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कै कोई जागे रोगी - भोगी, कै कोई जागे चोर ।
कै कोई जागे सन्त महात्मा, जाकी लगी हो हरि नाम की डोर।।
अर्थात्
शास्त्रों में रात्रि जागरण करने वालों के ये प्रकार बताए गए हैं, आप खुद तय करें कि आपका प्रकार कौन सा है


या तो कोई रोगी(बीमारी आदि से पीड़ित व्यक्ति),
या कोई भोगी(अपने पूर्वजन्म के कर्मों का फल भोगने वाला व्यक्ति, कर्मों का फल अच्छा बुरा कुछ भी हो सकता है),
या कोई चोर, या वो इंसान जिन्हें हरि नाम की रट लगी हुई है, वो ही रात्रि जागरण करते हैं


सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
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गुरुदेव द्वारा प्रदत्त आराधना पथ अतयंत सरल आडम्बर और कर्मकांडो से रहित है। किसी भी कर्मकांड की जरुरत नहीं है। कही पर ध्यान कही भी बैठ कर किया जा सकता है । किसी प्रकार के तिलक छापे 'विशेष रंग के वस्त्र पहनने ' रंग विशेष का आसन बिछाने की जरुरत नहीं होती है।
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