Life mantra summary - Naadbrahma Sanjeevani Mantra Jap नाद-ब्रह्म शब्दब्रह्म
नादब्रह्म--मोहनकी मुरली
'नाद ही परम ज्योति है और नाद ही स्वयं परमेश्वर हरि है।' नाद अनादि है। जबसे सृष्टि है, तभी से नाद है। महाप्रलय के बाद सृष्टिके आदि में जब परमात्माका यह शब्दात्मक संकल्प होता है कि 'मैं एक बहुत हो जाऊँ',
तभी इस अनादि नाद की आदि-जागृति होती है। यह नादब्रह्म ही शब्द-ब्रह्म का बीज है । वेदों का प्रादुर्भाव इसी नादसे होता है। नादका उद्भव परमेश्वरकी सच्चिदानन्दमयी भगवती स्वरूपा-शक्तिसे होता है और इस नाद से ही बिन्दु उत्पन्न होता है। यह बिन्दु ही प्रणव है और इसीको बीज कहते हैं।
'सच्चिदानन्दरूप वैभवयुक्त पूर्ण परमेश्वर से उनकी स्वरूपाशक्ति आविर्भुत हुई, उससे नाद प्रकट हुआ और नादसे बिन्दुका प्रादुर्भाव हुआ वही बिन्दु नाद, बिन्दु तथा बीजरूपसे तीन प्रकारका माना गया है। बीजरूप बिन्दु जब भेदको प्राप्त हुआ, तब उससे अव्यक्त और व्यक्त प्रकारके हब्द प्रकट हुए। व्यक्त शब्द ही श्रुतिसम्पन्न श्रेष्ठ शब्दब्रह्म हुआ।
यही नाद क्रमश: स्थूलरूपको प्राप्त होता हुआ समस्त जगत में फैल जाता है। पाँच भूतों में सबसे पहले महाभूत आकाशका गुण शब्द है। यह नादका ही एक रूप है। आदि-नादरूप बीजसे ही पञ्ञतत्त्वकी उत्पत्ति मानी गयी है। इस स्थूल नादकी उत्पत्ति अग्नि और प्राणके संयोग से होती है। ब्रह्म-ग्रन्थिमें प्राण रहता है, इस प्राणको अग्नि प्रेरणा करती है। अभ्रिमें यह प्रेरणा आत्मासे प्रेरित चित्तके द्वारा होती है। तब प्राणवायु अग्नि से प्रेरित होकर नाद को उत्पन्न करता है । यह नाद नाभि में अति सूक्ष्म, हृदयमें सूक्ष्म, कण्ठमें पुष्ट, मस्तकमें अपुष्ट और वदन में कृत्रिम रूपसे आकार धारण करता है। कहते हैं कि 'न' कार प्राण है और 'द' कार वह्लि है और प्राण तथा वह्निके संयोगसे उत्पन्न होनेके कारण ही इसको 'नाद' कहते हैं।
योगी लोग इसी नादकी उपासना करके ब्रह्म को प्राप्त किया करते हैं।
हठयोग-शास्त्रों में इसका बड़ा विस्तार है। मुक्तासन और शाम्भवी मुद्रा साथ इस नादका अभ्यास किया जाता है। इस नादसाधना से सब प्रकारकी सिद्धियाँ मिलती हैं।
अनाहतनाद योगियोंका परम ध्येय है। शास्त्रोंमें नाद को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-- चारों पुरुषार्थों की सिद्धि का एक साधन माना है | नादके बिना जगत् का कोई भी कार्य नहीं चल सकता | पाञ्नभौतिक जगत्में आकाश सर्वप्रधान है और आकाशका प्राण नाद ही है। इसीसें जगत्को नादात्मक कहते हैं। नादका माहात्म्य अपार है।
संगीतदर्पण की एक सुन्दर उक्ति हैं कि देवी सरस्वतीजी नादरूपी समुद्रमें डूब जाने के भय से ही वक्षस्थल में सदा तुँबी धारण किये रहती हैं।
संगीत और स्वर का तो प्राण ही नाद है। गीत, नृत्य और वाद्य नादात्मक हैं।
नादद्वारा ही वर्णो का स्फोट होता है | वर्ण से पद और पद से वाक्य बनता है । इस प्रकार समस्त जगत् ही नादात्मक है।
यह नाद मूलतः परमात्मा का ही स्वरूप है। जब भगवान् लीलाधाममें अवतीर्ण होते हैं, तब उनके दिव्य विग्नह में जितनी कुछ वस्तुएँ होती हैं, सभी दिव्य सच्चिदाननदमयी भगवत्स्वरूपा होती हैं। इसी से अवतार विग्नह की बाणीमें इतना माधुर्य होता है कि उसको सुनते-सुनते चित्त कभी अघाता ही नहीं और यह सोचता है कि लाखों-करोड़ों कानों से यह मधुर ध्वनि सुनने को मिले तब भी तृप्ति होनी कठिन है।
चिदानन्दमय श्रीकृष्णस्वरूपमें तो इस नादका भी पूर्णावतार हुआ था | श्यामसुन्दरकी सच्चिदानन्दमयी मुरली का मधुर निनाद ही यह नादावतार था। इसी से उस मुरलीनिनाद ने प्रेममयय ब्रजधाम में जडको चेतन और चेतन को जड बना दिया।
“क' कार सचिदानन्दविग्रह नायक श्रीकृष्ण हैं। 'ई'कार महाभावस्वरूपा प्रकृति श्रीराधा हैं। 'ल'कार इन नायक-नायिकाके मिलनात्मक प्रेमसुखका आनन्दात्मक निर्देश है और नाद-बिन्दु इस माधुर्यामृत सिन्धु को परिस्फुट करनेवाले हैं।''
यह श्रीराधाकृष्णका मिलन दिव्य है । यह आत्मरमण है। ('आत्मारामोअप्यरी-रमत') यह अपने ही स्वरूप में सचिदानन्द भगवान्की लीला है। इस लीलाका विकासरूप मुरलीनिनाद से ही होता है । यह मुरलीनाद स्वयं सच्चिदानन्दमय है, ब्रह्मरूप है। यही नादब्रह्म है।
समर्थ सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग इसी संजीवनी मंत्र की निशुल्क शक्तिपात दीक्षा देते हैं ये मंत्र केवल और केवल गुरुदेव की आवाज में ही काम करता है(किसी भी अन्य माध्यम से नहीं), इस संजीवनी मंत्र को गुरुदेव की आवाज में सुनना ही शक्तिपात दीक्षा है, तत्काल आपकी आराधना शुरू हो जाती है और उपरोक्त परिणाम केवल नाम जप और ध्यान से मिलते हैं बस इतनी सी आराधना है, इसी से परिणाम मिलते हैं
1 नाम जप(बिना होठ और जीभ हिलाये मन ही मन संजीवनी मंत्र का जप) और
2 ध्यान(केवल १५-१५ मिनट सुबह-शाम खाली पेट)
गुरुदेव की आवाज में मंत्र किसी भी माध्यम से सुना जा सकता है, पहली बार मंत्र केवल और केवल गुरुदेव की आवाज में सुनना है, गुरुदेव की आवाज के बिना इस संजीवनी मंत्र की शक्ति काम नहीं करती और परिणाम नहीं मिलते, इसके अलावा इस साधना में किसी भी तरह का कोई भी बंधन, कोई भी कर्मकांड , कोई भी आडम्बर या कोई भी दिखावा नही हैं
आपकी ईमानदारी,समर्पण,और पॉजिटिव एप्रोच ही आपको आगे बढ़ाएंगे, और सारे परिणाम नाम जप से मिलेंगे,
जितना अच्छा नामजप होगा उतना अच्छा ध्यान लगेगा, जितना अच्छा ध्यान लगेगा उतनी अच्छी प्रगति होगी
जप अच्छे से करेंगे तो जल्दी ही अजपा जप में रूपांतरित हो जायेगा, फिर अजपा जप नाद में और आप अपने असली स्वरूप सच्चिदानंद (सत + चित + आनंद) में रूपांतरित हो सकते हैं अगर सीरियसली आराधना की तो,
ये मानवता का दिव्य रूपांतरण करने वाला, कायाकल्प करने वाला विज्ञान है और पूर्णतः निशुल्क है, आपको कही जाने की जरूरत नहीं है कोई भी पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है, कोई दिखावा आडंबर करने की जरूरत नहीं है, (आपको जो कुछ भी मिलेगा आपके अंदर से मिलेगा), अपने असली स्वरूप में रूपांतरित हो जाओगे
आपकी साधना मंगलमय हो
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