✅ 15 Minute Chakra Meditation:Kundalini Awakening Yoga
मोक्ष का नाम सुनते ही हर इंशान के मन में एक
अलग तरह की झंकार सी उठती
है,
संभवतः इसलिए कि वह कभी उस स्थिति में जरूर रहा
होगा या फिर उस स्थिति तक पहुंचने का प्रयास कर रहा होगा
केवल
और केवल अज्ञान या भ्रम के कारण ही वह स्वयं को पहचान नहीं पाता अगर
किसी के मन में स्वयं को जानने का विचार आ जाय तो वो सबसे पहले गुरु की तलाश करता
है या ईश्वर से प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसके जीवन में गुरु को भेज दे
सही
वक्त पर ईश्वर उसके जीवन में गुरु भी भेज देता है
किसी
की आराधना अपूर्ण रह जाती है तो वो वहीं से शुरू होती है
जहां से छूटी थी( ये ऐसा
धन है जो कभी नष्ट नहीं होता)
आज्ञा
चक्र तक पहुंचने के 3 रास्ते होते हैं जो कि जन्म से ही बने बनाए
होते हैं,सिर्फ उन पर चल कर आज्ञा चक्र तक पहुंचा जा सकता है, कभी
कभी ईश्वरीय कृपा से भी आज्ञा चक्र तक पहुंचा जा सकता है
आपने
कई बार सुना होगा कि अध्यात्मिक यात्रा में गुरु की जरूरत
नहीं केवल स्वयं के
प्रयास से भी कई बार अनुभूतियां हो जाएं तो ये केवल आज्ञा चक्र तक की बात करते हैं
या
यूं कह लो कि आप नेगेटिव से शून्य तक की यात्रा कर चुके,
क्या शून्य ही
ईश्वर है या इसके आगे भी कुछ है
निगेटिव
से शून्य (त्रैत वाद 1.प्रकृति 2.आत्मा 3.परमात्मा)
शून्य
पर या आज्ञा चक्र तक (द्वैत वाद 1.आत्मा 2.परमात्मा)
आज्ञा
चक्र से सहस्त्रार के बाद या अनन्त (अद्वैतवाद या 'केवल ब्रह्म,ब्रह्म
के अलावा कुछ भी नहीं)
आज्ञा
चक्र तक पहुंचने के तीन रास्ते और हजारों तरीके होते हैं
लेकिन
आज्ञा चक्र के आगे की यात्रा के लिए ईश्वर की कृपा, गुरु की कृपा और
आपके स्वयं के प्रयास तीनों ही जरूरी हैं बिना गुरु के इस पथ पर आगे नहीं बढ़ा जा
सकता
आज्ञा
चक्र के आगे केवल एक ही रास्ता होता है और ये रास्ता
खुद बनाना पड़ता है(गुरु और
ईश्वर की कृपा और स्वयं के
प्रयास से)
प्राणायाम,
धारणा,ध्यान
और समाधि यहीं से शुरू होते हैं
असली
अध्यात्मिक यात्रा तो आज्ञा चक्र के बाद ही शुरू होती है
"बहुत
से गुरु कहते हैं कि 20 साल तक ऐसा करो तो आपकी कुण्डलिनी जागृत हो
जायेगी,20 साल तक गुरु-चेला रहेंगे इसकी है गारंटी? अगर मुझमें कुछ
गुंजाइश है तो काम अभी शुरू हो जायेगा,20 साल नही लगेंगे,
आप
जन्म से पूर्ण हो लेकिन समझ नही पा रहे कि आप क्या हो?
आप
शरीर नही हो,आप आत्मा हो, मैं आपको अपने
आप से साक्षात्कार करवाऊंगा,आपका अपने आप से introduction करवाऊंगा,दूंगा
कुछ नहीं, जो कुछ है आपके अंदर है बाहर से आपको किसी से कोई उम्मीद नही रखनी
चाहिए"- गुरु सियाग
आज्ञाचक्र
तक पहुँचाने के लिए अलग अलग क्रियाएँ,अलग अलग तरीके अपलब्ध हैं और इसके लिए
लोगो से मोटी फीस ली जाती है,कहीं 25 हजार कही 5
हजार कही 10 हजार,जो फीस नही ले रहा वो सेवा के नाम पर
ठग रहे हैं,और आज्ञा चक्र से ऊपर की बात पर सबके हाथ खड़े
हो जाते हैं जबकि यहाँ न तो कोई पैसा लिया जाता है और न कोई सेवा और आपकी यात्रा
आज्ञाचक्र से शुरू होती है,आज्ञाचक्र तक पहुचने में कितनी देर
लगती है ये ऊपर बताया जा चुका है जबकि कोई कहता है क़ि 20 साल ऐसा करो,कोई
कहता है इतने पैसे दो,कोई कहता है क़ि ऐसा हो नही सकता,और
उसके आगे क्या होगा कह देते हैं कि अगले जन्म में शुरू होगा
गुरु
सियाग सिद्ध योग का उद्देश्य बीमारियां ठीक करना नहीं है, लेकिन बिना
बीमारी ठीक हुए किसी का ध्यान साधना में कैसे लगेगा, रोग में लगेगा
इसलिए इस योग से बीमारियों का ठीक होना,भौतिक समस्याओं का अंत होना etc
ये
सब पहले होता है जिससे साधना में आगे कोई रुकावट न आये और मानवजाति अपने असली रूप
- Divine form में रूपांतरित हो सके(Divine Transformation
of Human being or Divine Transformation of Humanity)
(एक
ही साधक की साधना काल में अलग अलग अनुभूतियाँ होती हैं ये मेरी अभी तक की
अनुभूतियाँ हैं, हो सकता है इसके आगे भी कुछ हो, क्योंकि
अभी साधना काल में हूँ)
जैसे
कबीर दास जी ने जब आराधना शुरू की होगी तो ये दोहा कहा होगा
गुरु
गोविंद दोऊँ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी
गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
हम
लोग साधना तो बड़े जोश से शुरू करते हैं शायद इसीलिए ये
दोहा सर्वाधिक लोक प्रिय
रहा
लेकिन
कबीर दास जी जब साधना में आगे बढे तो उन्होंने ये दोहा कहा होगा
गुरु
गोविन्द दोऊ एक हैं, दूजा सब आकार।
आपा
मैटैं हरि भजैं, तब पावैं दीदार।।
अर्थात
(गुरु
और गोविंद दोनो एक ही हैं केवल नाम का अंतर है।
गुरु का बाह्य(शारीरिक) रूप चाहे
जैसा हो किन्तु अंदर से गुरु
और गोविंद मे कोई अंतर नही है।)
ये
दोहा इतना लोकप्रिय नहीं हुआ जिसका अर्थ है कि बहुत कम लोग उस काल में इसका अर्थ
समझ पाये होंगे,
सार यह है कि साधना तो बहुत संख्या में लोग
शुरू करते हैं लेकिन आज्ञा चक्र से आगे नहीं बढ़ पाने के कारण शून्य पर ही रुक जाते
हैं, जबकि असली आराधना तो शून्य से अनन्त की यात्रा है, तभी
तो कहा गया है कि 'हरि अनन्ता, हरि कथा अनंता'
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