध्यान के द्वारा प्रचुर मात्रा में आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है जबकि नींद द्वारा हमें उसका एक छोटा सा अंश ही मिल पाता है| आधा घंटा यदि गहन ध्यान किया जाये तो उससे मिलनेवाली ऊर्जा छः घंटे की गहरी नींद से प्राप्त होने वाली ऊर्जा के बराबर होती है| इससे शरीर को उतना ही विश्राम व मन को उतनी ही शक्ति मिल जाती है|

गुणात्मक सम्बंध – आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता का अभाव ही ऐसा एक मात्र कारण है जिसके फलस्वरूप हमारे पारस्परिक सम्बंध इतने अधिक अपरिपूरित (unfulfilling) व गुणात्मकता रहित (uniqualitative) हो जाते हैं|

विचार शक्ति – विचारों को अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है| अशांत मन में उठे विचारों में शक्ति होती ही नहीं| इस लिए वे लक्ष्य तक पहुँच नहीं पाते| जिस समय मन शांत अवस्था में होता है, विचार भी शक्ति पा लेते हैं और हमारे सभी संकल्प तुरंत साकार हो जाते हैं|

उचित – अनुचित का विवेक – आध्यात्मिक रूप से परिपक्व व्यक्ति के जीवन में कभी दुविधा नहीं रहती, वह सदैव सही निर्णय ही लेता है|

किसका ध्यान करे?
ध्यान ह्यूम उसका ही करना चाहिये जो अध्यात्मिक रूप से परिपूर्णा हो , कोई शांत-महातमा एत्यादि लेकिन आज ए सबसे बड़ी प्राब्लम है की किस शांत पर भरोषा किया जाये?? सबको तो मई नही जनता,लेकिन एतना जनता हुईं की मेरे गुरु श्री रामलाल सियाग जी दुनिया के सर्वश्रेष्ठा गुरु हैं जिनसे अध्यात्मिकता जन्म लेती हैं.

गुरु सियाग की ध्यान पढहति के बारे मे जितना कहा जाये तो उतना कम है,गुरुदेव सियाग का सिद्धयोग, ये एक बहुत ही सरल ध्यान एवं जप पद्धति है | गुरु सियाग सिद्ध योग का उद्देश्य मानव को विकास की चोटी तक पहुँचाना और उसका दिव्य रूपांतरण करना है | नियमित ध्यान और नाम जपने से सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक बीमारियों से, तनाव से तथा सभी प्रकार के नशों से मुक्ति मिलती है | गुरु सियाग का सिद्ध योग पूर्णतः नि:शुल्क है |

आइये हम ध्यान की विधि के बारे मे जानेंगे जैसा की मैने अपने गुरु से सीखा है .
  1. सर्वप्रथम आरामदायक स्थिति में किसी भी दिशा की ओर मुँह करके बैठें।
  2. दो मिनट तक सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग के चित्र को खुली आँखों से ध्यानपूर्वक देखें।
  3. यदि आप किसी बीमारी, नशे या अन्य परेशानी से पीडत हैं, तो गुरुदेव से, उससे, मुक्ति दिलाने हेतु अन्तर्मन से करुण पुकार करें।
  4. मन ही मन १५ मिनट के लिये गुरुदेव से अपनी शरण में लेने हेतु प्रार्थना करें।
  5. उसके बाद आंखें बन्द करके आज्ञा चक्र (भोंहों के बीच) जह बिन्दी या तिलक लगाते हैं, वहाँ पर गुरुदेव के चित्र का स्मरण करें।
  6. इस दौरान मन ही मन गुरुदेव द्वारा दिए गए मंत्र का मानसिक जाप बिना जीभ या होठ हिलाये करें। (मंत्र प्राप्त करने के लिये लिंक “मंत्र कैसे प्राप्त करें” क्लिक करें) .
  7. ध्यान के दौरान शरीर को पूरी तरह से ढीला छोड दें, आँखें बन्द रखें, चित्र ध्यान में आये या न आये उसकी चिन्ता न करें। मन में आने वाले विचारों की चिन्ता न करते हुए मानसिक जाप करते रहें।
  8. ध्यान के दौरान कम्पन, झुकने, लेटने, रोने, हंसने, तेज रोशनी या रंग दिखाई देने या अन्य कोई आसन, बंध, मुद्रा या प्राणायाम की स्थिति बन सकती है, इससे घबरायें नहीं, इन्हें रोकने का प्रयास न करें। यह मातृशक्ति कुण्डलिनी शारीरिक रोगों को ठीक करने के लिये करवाती है।
  9. समय पूरा होने के बाद आप ध्यान की स्थिति से सामान्य स्थिति में आ जायेंगे।
योगिक क्रियायें या अनुभूतियां न होने पर भी इसे बन्द न करें। रोजाना सुबह-शाम  ध्यान करने से कुछ ही दिन बाद अनुभूतियां होना प्रारम्भ हो जायेंगी।
    • ध्यान करते समय मंत्र का मानसिक जाप करें तथा जब ध्यान न कर रहे हों तब भी खाते-पीते, उठते-बैठते, नहाते धोते, पढते-लिखते, कार्यालय आते जाते, गाडी चलाते अर्थात हर समय ज्यादा से ज्यादा उस मंत्र का मानसिक जाप करें। दैनिक अभ्यास में १५-१५ मिनट का ध्यान सुबह-शाम करना चाहिये।

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