हमारे ब्रह्मांड का मुख्य घटक द्रव्य है, इसे हम दो भागों में बांट सकते
हैं, 1 सूक्ष्म 2 स्थूल द्रव्य सूक्ष्म रूप में रहता है, जबकि पृथ्वी सहित
अन्य ग्रहों एवं उपग्रहों पर सारा द्रव्य स्थूल रूप में रहता है। हमारा
सारा ब्रह्मांड गतिशील एवं परिवर्तनशील है हम देखते हैं कि यहां प्रत्येक
जीव एवं वनस्पति का जन्म होता है एवं उसका जीवन काल पूरा होने पर मृत्यु
होती है, इसी प्रकार निर्जीव पदार्थ बनते एवं नष्ट होते रहते हैं, परंतु
वास्तविकता यह नहीं है यहां न किसी का जन्म होता है न किसी की मृत्यु होती
है यहां सिर्फ द्रव्य का रूप परिवर्तन होता है। इसी को हम जन्म मृत्यु का
नाम दे देते हैं, इसलिए इस संसार को मायावी जगत या नश्वर जगत भी कहते हैं।
यह द्रव्य ईश्वर से लेकर स्थूल पदार्थों तक अपना रूप परिवर्तन करने में
सक्षम होता है, सूक्ष्म द्रव्य जैसे प्रकाश तरंग शब्द विचार मन आदि स्थूल
पदार्थ जैसे सजीव निर्जीव ग्रह उपग्रह आदि, सब इसी द्रव्य से उत्पन्न होते
हैं एवं इसी द्रव्य में लीन होते हैं। स्वयं ब्रह्मांड भी इससे अछूता नहीं
है इसका भी जन्म एवं मृत्यु होती है हमारा सूर्य अपने अंतिम समय में फैलने
लगता है एवं अपने सभी ग्रहों को भस्म कर अपने में लीन कर लेता है इसके बाद
इसका ठंडा होना एवं सिकुडना शुरू होता है अंत में यह ब्लेक होल एक कृष्ण
विवर में बदल जाता है जिसमें कि असीमित गुरूत्वाकर्षण होता है इतना कि
यहां से कोई तरंग या प्रकाश भी परावर्तित नहीं हो सकता अत: इन्हें किसी
प्रकार देखा नहीं जा सकता । वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में इनकी उपस्थिति
का पता लगा लिया है, इसी प्रकार जब ब्रह्मांड के सभी सूर्य एवं तारे कृष्ण
विवर में परिवर्तित हो जाते हैं तब ये अपने असीमित गुरूत्वाकर्षण के कारण
एक दूसरे में समा जाते हैं एवं एक पिंड का रूप ले लेते हैं इस पिंड में
ब्रह्मांड का सारा द्रव्य ईश्वर रूप में होता है। इतने अधिक दबाव पर
द्रव्य परमाणु या अन्य किसी रूप में नहीं रह सकता इसी को जगत का ईश्वर में
लीन होना कहते हैं। जब इस पिंड का संपीडन अपने चरम बिंदु पर पहुंचता है तब
इसमें महाविस्फोट होता है इस महा विस्फोट के कारण ब्रह्मांड असंख्य वर्षों
तक फैलता रहता है।
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