बचपन में पिता की हत्या, माँ को कैंसर, लेकिन खुद पढ़ी और बहन को पढ़ाया, आज दोनों है IAS
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“बचपन में मम्मी कहती थी कि पापा चाँद पर गये हुए हैं। फिर हमने धीरे-धीरे उनसे पूछना शुरू किया तब उन्होने पापा के साथ हुए हादसे के बारे में बताया।”
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फ़ैज़ाबाद की डीएम किंजल सिंह और उनके परिवार की कहानी बहुत ही भावुक और दर्दनाक है। किंजल सिंह 2008 में आईएएस में चयनित हुईं थी। आज उनकी पहचान एक तेज़-तर्रार अफ़सर के रूप में होती है। उनके काम करने के तरीके से जिले में अपराध करने वालों के पसीने छूटते हैं। लेकिन उनके लिए इस मुकाम तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नही था।
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मुझे मत मारो मेरी दो बेटियां हैं
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किंजल के पिता के आख़िरी शब्द थे कि ‘मुझे मत मारो मेरी छोटी बेटी है’। वो ज़रूर उस वक़्त अपनी चिंता छोड़ कर अपनी जान से प्यारी नन्ही परी का ख्याल कर रहे होंगे। किंजल की छोटी बहन प्रांजल उस समय गर्भ में थी। शायद अगर आज वह ज़िंदा होते तो उन्हे ज़रूर गर्व होता कि उनके घर बेटियों ने नहीं बल्कि दो शेरनियों ने जन्म लिया है।
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बचपन जहाँ बच्चों के लिए सपने संजोने का पड़ाव होता है। वहीं इतनी छोटी उम्र में ही किंजल अपनी माँ के साथ पिता के क़ातिलों को सज़ा दिलाने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने लगी। हालाँकि उस नन्ही बच्ची को यह अंदाज़ा नही था कि आख़िर वो वहाँ क्यों आती हैं। लेकिन वक़्त ने धीरे-धीरे उन्हे यह एहसास करा दिया कि उनके सिर से पिता का साया उठ चुका है।
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इंसाफ़ दिलाने के संघर्ष में जब माँ हार गयी कैंसर से जंग
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प्रारंभिक शिक्षा बनारस से पूरी करने के बाद, माँ के सपने को पूरा करने के लिए किंजल ने दिल्ली का रुख किया तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। बच्ची का साहस भी ऐसा था कि छोटे से जनपद से दिल्ली जैसी नगरी में आकर पूरी दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप किया वो भी एक बार नहीं बल्कि दो बार। किंजल ने 60 कॉलेजेस को टॉप करके गोल्ड मैडल जीता था।
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कहते हैं ना वक़्त की मार सबसे बुरी होती है। जब ऐसा महसूस हो रहा था कि सबकुछ सुधरने वाला है, तो जैसे उनके जीवन में दुखो का पहाड़ टूट पड़ा। माँ को कैंसर हो गया था। एकतरफ सुबह माँ की देख-रेख तथा उसके बाद कॉलेज।
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लेकिन किंजल कभी टूटी नहीं लेकिन ऊपर वाला भी किंजल का इम्तिहान लेने से पीछे नहीं रहा, परीक्षा से कुछ दिन पहले ही माताजी का देहांत हो गया।
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शायद ऊपर वाले को भी नहीं मालूम होगा कि ये बच्ची कितनी बहादुर है तभी तो दिन में माँ का अंतिम संस्कार करके, शाम में हॉस्टल पहुंचकर रात में पढाई करके सुबह परीक्षा देना शायद ही किसी इंसान के बस की बात हो। पर जब परिणाम सामने आया तो करिश्मा हुआ। इस बच्ची ने यूनिवर्सिटी टॉप किया और स्वर्ण पदक जीता।
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माँ का आइएएस बनने का सपना पूरा किया बेटियों ने
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किंजल बताती हैं कि कॉलेज में जब त्योहारों के समय सारा हॉस्टल खाली हो जाता था तो हम दोनों बहने एक दूसरे की शक्ति बनकर पढ़ने के लिए प्रेरित करती थी। फिर जो हुआ उसका गवाह सारा देश बना, 2008 में जब परिणाम घोषित हुआ तो संघर्ष की जीत हुई और दो सगी बहनों ने आइएएस की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण कर अपनी माँ का सपना साकार किया।
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किंजल जहाँ आईएएस की मेरिट सूची में 25 वें स्थान पर रही तो प्रांजल ने 252वें रैंक लाकर यह उपलब्धि हासिल की पर अफ़सोस उस वक़्त उनके पास खुशियाँ बांटने के लिए कोई नही था। किंजल कहती हैं:
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“बहुत से ऐसे लम्हे आए जिन्हें हम अपने पिता के साथ बांटना चाहते थे। जब हम दोनों बहनों का एक साथ आईएएस में चयन हुआ तो उस खुशी को बांटने के लिए न तो हमारे पिता थे और न ही हमारी मां।”
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किंजल अपनी माँ को अपनी प्रेरणा बताती हैं। दरअसल उनके पिता का जिस समय कत्ल हुआ था उस समय उन्होने आइएएस की परीक्षा पास कर ली थी और वे इंटरव्यू की तैयारी कर रहे थे। पर उनकी मौत के साथ उनका यह सपना अधूरा रह गया और इसी सपने को विधवा माँ ने अपनी दोनो बेटियों में देखा। दोनो बेटियों ने खूब मेहनत की और इस सपने को पूरा करके दिखाया।
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आख़िर इंसाफ़ मिला
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एक कहावत है कि “जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड” यानि देर से मिला न्याय न मिलने के बराबर है। जाहिर है हर किसी में किंजल जैसा जुझारूपन नहीं होता और न ही उतनी सघन प्रेरणा होती है, पर फिर भी इंसाफ़ इंसाफ़ होता है।
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फ़ैज़ाबाद की डीएम किंजल सिंह और उनके परिवार की कहानी बहुत ही भावुक और दर्दनाक है। किंजल सिंह 2008 में आईएएस में चयनित हुईं थी। आज उनकी पहचान एक तेज़-तर्रार अफ़सर के रूप में होती है। उनके काम करने के तरीके से जिले में अपराध करने वालों के पसीने छूटते हैं। लेकिन उनके लिए इस मुकाम तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नही था।
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मुझे मत मारो मेरी दो बेटियां हैं
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किंजल के पिता के आख़िरी शब्द थे कि ‘मुझे मत मारो मेरी छोटी बेटी है’। वो ज़रूर उस वक़्त अपनी चिंता छोड़ कर अपनी जान से प्यारी नन्ही परी का ख्याल कर रहे होंगे। किंजल की छोटी बहन प्रांजल उस समय गर्भ में थी। शायद अगर आज वह ज़िंदा होते तो उन्हे ज़रूर गर्व होता कि उनके घर बेटियों ने नहीं बल्कि दो शेरनियों ने जन्म लिया है।
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बचपन जहाँ बच्चों के लिए सपने संजोने का पड़ाव होता है। वहीं इतनी छोटी उम्र में ही किंजल अपनी माँ के साथ पिता के क़ातिलों को सज़ा दिलाने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने लगी। हालाँकि उस नन्ही बच्ची को यह अंदाज़ा नही था कि आख़िर वो वहाँ क्यों आती हैं। लेकिन वक़्त ने धीरे-धीरे उन्हे यह एहसास करा दिया कि उनके सिर से पिता का साया उठ चुका है।
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इंसाफ़ दिलाने के संघर्ष में जब माँ हार गयी कैंसर से जंग
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प्रारंभिक शिक्षा बनारस से पूरी करने के बाद, माँ के सपने को पूरा करने के लिए किंजल ने दिल्ली का रुख किया तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। बच्ची का साहस भी ऐसा था कि छोटे से जनपद से दिल्ली जैसी नगरी में आकर पूरी दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप किया वो भी एक बार नहीं बल्कि दो बार। किंजल ने 60 कॉलेजेस को टॉप करके गोल्ड मैडल जीता था।
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कहते हैं ना वक़्त की मार सबसे बुरी होती है। जब ऐसा महसूस हो रहा था कि सबकुछ सुधरने वाला है, तो जैसे उनके जीवन में दुखो का पहाड़ टूट पड़ा। माँ को कैंसर हो गया था। एकतरफ सुबह माँ की देख-रेख तथा उसके बाद कॉलेज।
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लेकिन किंजल कभी टूटी नहीं लेकिन ऊपर वाला भी किंजल का इम्तिहान लेने से पीछे नहीं रहा, परीक्षा से कुछ दिन पहले ही माताजी का देहांत हो गया।
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शायद ऊपर वाले को भी नहीं मालूम होगा कि ये बच्ची कितनी बहादुर है तभी तो दिन में माँ का अंतिम संस्कार करके, शाम में हॉस्टल पहुंचकर रात में पढाई करके सुबह परीक्षा देना शायद ही किसी इंसान के बस की बात हो। पर जब परिणाम सामने आया तो करिश्मा हुआ। इस बच्ची ने यूनिवर्सिटी टॉप किया और स्वर्ण पदक जीता।
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माँ का आइएएस बनने का सपना पूरा किया बेटियों ने
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किंजल बताती हैं कि कॉलेज में जब त्योहारों के समय सारा हॉस्टल खाली हो जाता था तो हम दोनों बहने एक दूसरे की शक्ति बनकर पढ़ने के लिए प्रेरित करती थी। फिर जो हुआ उसका गवाह सारा देश बना, 2008 में जब परिणाम घोषित हुआ तो संघर्ष की जीत हुई और दो सगी बहनों ने आइएएस की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण कर अपनी माँ का सपना साकार किया।
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किंजल जहाँ आईएएस की मेरिट सूची में 25 वें स्थान पर रही तो प्रांजल ने 252वें रैंक लाकर यह उपलब्धि हासिल की पर अफ़सोस उस वक़्त उनके पास खुशियाँ बांटने के लिए कोई नही था। किंजल कहती हैं:
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“बहुत से ऐसे लम्हे आए जिन्हें हम अपने पिता के साथ बांटना चाहते थे। जब हम दोनों बहनों का एक साथ आईएएस में चयन हुआ तो उस खुशी को बांटने के लिए न तो हमारे पिता थे और न ही हमारी मां।”
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किंजल अपनी माँ को अपनी प्रेरणा बताती हैं। दरअसल उनके पिता का जिस समय कत्ल हुआ था उस समय उन्होने आइएएस की परीक्षा पास कर ली थी और वे इंटरव्यू की तैयारी कर रहे थे। पर उनकी मौत के साथ उनका यह सपना अधूरा रह गया और इसी सपने को विधवा माँ ने अपनी दोनो बेटियों में देखा। दोनो बेटियों ने खूब मेहनत की और इस सपने को पूरा करके दिखाया।
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आख़िर इंसाफ़ मिला
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एक कहावत है कि “जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड” यानि देर से मिला न्याय न मिलने के बराबर है। जाहिर है हर किसी में किंजल जैसा जुझारूपन नहीं होता और न ही उतनी सघन प्रेरणा होती है, पर फिर भी इंसाफ़ इंसाफ़ होता है।
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किंजल इन भावुक पल में खुद को मजबूत कर कहती हैं:
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“सबसे ज्यादा भावुक करने वाली बात ये है कि मेरी मां जिन्होंने न्याय के लिए इतना लंबा संघर्ष किया आज इस दुनिया में नहीं है। अगर ये फैसला और पहले आ जाता तो उन सब लोगों को खुशी होती जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। ”
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जिलाधिकारी खीरी के पद पर रहते हुए इन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए जिसमे शख्सियत, देवी अवार्ड्स, हाफ मैराथन मुंबई, इंदौर में राष्ट्रीय अवार्ड, राज्य निर्वाचन आयोग मुख्य है।
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साधक का अर्थ है : जो अब सिर्फ सुनना नहीं चाहता, समझना नहीं चाहता, बल्कि प्रयोग भी करना चाहता है; प्रयोग साधक का आधार है |
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अब वह कुछ करके देखना चाहता है | अब उसकी उत्सुकता नया रूप लेती है, कृत्य बनती है | अब वह ध्यान के सम्बन्ध में बात ही नहीं करता, ध्यान करना शुरू करता है | क्योंकि बात से क्या होगा, बात में से तो बात निकलती रहती है | बात तो बात ही है, पानी का बबूला है, कोरी गर्म हवा है -- कुछ करें | जीवन रूपांतरित हो कुछ, कुछ अनुभव में आये |
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सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
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गुरुदेव द्वारा प्रदत्त आराधना पथ अतयंत सरल आडम्बर और कर्मकांडो से रहित हे। नाम (संजीवनी मंत्र) बहुत छोटा है । कम पढ़े लिखे साधक भी आसानी से याद कर सकते हे। जबकि कई अन्य अराधनाओ में मंत्र जटिल एवं लंबे होते हे। मंत्र जपते समय किसी भी कर्मकांड की जरुरत नहीं है। कही पर भी कभी भी जप सकते हे। ध्यान कही भी बैठ कर किया जा सकता है । किसी प्रकार के तिलक छापे 'विशेष रंग के वस्त्र पहनने ' रंग विशेष का आसन बिछाने की जरुरत नहीं होती है। जैसा की अन्य अराधनाओ में होता है।
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अन्य अराधनाओ में आराधना का परिणाम कब मिलेगा कोई गारंटी नहीं है। गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सिद्धयोग में परिणाम समर्पित साधक को मात्र 15 मिनट में गुरुदेव की तस्वीर का ध्यान करने के दौरान प्राप्त हो जाता है। कई दूसरी अराधनाओ में साधक की जेब सबसे पहले खाली होती है। जबकि इस आराधना में जेब भर जाती है। लोगो के नशे छूट जाते है पैसा बचता है ,बीमारिया ठीक हो जाती हे,पैसा बचता है । गुरुदेव ने मंत्र cd में अपने उपदेशो में फ़रमाया है की :-" आपको किस काम में फायदा है किस कम में घाटा है ये आपको पहले ही दिख जायेगा तो आप जीवन में कभी फेल्योर (असफल) नहीं होंगे " साधक का व्यवहार बोलने का लहजा खान पान रहन सहन धीरे धीरे सात्विक होने लगता है। व्यसन और व्यसनी लोग साधक से स्वतः ही दूर हो जाते है।
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इतनी सरल आराधना को अगर कलयुग मै बार बार बताने के बाद भी कोई धारण नहीं कर पाता है तो यह उस व्यक्ति को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए।
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“सबसे ज्यादा भावुक करने वाली बात ये है कि मेरी मां जिन्होंने न्याय के लिए इतना लंबा संघर्ष किया आज इस दुनिया में नहीं है। अगर ये फैसला और पहले आ जाता तो उन सब लोगों को खुशी होती जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। ”
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जिलाधिकारी खीरी के पद पर रहते हुए इन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए जिसमे शख्सियत, देवी अवार्ड्स, हाफ मैराथन मुंबई, इंदौर में राष्ट्रीय अवार्ड, राज्य निर्वाचन आयोग मुख्य है।
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साधक का अर्थ है : जो अब सिर्फ सुनना नहीं चाहता, समझना नहीं चाहता, बल्कि प्रयोग भी करना चाहता है; प्रयोग साधक का आधार है |
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अब वह कुछ करके देखना चाहता है | अब उसकी उत्सुकता नया रूप लेती है, कृत्य बनती है | अब वह ध्यान के सम्बन्ध में बात ही नहीं करता, ध्यान करना शुरू करता है | क्योंकि बात से क्या होगा, बात में से तो बात निकलती रहती है | बात तो बात ही है, पानी का बबूला है, कोरी गर्म हवा है -- कुछ करें | जीवन रूपांतरित हो कुछ, कुछ अनुभव में आये |
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सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
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गुरुदेव द्वारा प्रदत्त आराधना पथ अतयंत सरल आडम्बर और कर्मकांडो से रहित हे। नाम (संजीवनी मंत्र) बहुत छोटा है । कम पढ़े लिखे साधक भी आसानी से याद कर सकते हे। जबकि कई अन्य अराधनाओ में मंत्र जटिल एवं लंबे होते हे। मंत्र जपते समय किसी भी कर्मकांड की जरुरत नहीं है। कही पर भी कभी भी जप सकते हे। ध्यान कही भी बैठ कर किया जा सकता है । किसी प्रकार के तिलक छापे 'विशेष रंग के वस्त्र पहनने ' रंग विशेष का आसन बिछाने की जरुरत नहीं होती है। जैसा की अन्य अराधनाओ में होता है।
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अन्य अराधनाओ में आराधना का परिणाम कब मिलेगा कोई गारंटी नहीं है। गुरुदेव द्वारा प्रदत्त सिद्धयोग में परिणाम समर्पित साधक को मात्र 15 मिनट में गुरुदेव की तस्वीर का ध्यान करने के दौरान प्राप्त हो जाता है। कई दूसरी अराधनाओ में साधक की जेब सबसे पहले खाली होती है। जबकि इस आराधना में जेब भर जाती है। लोगो के नशे छूट जाते है पैसा बचता है ,बीमारिया ठीक हो जाती हे,पैसा बचता है । गुरुदेव ने मंत्र cd में अपने उपदेशो में फ़रमाया है की :-" आपको किस काम में फायदा है किस कम में घाटा है ये आपको पहले ही दिख जायेगा तो आप जीवन में कभी फेल्योर (असफल) नहीं होंगे " साधक का व्यवहार बोलने का लहजा खान पान रहन सहन धीरे धीरे सात्विक होने लगता है। व्यसन और व्यसनी लोग साधक से स्वतः ही दूर हो जाते है।
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इतनी सरल आराधना को अगर कलयुग मै बार बार बताने के बाद भी कोई धारण नहीं कर पाता है तो यह उस व्यक्ति को उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए।
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Guru Siyag Siddha Yoga The Way, Meaning, Means, and Method of meditation.
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more about #GuruSiyag or #SiddhaYoga in various(National & International) newspapers--->http://spirtualworld.blogspot.com/search/label/news-paper
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