की उसने अपने बंदे की मदद के लिए तुम्हें चुना है वरना वो तो सब के लिए अकेला ही काफ़ी है।
धार्मिक जगत में दो तरह के लोग है,एक भूतकाल का गुणगान करने वाले,धर्मार्थी लोग...दूसरे रहस्यवादी,जिनका सब ज्ञान
अनुभव जनित होता है,रहस्यवाद को अपना कर ही कुछ जाना और समझा जा सकता है, धर्मार्थी लोग लोग भजन गाना,मन्दिरो मे घन्टिया बजाने,आरतिया गाने को ही धर्म मान बैठे है,जो कि मूर्खता की पराकाष्टा है,..वर्तमान में जीना,और भविष्य के लिये, रहस्यवादी साधना ही धर्म का मौलिक रूप है, स्वयम को जानना ही रहस्यवाद की प्रथम अवस्था है,....सभी प्रबुध्द ,सूझवान और समझदार लोगौ को आमंञण..सिध्दयोगा,एक कल्पतरू का पेड़ है,भावना के अनुसार क्रियाशील होता है,आऔ इसका अभ्यास करे.........सिद्ध योग का अभ्यास किया नही जा सकता , यह अपने आप होता है,सिद्ध योग के अभ्यास का मतलब है,हमेशा, धैर्य , समभाव, कृतज्ञता, और आनंद के राज्य में रहना
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