✅ Highlights of the day:

कहते हैं कि, जब 1965 का युद्ध हो रहा था तो पंजाब के लोगों ने हमारे जवानो का होंसला बढ़ाने में कोई कसर नही छोड़ी थी, जगह जगह बड़े-बड़े लस्सी के ग्लास,पंजाबी भोजन,और जैसे भी समझ आया वैसे जवानो की सेवा में लग जाते थे




.
पंजाब आज भी भारत के समृद्द राज्यो में स्थान रखता है,लेकिन कुछ षड्यंत्रकारियों ने भारतमाता के इस अभिन्नअंग को खोखला करने का भरसक प्रयास किया,और जो राज्य इतना समृद्ध,विकसित,आध्यात्मिक था वो 'नशे' के लिए जाना जाने लगा
.
तो क्या हम अपने छोटे से प्रयास से अपने समृद्ध राज्य से ही क्यों सम्पूर्ण विश्व से नशे का नामो निशान नहीं मिटा सकते? लेकिन कैसे?
.
131
साल पहले स्वामी विवेकानन्द जी ने कह दिया था 
       'You need not to give up the things,the things will give you up'
.
फिर भी हमारे सबसे समृद्ध राज्य आज नशे की चपेट में आ गए,क्यों?
क्योंकि स्वामी जी ने जिस प्रक्रिया की बात कही उसका अभ्यास हमने नही किया
.
क्या यह संभव है कि वृत्तियों को बदला जा सके,सिद्धयोग के अभ्यास से यह संभव है,उसके लिए आपको कही जाने की या अपना समय और धन खर्च करने की जरुरत नही है
.
जरूरत है तो सिर्फ और सिर्फ अभ्यास करने की,सिद्धयोग के फायदों की चर्चा करें तो ये पोस्ट बहुत ज्यादा बढ़ जायेगा,
.
बीमारिया ठीक होना(हर तरह की यहाँ तक कि एड्स,कैंसर,आनुवांशिक रोग भी),अनुभूतिया होना,विभिन्न रंग या प्रकाश दिखना,
खेचरी मुद्रा लगना (जीभ का तालु से चिपक कर साधक को अमृत का स्वाद चखने जैसी मुद्रा जिसका स्वाद साधक ले तो लेता है लेकिन बता नही पाता कि मीठा है क़ि कैसा है जो सिर्फ अनुभव किया जा सकता है,
.
इसी बारे में कबीरदास जी ने कहा है कि 'गगन मंडल में ऊँधा कुआ, तहाँ अमृत का बासा, सगुरा होये भर-भर पीबै निगुरा जाये प्यासा
.
आप इंटरनेट पर सर्च कर के देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि लोग क्या क्या जतन नही करते इस मुद्रा के लिए यहाँ तक कि अपनी जीभ का एक भाग तक काट देते हैं, सालों साल अभ्यास करते हैं फिर भी ये मुद्रा नही लग पाती,लोग यहाँ तक कहते हैं कि जीभ छोटी हो तो ये मुद्रा लग ही नही सकती,लेकिन सिद्धयोग में ये आसानी से संभव है,आप youtube पर सर्च करके सिद्धयोग के साधको के खेचरी मुद्रा लगने के videos देख सकते हैं)हर तरह की समस्या से मुक्ति होना, etc etc 
जैसी बातें सिद्धयोग में normal हैं
.
क्योंकि इन सब समस्याओं के समाधान के बाद ही आगे की यात्रा शुरू होती है,रोगों को ठीक करना या समस्याओं का निदान होना सिद्धयोग का उद्देश्य नही है, ये तो उस उद्धेश्य में आनेवाली बाधाएं हैं,जो क़ि दूर होना जरुरी हैं, क्योंकि जब तक बाधाएं दूर नही होंगी तब तक आप वही पर अटके रहेंगे आगे की यात्रा शुरू नही होगी, इसलिए ऐसा होता है।
.
विकासवाद भी यही कहता है कि अगर हम किसी चीज़ का अभ्यास करना बंद करदें तो वो चीज़ धीरे धीरे क्षय होना शुरू हो जाती है,
.
हम लोगों ने third eye (तीसरा नेत्र) के बारे में सिर्फ सुना ही है, इस सिद्धयोग के अभ्यास में ध्यान तीसरे नेत्र पर ही किया जाता है,तो आपको तीसरे नेत्र के बारे में और उसके अभ्यास से उसका(third eye) बजूद बचाने में भी सहायता मिलेगी(विकासवाद के सिद्धांत के अनुसार)
.
उसके लिए आपको कही जाने की या अपना समय और धन खर्च करने की जरुरत नही है, जरूरत है तो सिर्फ और सिर्फ अभ्यास करने की
.
अगर ये बात आप उन लोगों तक पहुंचाने में सफल हो गए और उनलोगों ने इस सिद्धयोग का अभ्यास 8-10 दिन भी कर लिया तो ये समस्या जड़ से ख़त्म हो सकती है,तो अधिक से अधिक शेयर करें इतना ही निवेदन है
.
.
लेकिन लोगों को राजनीति करनी है,वोट माँगने का एक मुद्दा ख़त्म हो जायेगा,तो राजनीति वाले तो कभी नही चाहेंगे कि ऐसा सम्भव हो, केवल मानवतावादी विचारधारा वाले लोग ही इस पोस्ट को शेयर करने की हिम्मत कर पाएंगे
.
.
How to feel the 'presence of Universal Energy' in your body without wasting your time and money at your place right now?
Select your own language

Start at any place

Any duration(if you want practice for 9 minutes then your eyes will open automatically after exact 9 minutes)
Just Meditate for 15 minutes and feel the presence of 'Universal Energy' around you..
Don't believe us blindly, just try It.


Thanks for reading this.

0 comments:

Post a Comment

Featured Post

कुण्डलिनी शक्ति क्या है, इसकी साधना, इसका उद्देश्य क्या है : कुण्डलिनी-जागरण

कुण्डलिनी शक्ति क्या है, इसकी साधना, इसका उद्देश्य क्या है : कुण्डलिनी-जागरण कुण्डलिनी क्या है? इसकी शक्ति क्या है, इसकी साधना, इसका उद्...

Followers

 
Top