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आइए,सिद्धयोग द्वारा पंचकोशी यात्रा पर चले ....

अन्नमय और प्राणमय कोष का साधक,गुरु के भौतिक शरीर की या उनकी तस्वीर की पूजा अर्चना करता है,वह फल-फूल-भेंट अर्पित करता है,अगरबत्ती और ज्योति द्वारा आरती उतरता है,चरनामृत लेता है.उसके द्वारा इस कर्मयोग से गुरु के प्रति निष्ठां,प्रेम,श्रद्धा उत्त्पन्न होती है,जो उसे,भक्ति-योग की ओर अग्रसर कर देती है.......
इससे आगे गुरु कभी प्रकाशरूप मे या शक्तिरूप मे प्रकट होकर साधक के मनको पकड़ लेते है, साधक की इच्छा के विरूद्ध योगिक क्रियाए करवाते है, जिस से साधक का शरीर निरोगी हो जाता है,उसे एक विशेष प्रकार का नशा सा i जाता है,

आगे साधक को ध्यान मे नित नई अनुभुतिया होने लगती है,गुरु प्रकाशरूप मे अन्तर बाहर प्रकट होने लगते है,नये-नये अनुभव व् योगिक क्रियाए होने लगती है,विशेष रौशनी,नाद, सुगंध,रस,स्पर्श का अनुभव होता है,इतर,लोक स्थान,दृश्य दिखाई देते है..,भूत-भविष्य की अनुभुतिया होती है इसे भक्तियोग या मनोमय कोष की साधना कहते है.....

इन सबको देख साधक जान जाता है की यह सारी क्रियाए,उसकी मर्जी से नहीं अपितु गुरुकृपा से हो रही है,तब गुरुके प्रति निष्ठां और विश्वास द्रढ़ हो जाता है,तब वह गुरु के प्रति समर्पित हो जाता है,तथा विशेष ज्ञान प्राप्ति केलिए विज्ञानमय कोष मे प्रबेश हो जाता है........क्रमश:....

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साधक का अर्थ है : जो अब सिर्फ सुनना नहीं चाहता, समझना नहीं चाहता, बल्कि प्रयोग भी करना चाहता है; प्रयोग साधक का आधार है |
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अब वह कुछ करके देखना चाहता है | अब उसकी उत्सुकता नया रूप लेती है, कृत्य बनती है | अब वह ध्यान के सम्बन्ध में बात ही नहीं करता, ध्यान करना शुरू करता है | क्योंकि बात से क्या होगा, बात में से तो बात निकलती रहती है | बात तो बात ही है, पानी का बबूला है, कोरी गर्म हवा है -- कुछ करें | जीवन रूपांतरित हो कुछ, कुछ अनुभव में आये |
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सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
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गुरुदेव द्वारा प्रदत्त आराधना पथ अतयंत सरल आडम्बर और कर्मकांडो से रहित हे। नाम (संजीवनी मंत्र) बहुत छोटा है । कम पढ़े लिखे साधक भी आसानी से याद कर सकते हे। जबकि कई अन्य अराधनाओ में मंत्र जटिल एवं लंबे होते हे। मंत्र जपते समय किसी भी कर्मकांड की जरुरत नहीं है। कही पर भी कभी भी जप सकते हे। ध्यान कही भी बैठ कर किया जा सकता है । किसी प्रकार के तिलक छापे 'विशेष रंग के वस्त्र पहनने ' रंग विशेष का आसन बिछाने की जरुरत नहीं होती है। जैसा की अन्य अराधनाओ में होता है।
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अन्य अराधनाओ में आराधना का परिणाम कब मिलेगा कोई गारंटी नहीं है। गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सिद्धयोग में परिणाम समर्पित साधक को मात्र 15 मिनट में गुरुदेव की तस्वीर का ध्यान करने के दौरान प्राप्त हो जाता है। कई दूसरी अराधनाओ में साधक की जेब सबसे पहले खाली होती है। जबकि इस आराधना में जेब भर जाती है। लोगो के नशे छूट जाते है पैसा बचता है ,बीमारिया ठीक हो जाती हे,पैसा बचता है । गुरुदेव ने मंत्र cd में अपने उपदेशो में फ़रमाया है की :-" आपको किस काम में फायदा है किस कम में घाटा है ये आपको पहले ही दिख जायेगा तो आप जीवन में कभी फेल्योर (असफल) नहीं होंगे " साधक का व्यवहार बोलने का लहजा खान पान रहन सहन धीरे धीरे सात्विक होने लगता है। व्यसन और व्यसनी लोग साधक से स्वतः ही दूर हो जाते है।
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इतनी सरल आराधना को अगर कलयुग मै बार बार बताने के बाद भी कोई धारण नहीं कर पाता है तो यह उस व्यक्ति को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए।
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Guru Siyag Siddha Yoga The Way, Meaning, Means, and Method of meditation.
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