तो यहाँ 'मोक्ष' के लिए आते हैं लोग
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1 जनवरी 2009 को जयपुर में गुरुदेव का 'दीक्षा' कार्यक्रम था('दीक्षा' कार्यक्रम हमेशा निःशुल्क होते हैं इसमें किसी प्रकार का शुल्क या एंट्री फीस नही ली जाती,'गुरु सियाग सिद्ध योग' हमेशा फ्री है)
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70 प्रतिशत लोग बीमारियां ठीक कराने के लिए आते हैं(गुरदेव द्वारा दिए गए 'संजीवनी' मन्त्र से कुण्डलिनी जागृत होकर योग करवाती है,जिससे सभी प्रकार के रोग{Physical diseases,Mental Diseases,Spiritual Diseases} ठीक हो जाते हैं, 'संजीवनी मन्त्र' केवल गुरुदेव की आवाज में ही काम करता है,आवाज के बिना इफ़ेक्ट नही होगा
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70 प्रतिशत लोग बीमारियां ठीक कराने के लिए आते हैं(गुरदेव द्वारा दिए गए 'संजीवनी' मन्त्र से कुण्डलिनी जागृत होकर योग करवाती है,जिससे सभी प्रकार के रोग{Physical diseases,Mental Diseases,Spiritual Diseases} ठीक हो जाते हैं, 'संजीवनी मन्त्र' केवल गुरुदेव की आवाज में ही काम करता है,आवाज के बिना इफ़ेक्ट नही होगा
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"भारतीय योग दर्शन का उद्धेश्य है मोक्ष, रोग है ही नही , लेकिन उस स्थिति तक विकसित होने के लिए, रोगमुक्त होना जरुरी है, इसलिए पहले रोग ठीक होते हैं " - गुरु सियाग
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10 प्रतिशत जिज्ञासु आते हैं कि देखते हैं कुण्डलिनी जागरण क्या होता है, ऑटोमेटिक् योग कैसे होता है, खेचरी मुद्रा कैसे लग जाती है इत्यादि
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10 प्रतिशत लोग 'देवयोग' से आते हैं, वास्तव में उन्हें नही पता होता क़ि वो क्यों आए हैं(सिद्धयोग में सभी प्रकार के योग सम्मिलित होते हैं इसलिए इसको महायोग,सहजयोग राजयोग इत्यादि भी कहा जाता है)
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( मैं यहाँ सिर्फ वही बता रहा हूँ जो खुद ने अनुभव किया)
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10 प्रतिशत लोग 'देवयोग' से आते हैं, वास्तव में उन्हें नही पता होता क़ि वो क्यों आए हैं(सिद्धयोग में सभी प्रकार के योग सम्मिलित होते हैं इसलिए इसको महायोग,सहजयोग राजयोग इत्यादि भी कहा जाता है)
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( मैं यहाँ सिर्फ वही बता रहा हूँ जो खुद ने अनुभव किया)
उनके पूर्वजन्म के संस्कारो के कारण से कोई ‘स्पेशल फोर्स’(Special Positive Force,Inner Force etc.) उन्हें गुरुदेव तक पहुचाता है और उनकी आध्यात्मिक यात्रा चालू हो जाती है
जैसे :-
कोई इंसान T.V. देख रहा है, अचानक गुरुदेव की स्पीच सुनने लगा स्पीच अच्छी लगी, योग करके देखा,योग हो गया, हो गयी आध्यात्मिक यात्रा चालू
कोई इंसान T.V. देख रहा है, अचानक गुरुदेव की स्पीच सुनने लगा स्पीच अच्छी लगी, योग करके देखा,योग हो गया, हो गयी आध्यात्मिक यात्रा चालू
कोई इंसान रोड़ पर चल रहा है, बैनर या पेम्पलेट देखा website देखी, मन्त्र सुना ध्यान करके देखा ध्यान लग गया,हो गयी आध्यात्मिक यात्रा चालू
एक भाई की अनुभूति पढ़ी थी उन्हीने लिखा था कि उनकी गुरुदेव का पेम्पलेट ऐसी हालत में मिला कि कुछ पढ़ पाना भी मुश्किल था फिर उन्होंने website देख के ध्यान का तरीका देखा, ध्यान करके देखा ध्यान लग गया, हो गयी आध्यात्मिक यात्रा शुरू, इत्यादि
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कहने का मतलब है कि आप चाहे किसीको कितना भी बताते रहो, उसके समझ चाहे न आये, लेकिन जो अहमियत समझते हैं ‘भारतीय योग दर्शन’ की उनकी आध्यत्मिक यात्रा न चाहते हुए भी सहज में चालू हो गयी
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एक भाई की अनुभूति पढ़ी थी उन्हीने लिखा था कि उनकी गुरुदेव का पेम्पलेट ऐसी हालत में मिला कि कुछ पढ़ पाना भी मुश्किल था फिर उन्होंने website देख के ध्यान का तरीका देखा, ध्यान करके देखा ध्यान लग गया, हो गयी आध्यात्मिक यात्रा शुरू, इत्यादि
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कहने का मतलब है कि आप चाहे किसीको कितना भी बताते रहो, उसके समझ चाहे न आये, लेकिन जो अहमियत समझते हैं ‘भारतीय योग दर्शन’ की उनकी आध्यत्मिक यात्रा न चाहते हुए भी सहज में चालू हो गयी
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बाक़ी के 10 प्रतिशत लोग वास्तव में मोक्ष के लिए ही आते हैं, उन्हें पता होता है कि ईश्वर के 'नाम' की महिमा क्या होती है, सदगुरु क्या होते हैं,
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ये वो लोग होते हैं जो अब तक तरसे हैं 'ईश्वर के नाम' के लिए,
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ये वो लोग हैं जो जानना चाहते हैं कि वास्तव में उनके जीवन का उद्देश्य क्या है,
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ये वो लोग हैं जो आत्म साक्षात्कार करना चाहते हैं, ये वो लोग हैं जो अपनी आध्यत्मिक यात्रा शुरू करना चाहते हैं,
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ये वो लोग हैं जिन्होंने हमेशा भगवान से प्रार्थना की है कि हे भगवान हमारे जीवन में सदगुरु भेज दे(समर्थ सदगुरु और ईश्वर एक दूसरे के पूरक होते हैं, पहले ईश्वर समर्थ गुरुदेव तक पहुँचाते हैं फिर सदगुरुदेव आत्म साक्षात्कार कराते हुए ईश्वर से मिला देते हैं)
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ये वो लोग होते हैं जो अब तक तरसे हैं 'ईश्वर के नाम' के लिए,
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ये वो लोग हैं जो जानना चाहते हैं कि वास्तव में उनके जीवन का उद्देश्य क्या है,
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ये वो लोग हैं जो आत्म साक्षात्कार करना चाहते हैं, ये वो लोग हैं जो अपनी आध्यत्मिक यात्रा शुरू करना चाहते हैं,
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ये वो लोग हैं जिन्होंने हमेशा भगवान से प्रार्थना की है कि हे भगवान हमारे जीवन में सदगुरु भेज दे(समर्थ सदगुरु और ईश्वर एक दूसरे के पूरक होते हैं, पहले ईश्वर समर्थ गुरुदेव तक पहुँचाते हैं फिर सदगुरुदेव आत्म साक्षात्कार कराते हुए ईश्वर से मिला देते हैं)
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यहाँ तरसे हुए शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया गया है कि ईश्वर ने मुझे 15 साल की उम्र तक लगभग हर गुरु के पास भेजा होगा लेकिन कही से ये नही पता चला कि आध्यत्मिक यात्रा कैसे शुरू करें
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क्योंकि परिवार में सबसे छोटा था सबके अपने अपने अलग अलग गुरु थे, तो कभी कोई अपने साथ ले जाता था तो कभी कोई,( मैं यहाँ सिर्फ वही बता रहा हूँ जो खुद ने अनुभव किया)
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1 जनवरी 2009 को गुरुदेव का दीक्षा कार्यक्रम था जयपुर में सब लोग संजीवनी मन्त्र की दीक्षा लेकर और 15 मिनट का ध्यान करके अपने अपने गंतव्य को जा रहे थे
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एक सज्जन भी मेरे साथ साथ चल रहे थे उम्र होगी करीब 60-65 साल, बिलकुल स्वस्थ थे
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क्योंकि परिवार में सबसे छोटा था सबके अपने अपने अलग अलग गुरु थे, तो कभी कोई अपने साथ ले जाता था तो कभी कोई,( मैं यहाँ सिर्फ वही बता रहा हूँ जो खुद ने अनुभव किया)
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1 जनवरी 2009 को गुरुदेव का दीक्षा कार्यक्रम था जयपुर में सब लोग संजीवनी मन्त्र की दीक्षा लेकर और 15 मिनट का ध्यान करके अपने अपने गंतव्य को जा रहे थे
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एक सज्जन भी मेरे साथ साथ चल रहे थे उम्र होगी करीब 60-65 साल, बिलकुल स्वस्थ थे
जैसा कि आपको बताया लगभग 70 प्रतिशत बीमार लोग दीक्षा लेने आते हैं संजीवनी मन्त्र की, तो मैंने उन सज्जन से पूछा कि आप तो बिलकुल स्वस्थ लग रहे हैं?
उनका उत्तर था, क़ि मैं बीमारी ठीक कराने के लिए नही 'ईश्वर का नाम' (संजीवनी मन्त्र) के लिए आया था ।
उनका उत्तर था, क़ि मैं बीमारी ठीक कराने के लिए नही 'ईश्वर का नाम' (संजीवनी मन्त्र) के लिए आया था ।
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सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
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गुरुदेव द्वारा प्रदत्त आराधना पथ अतयंत सरल आडम्बर और कर्मकांडो से रहित हे। नाम (संजीवनी मंत्र) बहुत छोटा है । कम पढ़े लिखे साधक भी आसानी से याद कर सकते हे। जबकि कई अन्य अराधनाओ में मंत्र जटिल एवं लंबे होते हे। मंत्र जपते समय किसी भी कर्मकांड की जरुरत नहीं है। कही पर भी कभी भी जप सकते हे। ध्यान कही भी बैठ कर किया जा सकता है । किसी प्रकार के तिलक छापे 'विशेष रंग के वस्त्र पहनने ' रंग विशेष का आसन बिछाने की जरुरत नहीं होती है। जैसा की अन्य अराधनाओ में होता है। अन्य अराधनाओ में आराधना का परिणाम कब मिलेगा कोई गारंटी नहीं है। गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सिद्धयोग में परिणाम समर्पित साधक को मात्र 15 मिनट में गुरुदेव की तस्वीर का ध्यान करने के दौरान प्राप्त हो जाता है। कई दूसरी अराधनाओ में साधक की जेब सबसे पहले खाली होती है। जबकि इस आराधना में जेब भर जाती है। लोगो के नशे छूट जाते है पैसा बचता है ,बीमारिया ठीक हो जाती हे,पैसा बचता है । गुरुदेव ने मंत्र cd में अपने उपदेशो में फ़रमाया है की :-" आपको किस काम में फायदा है किस कम में घाटा है ये आपको पहले ही दिख जायेगा तो आप जीवन में कभी फेल्योर (असफल) नहीं होंगे " साधक का व्यवहार बोलने का लहजा खान पान रहन सहन धीरे धीरे सात्विक होने लगता है। व्यसन और व्यसनी लोग साधक से स्वतः ही दूर हो जाते है। इतनी सरल आराधना को अगर कलयुग मै बार बार बताने के बाद भी कोई धारण नहीं कर पाता है तो यह उस व्यक्ति को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए।
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सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
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गुरुदेव द्वारा प्रदत्त आराधना पथ अतयंत सरल आडम्बर और कर्मकांडो से रहित हे। नाम (संजीवनी मंत्र) बहुत छोटा है । कम पढ़े लिखे साधक भी आसानी से याद कर सकते हे। जबकि कई अन्य अराधनाओ में मंत्र जटिल एवं लंबे होते हे। मंत्र जपते समय किसी भी कर्मकांड की जरुरत नहीं है। कही पर भी कभी भी जप सकते हे। ध्यान कही भी बैठ कर किया जा सकता है । किसी प्रकार के तिलक छापे 'विशेष रंग के वस्त्र पहनने ' रंग विशेष का आसन बिछाने की जरुरत नहीं होती है। जैसा की अन्य अराधनाओ में होता है। अन्य अराधनाओ में आराधना का परिणाम कब मिलेगा कोई गारंटी नहीं है। गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सिद्धयोग में परिणाम समर्पित साधक को मात्र 15 मिनट में गुरुदेव की तस्वीर का ध्यान करने के दौरान प्राप्त हो जाता है। कई दूसरी अराधनाओ में साधक की जेब सबसे पहले खाली होती है। जबकि इस आराधना में जेब भर जाती है। लोगो के नशे छूट जाते है पैसा बचता है ,बीमारिया ठीक हो जाती हे,पैसा बचता है । गुरुदेव ने मंत्र cd में अपने उपदेशो में फ़रमाया है की :-" आपको किस काम में फायदा है किस कम में घाटा है ये आपको पहले ही दिख जायेगा तो आप जीवन में कभी फेल्योर (असफल) नहीं होंगे " साधक का व्यवहार बोलने का लहजा खान पान रहन सहन धीरे धीरे सात्विक होने लगता है। व्यसन और व्यसनी लोग साधक से स्वतः ही दूर हो जाते है। इतनी सरल आराधना को अगर कलयुग मै बार बार बताने के बाद भी कोई धारण नहीं कर पाता है तो यह उस व्यक्ति को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए।
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सिद्धयोग के लाभ (पूर्णतः निःशुल्क) :
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(1) इसके साधक को सभी प्रकार के रोगों जैसे कैंसर, एच आई वी, गठिया, दमा व डायबिटीज आदि शारीरिक रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
(2) सभी प्रकार के नशों जैसे शराब, अफीम, स्मैक, हीरोइन, बीडी, सिगरेट, गुटखा, जर्दा आदि से बिना परेशानी के छुटकारा।
(3) मानसिक रोग जैसे भय, चिंता, अनिद्रा, आक्रोश, तनाव, फोबिया आदि से मुक्ति।
(4) अध्यात्मिकता के पूर्ण ज्ञान के साथ भूत तथा भविष्य की घटनाओं को ध्यान के समय प्रत्यक्ष देख पाना संभव।
(5)एकाग्रता एंव याददाश्त में वृद्धि।
(6)साधक को उसके कर्मों के उन बंधनों से मुक्त करता है जो निरन्तर चलने वाले जन्म
-मृत्यु के चक्र में उसे बांध कर रखते हैं।
(7) साधक को उसकी सत्यता का भान एंव आत्म साक्षात्कार कराता है।
(8)गृहस्थ जीवन में रहते हुए भोग और मोक्ष के साथ ईश्वर की प्रत्यक्षानुभूति।
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(2) सभी प्रकार के नशों जैसे शराब, अफीम, स्मैक, हीरोइन, बीडी, सिगरेट, गुटखा, जर्दा आदि से बिना परेशानी के छुटकारा।
(3) मानसिक रोग जैसे भय, चिंता, अनिद्रा, आक्रोश, तनाव, फोबिया आदि से मुक्ति।
(4) अध्यात्मिकता के पूर्ण ज्ञान के साथ भूत तथा भविष्य की घटनाओं को ध्यान के समय प्रत्यक्ष देख पाना संभव।
(5)एकाग्रता एंव याददाश्त में वृद्धि।
(6)साधक को उसके कर्मों के उन बंधनों से मुक्त करता है जो निरन्तर चलने वाले जन्म
-मृत्यु के चक्र में उसे बांध कर रखते हैं।
(7) साधक को उसकी सत्यता का भान एंव आत्म साक्षात्कार कराता है।
(8)गृहस्थ जीवन में रहते हुए भोग और मोक्ष के साथ ईश्वर की प्रत्यक्षानुभूति।
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सिद्धयोग में आपको दो कार्य करने हैं:-
i) ध्यान-
आपको सुबह सुबह शाम पन्द्रह मिनट तक समर्थ सद्गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग के चित्र का ध्यान करना है। ध्यान से पहले गुरुदेव से पन्द्रह मिनट ध्यान में आने की प्रार्थना करें और उसके बाद आँखें बंद करके जहां हम माथे पर तिलक लगाते हैं यानि दोनों आखों के बीच में यह समझें कि गुरुदेव की फोटो विराजमान है व उस फोटो पर ध्यान केंद्रित करें व संजीवनी मंत्र का मानसिक जप करें। 15 मिनट बाद आप सामान्य स्थिति में आ जाएँगे।
ii) मन्त्र जप-
संजीवनी मन्त्र का दिन भर जब याद आ जाए तभी बिना जीभ होंठ हिलाए अधिक से अधिक मानसिक जप करते रहें।
संजीवनी मंत्र दीक्षा प्राप्त करने के लिए नीचे लिखे मोबाइल नंबर पर डायल करे। (07533006009).
(पूर्णतः निःशुल्क)
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Guru Siyag Siddha Yoga The Way, Meaning, Means, and Method of meditation.
i) ध्यान-
आपको सुबह सुबह शाम पन्द्रह मिनट तक समर्थ सद्गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग के चित्र का ध्यान करना है। ध्यान से पहले गुरुदेव से पन्द्रह मिनट ध्यान में आने की प्रार्थना करें और उसके बाद आँखें बंद करके जहां हम माथे पर तिलक लगाते हैं यानि दोनों आखों के बीच में यह समझें कि गुरुदेव की फोटो विराजमान है व उस फोटो पर ध्यान केंद्रित करें व संजीवनी मंत्र का मानसिक जप करें। 15 मिनट बाद आप सामान्य स्थिति में आ जाएँगे।
ii) मन्त्र जप-
संजीवनी मन्त्र का दिन भर जब याद आ जाए तभी बिना जीभ होंठ हिलाए अधिक से अधिक मानसिक जप करते रहें।
संजीवनी मंत्र दीक्षा प्राप्त करने के लिए नीचे लिखे मोबाइल नंबर पर डायल करे। (07533006009).
(पूर्णतः निःशुल्क)
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Guru Siyag Siddha Yoga The Way, Meaning, Means, and Method of meditation.
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