संत सियाग की कृपा-सिद्ध योग: Guru Siyag's Siddha Yoga:The Way, Meaning, Means, and Method of Salvation
पुर्णतया सिद्ध योग मे किसी प्रकार की कोई
कमी नही होती वह हर मायने मे पूर्ण होता है।
बशर्ते गुरू सिद्ध होना चाहिए गुरू सामर्थय और –
शिष्य का समार्पण हो तो सिद्ध योग मूर्त रूप
लेता है इसमें अगर कमी है तो काम रूक जायेगा।
पहली शर्त है इसमे बिल्कुल ही स्वार्थ
नही चलता कही भी स्वार्थ की मात्रा आई
तो सिद्ध योग अटक जाता है। यानी साधक के मन
में स्वार्थ का विचार भी आया तो साधक
की साधना अटक जाती है। सिद्ध योग मे
स्वार्थी विचार भी बाधक है। साधक का गुरू के
प्रति पूर्ण वि”वास होना चाहिए। दुनिया चाहे कूछ
भी कहे इसमे किसी की भी नही माननी चाहिए।
व गुरू ही इष्ट देव हैव गुरू ही भगवान है। गुरू के
अलावा किसी का भी पूजा नही होती है। सब रूपो में
गुरू को हि देखना होता है। सब गुरू मे प्रकृति सब
जगह गुरू ही गुरू होता है। वैसे तो सिद्ध योग मे कई
प्रकार की साधना पद्धतिया है। पर घर
गृहस्ति लोगो के लिए गुरूदेव श्री रामलाल
जी सियाग ने एक सिद्ध योग सरल पद्धति तैयार
कर दुनिया को एक भागवत्
प्राप्ति का अच्छा मौका दिया है। अगर यह
मौका कोई साधक निस्र्वाथ भाव से
भुनाएगा को सहज ही परम तत्व मे अमिल जायेगा ।
गुरूदेव ने एक मंत्र जप को आधार माना है गुरूदेव एक
संजीवनी मंत्र देते है। उसको जपना होता है
बिना जीभ होठ हिलाये सिर्फ मन से मानसिक जाप
बडा फलदायी होता है। कोई खर्च नही आता कोई
परेशानी नही होती किसी को कुछ
पता भी नही चलता शाश्वत भाव से व समार्पण
भाव से जपते रहना है। कोई आसन विशेष की जरूरत
नही है। “करे सो काम मुख से नाम” जब आपकी नीदं
खुले तब से लेकर जब आपको नीद नही आ जाये तब
तक लगातार नाम जपो! गुरूदेव कहते है तेल की धार
की तरह नाम जपो जब आप यह यह सिद्ध मंत्र
जपोगें तो आप में एक उर्जा का संचार
होगा जो गुरूदेव के फोटो मे से आप की बोडी में
एन्टर होगी। इस –क्रिया को शक्तिपात कहतें है।
जो कि सिद्ध योग में शक्तिपात दीक्षा प्रावधान है
। गुरू अपनी शक्ति को –शिष्य में ट्रांसफर करता है।
शक्तिपात दीक्षा एक महा दिक्षा है जो कि योग्य
शिष्य को ही मिलती है यह दीक्षा महा गुरू अपने
महा –शिष्य को हि देते है
बाकि को योग्यता अनुसार मिलता है जो चित
कि विरतियो को एकाग्रत करता है खंड - खंड
को अखंड बना देता है। तो बाकि के योग में
अस्टाअकां योग का प्रावधान है योग के आठ अंग है
यम नियम आसन प्रति आहार प्रायाणाम
धारणा ध्यान और समाधि बाकि के योग यम से शुरू
होकर समाधि तक पहुचते है पर सिध योग मे
थोड़ा फेर बदल है अंग ईनके भी आठ है। अस्टा अंग
है पर कार्य से भिन्न है गुरूदेव ने इन को सरल कर
दिया है इसके छ अंग है ¼यम नियम आसन
प्रति आधार प्रायाणाम धारण गुरूदेव खुद कुण्डलिन
शक्ति द्वारा करवातें है साधक को नाम जपते हुए
सिर्फ ध्यान करना होता है ध्यान छठा चक्र
आज्ञा चक्र पर करना होता है। जहा गुरूदेव
का निवास होता है। साधक को अपनी ओर से सिर्फ
समपर्ण, नाम जप व ध्यान तीन चीजे करनी होती है
बाकि काम सिर्फ गुरू करते है कुण्डलिनी के रूप
में!....अगर कोई एड्स, कॅन्सर, डाइयबिटीस या किसी भी असाध्या रोगो से पीड़ित हो या दारू .अफीम या किसी भी नशे से पीड़ित हो तो, बड़ी आसनी से ठीक हो जाता है..
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