गुरु सियाग सिद्ध योग: Rebuild Your Immune System | Easy to do | How to increase Immunity
साधक का गुरू केप्रति पूर्ण वि”वास होना चाहिए। दुनिया चाहे कूछभी कहे इसमे किसी की भी नही माननी चाहिए। सिद्धयोग में गुरू के अलावा कुछ नही है। गुरू ही कुलदेव हैव गुरू ही इष्ट देव हैव गुरू ही भगवान है। गुरू केअलावा किसी का भी पूजा नही होती है। सब रूपो मेंगुरू को हि देखना होता है। सब गुरू मे प्रकृति सबजगह गुरू ही गुरू होता है। वैसे तो सिद्ध योग मे कईप्रकार की साधना पद्धतिया है। पर घरगृहस्ति लोगो के लिए गुरूदेव श्री रामलालजी सियाग ने एक सिद्ध योग सरल पद्धति तैयारकर दुनिया को एक भागवत्प्राप्ति का अच्छा मौका दिया है। अगर यहमौका कोई साधक निस्र्वाथ भाव सेभुनाएगा को सहज ही परम तत्व मे अमिल जायेगा ।
गुरूदेव ने एक मंत्र जप को आधार माना है गुरूदेव एकसंजीवनी मंत्र ते । उसको जपना होता हैबिना जीभ होठ हिलाये सिर्फ मन से मानसिक जापबडा फलदायी होता है। कोई खर्च नही आता कोईपरेशानी नही होती किसी को कुछपता भी नही चलता शाश्वत भाव से व समार्पणभाव से पते रहना है। कोई आसन विशेष की जरूरतनही है। “करे सो काम मुख से नाम” जब आपकी नीदंखुले तब से लेकर जब आपको नीद नही आ जाये तबतक लगातार नाम जपो! गुरूदेव कहते है तेल की धारकी रह नाम जपो जब आप यह यह सिद्ध मंत्रजपोगें तो आप में एक उर्जा का संचारहोगा जो गुरूदेव के फोटो मे से आप की बोडी मेंएन्टर होगी। इससे एड्स , कॅन्सर और हर तरह के असाध्या रोग भी पने प ठीक हो जाते हैं, इस –क्रिया को शक्तिपात कहतें है।जो कि सिद्ध योग में शक्तिपात दीक्षा प्रावधान है।
गुरू अपनी शक्ति को –शिष्य में ट्रांसफर करता है।शक्तिपात दीक्षा एक महा दिक्षा है जो कि योग्यशिष्य ही मिलती है यह दीक्षा महा गुरू अपनेमहा –शिष्य को हि देते हैबाकि को योग्यता अनुसार मिलता है जो चितकि विरतियो को एकाग्रत करता है खंड - खंडको अखंड बना देता है।तो बाकि के योग मेंअस्टाअकां ग का प्रावधान है योग के आठ अंग हैयम नियम आसन प्रति आहार प्रायाणामधारणा ध्यान और समाधि बाकि के योग यम से शुरूहोकर समाधि तक पहुचते है पर सिध योग मे थोड़ा फेर बदल है अंग ईनके भी ठ है। अस्टा अंगहै पर कार्य से भिन्न है गुरूदेव ने इन को सरल करदिया है इसके छ अंग है ¼यम नियम आसनप्रति आधार प्रायाणाम धारण गुरूदेव खुद कुण्डलिनशक्ति द्वारा करवातें है साधक को नाम जपते एसिर्फ ध्यान करना होता है ध्यान छठा चक्रआज्ञा चक्र पर करना होता है। जहा गुरूदेवका निवास होता है। साधक को अपनी ओर से सिर्फसमपर्ण, नाम जप व ध्यान तीन चीजे करनी होती है
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