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Meditation Kaise Kare: 15 Minute Deep Sleep Meditation Benefits - [image: Meditation Kaise Kare: 15 Minute Deep Sleep Meditation Benefits]1 year ago
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Self statement of Manglaram Suthar
२५ साल पुरानी अफीम की लत से मुक्ति
मैं मंगलाराम सुथार, बावरली (शेरगढ) उम्र ६२ वर्ष।
यह १९९४ की घटना हैं। मैं मेरे गांव का सबसे बडा अफीमची था। लगभग २-३ तौला अफीम रोजाना खा जाता था। करीब २५ साल से यह बुरी लत पड गई थी। इस कारण मेरे परिवार की बडी दयनीय स्थिति हो गई थी। एक दिन मेरे पडौसी चुतराराम महाराज अमावस बताने मेरे घर आए, जो मेरे से भी बडे बंदाणी (अफीमची) थे। हम दोनों के बीच अच्छी मित्रता थी। जब भी वे मेरे पास आते तो एक-दो दिन के लिए रुक ही जाते थे, परन्तु उस दिन आये तो मैंने उन्हें खूब मान-मनुहार की लेकिन उन्होंने अफीम तो क्या,चाय तक नहीं पी और जाने के लिये रवाना हो गये, तब मैंने आश्चर्य से कहा-महाराज क्या बात हो गई?ऐसा कैसे हुआ?क्या वास्तव में आपने अफीम छोड दिया है?तो वे इतना ही बोले कि, यह सब गुरु-कृपा से छूट गया है। मुझे बडा आश्चर्य हुआ ऐसे गुरु कौन हैं?जरा मुझे भी बताओ-तो उन्होंने चलते हुए ही कह दिया कि कभी समय आने पर बताऊंगा। इस समय जल्दी में हूँ। महाराज के चले जाने के बाद मैं एकदम गम्भीर होकर सोचने लगा। ऐ गुरु केडा है?जो अफीम जैसी खतरनाक चीज से चुतरा महाराज को मुक्त कर दिया हैं इसकी तो मेरे से भी बुरी हालत थी। इस तरह सोचते-सोचते मैं रोजाना गंभीर हो जाता था किन्तु विवश था। महाराज की दोस्ती अफीम से थी उनका अफीम छूट गया, तो उन्होंने मेरे घर आना ही छोड दिया। इस तरह लगभग छः माह हो गये मैं बहुत दुःखी रहने लगा। परन्तु मेरे मन में ऐ गुरु केडा। ऐ गुरु केडा। ऐसी अनवरत रट लग गई। एक दिन संयोगवश दोपहरी में मेरी आंख लग गई-मेरे अन्दर गुरुदेव का चिन्तन चल रहा था। मैं न गुरुदेव को नाम से जानता था न मेरे पास फोटो था बस चुतरा महाराज के गुरु केडा है-ऐसा ही सोच सकता था। गहरी नींद-स्वप्न में मुझे एक साथ सफेद वस्त्रधारी व दाढी वाले भंगवा धारी बाबा दिखाई दिये और मेरे अगल-बगल (दायें-बायें) सिर पर हाथ धर कर बैठ गये और मेरे आगे एकदम शुद्ध अफीम (दूध) की ५ किलो की थैली रख दी और बोले कि तुं तो बहुत बडा बंदाणी है। ले आज जी भर के खा। इतना सारा-अफीम देखकर मैं बोला! बाबा यह अफीम मैं नहीं खरीद सकता। यह मेरी हैसियत से बाहर है। तब वे बोले भाई हम तुम्हें मुफ्त में खिलाने आये हैं तूं निःसंकोच इसे खा। तब मैंने संकोच वश अंगुली भर लेने की कोशिश की तो सफेदवस्त्र धारी (बाबा) ने मेरा हाथ पकडकर थैली के अन्दर डाल दिया। मेरा हाथ पूरा भर चुका था। मैं चुप चाप घबरा कर चाट गया। ऐसा अच्छा अफीम मैं पहली बार महसूस कर रहा था। दोनों बाबा अन्तर्धान हो गये थे। किन्तु मेरा जी बहुत तेजी से मचलने लगा। मुझे लगा कि मैं मकान की छत पर बैठा हूँ। मुझे उल्टी के लिये नीचे उतरना पडेगा तब जोरदार उल्टी होने लगी तब अचानक मेरी आँख खुल गई तो क्या देखता हूँ कि मैं मेरे घर के आगे चारपाई पर हूँ। और मुझे वास्तव में लगातार उल्टीयां शुरू हो गई इस प्रकार रह-रहकर उस दिन कई बार उल्टीयां हुई और मुझे अफीम से अपने-आप घृणा होने लगी। परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा था। स्वप्न में आकर कैसे अफीम खिला दिया और अब मुझे अफीम क्यों नहीं अच्छा लग रहा है ? काफी सोचने के बाद मेरे ध्यान में आया कि यह जरूर चुतरा महाराज के गुरु का चमत्कार हैं। दूसरे दिन सुबह जल्दी मेरी आंख खुल गई। आज मैंने चुतरा महाराज के पास जाने का निश्चय कर लिया। मुझे अफीम की तलब नहीं हो रही थी। परन्तु अफीम के भय के कारण थोडा जबरदस्ती से खा लिया लेकिन वह पूरी तरह बेअसर रहा। रोजाना मैं लगभग ९ बजे तक खाट से दूर नहीं जा पाता था। परन्तु उस दिन मैं चुतरा महाराज के घर सुबह जल्दी उठकर पैदल ही गया। उनका घर मेरे घर से तीन किलोमीटर दूर है। जब मैंने उनके घर जाकर महाराज के बारे में पूछा तो पता लगा कि वे बालेसर गए हुए थे। मैं घरवालों को कहकर आ गया कि महाराज के घर आते ही मेरे घर भेज देना और उनसे कहना कि मुझे भी गुरुदेव के पास ले जावें। मुझे भी अफीम छोडना है।
३-४ दिन बाद महाराज मेरे घर आये और बोले कि अब चिन्ता मत करो। अपने गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग का बालेसर में ’शक्तिपात-दीक्षा एवं ध्यान-योग कार्यक्रम‘ हैं। आपको जरूर ले जाऊंगा। इस प्रकार सन् १९९४ में बालेसर कार्यक्रम में मैंने गुरुदेव से विधिवत दीक्षा प्राप्त की। गुरुदेव के प्रताप से अफीम पहले ही छोड कर दूर भाग चुकी थी परन्तु मैं अज्ञानता वश खाता रहा था लेकिन मेरे शरीर पर बिल्कुल बे असर था। गुरुदेव के सान्ध्यि पाते ही मुझे दिव्य-दर्शन की जानकारी मिल गई थी। आज मैं बिल्कुल अफीम-मुक्त एवं स्वस्थ व्यक्ति हूँ और सारा दिन काम करता हुआ थकता नहीं हूं। मैं मेरे इलाके में जीता-जागता बहुत बडा उदाहरण हूँ। मुझे देखकर लोगों को भारी ताज्जुब होता हैं कि बगैर कोई दवा दारू व प्रयास के कैसे अफीम मुक्त हो गया है। सद्गुरु कृपा से मीरा पर जहर का असर न होना मुझे पूर्णतः समझ में आ गया। मैंने १९९४ से दीक्षा ली तब से नियमित नाम-जाप और ध्यान कर रहा हूँ, लेकिन मैंने दूसरे किसी भी व्यक्ति को नहीं बताया क्योंकि मैंने सोचा यदि मैं औरों को बताऊंगा तो वे मेरे गुरुजी को निजर डाल देंगे।
लेकिन अब मैं साधकों से मिला तो उन्होंने कहा कि गुरुदेव के दर्शन का तो ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार करना चाहिए।
- मंगलाराम सुथार (उम्र ६२ वर्ष)
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