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ध्यान के दौरान, यह जागृत कुंडलिनी साधकों के चक्रों का शुद्धीकरण एवं भेदन करती हुई

























आएं अब हम समझें कि यह हमारे शारीरीक, मानसिक व आध्यात्मिक विकास किस प्रकार करता है।

जप और ध्यान का युगल अभ्यास जगत जननी मातृ शक्ति 'कुंडलिनी' को जागृत करता है, जो हमारे रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले भाग जिसे हम सैक्रम बोन या मूलाधार के नाम से भी जानते हैं, में सुषुप्त अवस्था मे विद्यमान रहती है तथा गुरु सियाग द्वारा प्रतिपादित शक्तिपात दीक्षा से चेतन हो जाती है। ध्यान के दौरान, यह जागृत कुंडलिनी साधकों के  चक्रों का शुद्धीकरण एवं भेदन करती हुई सहस्रार तक पहुंचती है। नतीजतन, ध्यान के दौरान साधक  विभिन्न प्रकार के यौगिक क्रियाओं का अनुभव करता है जैसे कि आसन, प्राणायाम, मुद्रा आदि। जागृत कुंडलिनी, साधक के शारीरीक न्यूरॉन्स और कोशिकाओं को जो ठीक से काम नहीं कर रहे हैं मजबूत व ठीक करती है। इस प्रकार, साधक के सभी अंग पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाते हैं।

अब, मैं इसके वैज्ञानिक पहलुओं की व्याख्या करने जा रहा हूं।

गुरु सियाग द्वारा दिए गए चेतन मंत्र का अधिकाधिक जप मन

 को शांत करने और ध्यान के दौरान गहरी एकाग्रता प्राप्त करने में मदद करता है।

इसके अलावा, गुरू सियाग के योग ध्यान और जप क्रोध, तनाव, चिंता और अवसाद के साथ लड़ने के लिए जैविक रूप से हमारी मदद करते हैं और मानसिक स्थिरता को बढ़ाते हैं। ध्यान और जप के नियमित अभ्यास से अल्फ़ा तरंगों (जर्मन न्यूरोलॉजिस्ट हेंस बर्गर द्वारा आविष्क्रित) की उच्च स्तर को बनाए रखने में मदद मिलती है जो नकारात्मक मनोदशा, तनाव, उदासी और क्रोध को कम करती है और इस तरह सकारात्मकता एवं मानसिक दृढ़ता बढ़ जाती है। यह दर्द सहिष्णुता, स्मृति शक्ति, आत्म जागरूकता, लक्ष्य की स्थापना और भावनात्मक विनियमन का भी विकसित करता है। इस प्रकार साधक को उसके तनाव और अवसाद संबंधित स्वास्थ्य में राहत मिलती है।

ध्यान के दौरान, एक स्थिर साँस लेने की प्रक्रिया के कारण ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन सही प्रकार से होता है। गैर-ध्यानकर्ता की तुलना में, साधकों के शरीर में अधिक मात्रा में एंटीबॉडी पाये जाते हैं, जो शारीरीक प्रतिरक्षा को बढ़ाती है ।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि  यह ध्यान शारीरिक बीमारियों जैसे मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर पर कैसे काम करता है। नियमित GSY के ध्यान व जाप कर रहे साधकों के सेलुलर स्तर पर हुए अभुतपूर्व परिवर्तनों को हम स्पष्ट देख सकते हैं। यहां, मैं इसके बारे में संक्षेप में व्याख्या करना चाहता हूं। जैसा कि हम जानते हैं, हमारे गुणसूत्र के पास एक सुरक्षात्मक प्रोटीन कॉम्प्लेक्स् है जिसे टेलोमेयर कहा जाता है जो हमारे डीएनए की रक्षा करता है और टेलोमेरेज़ के लंबाई में छोटे होने से हृदय संबंधी बीमारियों, मधुमेह, कैंसर आदि उत्पन्न होते हैं।

अब, जीएसवाई के नियमित अभ्यास से चिंता और तनाव को कम करने में मदद मिलती है, जो एंजाइम टेलोमेरेज़ पर सीधा प्रभाव डालती है जो कि डीएनए को जोड़कर सिकुड़ते और छोटे होते टेलोमेरेस पर प्रतिक्रिया करता है और परिणामतः ऐसे स्वास्थ्य मुद्दों वाले साधक की शारीरीक स्थिति नियमित साधना द्वारा दिन-प्रतिदिन बेहतर होती जाती हैं।

GSY का अभ्यास आज के व्यस्त जीवनकाल में भी बहुत आसान है और केवल घर पर ही रह कर किया जाता है। यह पूरी तरह से नि: शुल्क है और कोई शुल्क या पंजीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है।

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