भागवत मुहूर्त के क्षण
"भागवत मुहूर्त" ऐसे क्षण आते हैं जब दिव्य आत्मा मनुष्यों के बीच विचरती है और प्रभु का श्वास हमारी सत्ता के जलो पर फैल जाता है और फिर ऐसे काल होते हैं जब वह लौट जाता है और मनुष्य अपने अहंकार के बल या दुर्बलता में काम करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं l पहले काल ऐसे होते हैं कि जरा सा प्रयास भी बड़े परिणाम लाता है, और नियति को बदल देता है l दूसरी ऐसी अवधियां है जब थोड़े से परिणाम लाने में बहुत परिश्रम लगता है lयह सच है कि दूसरी अवधियां पहली के लिए तैयारी कर सकती है, हो सकता है कि वे यज्ञ का जरा सा धुआं है जो स्वर्ग तक जाकर भागवत उदारता की वर्षा को नीचे ले आता है l अभागा है वह मनुष्य या वह राष्ट्र जो भागवत मुहूर्त के आने पर सोता हुआ या उसके उपयोग के लिए अप्रस्तुत हो, क्योंकि स्वागत के लिए दिया बाती संजोकर नहीं रखे गए और पुकार के लिए कान बंद है l लेकिन तिगुना धिक्कार उन्हें जो बलवान और प्रस्तुत होते हुए शक्ति का अपव्यय करते हैं या उस मुहूर्त का दुरुपयोग करते हैं l उनके लिए यह ऐसी क्षति है जिसे सुधारा नहीं जा सकता या फिर सत्यानाश l भागवत मुहूर्त में अपनी अंतरात्मा से समस्त आत्म प्रवंचना और पाखंड को बुहार डाल ताकि तू सीधे अपनी आत्मा में देख सके और उसे बुलाने वाले को सुन सके l समस्त कपट जो एक समय तुझे स्वामी की नजरों से और आदर्श के प्रकाश से बचाता था, अब तेरे कवच में एक छीद्र बन जाता है और प्रहार को आमंत्रण देता है l अगर तू क्षण भर के लिए जीत भी जाए तो तेरे लिए और बुरा है क्योंकि प्रहार बाद में आएगा और तुझे तेरी विजय के बीच ही धर पटकेगा परंतु शुद्ध होकर समस्त भय को एक ओर फेंक दें, यह मुहूर्त प्राय: भयंकर होता है, यह अग्नि है, बबूला है, तूफान है, भागवत कोप के कोल्हू का रौंदना है l लेकिन उसमें जो अपने उद्देश्य के सत्य पर खड़ा रह सकेगा वह गिर भी पढ़े तो फिर से खड़ा होगा l वह भले आंधियों के पंख पर उड़ता दिखाई दे फिर भी वह लौट आएगा l सांसारिक समझ को अपने कानों में बहुत नजदीक से खुसर पुसर ना करने दें क्योंकि यह अप्रत्याशित की, गणनातीत की, अपरिमय की घड़ी है l दिव्य प्राण की शक्ति को अपने तुच्छ यंत्रों से न नाप, विश्वास रख और आगे बढ़ता चल l लेकिन सबसे बढ़कर अपनी अंतरात्मा को अहंकार के शोर-शराबे से दूर रख, भले क्षण भर के लिए क्यों ना हो l तब रात के समय एक आग तेरे आगे चलेगी और तूफ़ान तेरा सहायक होगा और तेरी ध्वजा महानता के उस ऊंचे से ऊंची ऊंचाई पर पर पर फहराएगी जिसे जीतना था l - - (महर्षि श्री अरविंद). ,,,,,,,,,,,,, " भारत में वह भागवत मुहूर्त 24 नवंबर 1926 को ही प्रकट हो गया था लेकिन इतने वर्षों बाद भी भारतीय , भारत भागवत शक्ति के प्रादुर्भाव से अनभिज्ञ हैं"
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