सूक्ष्म शरीर के लिए कुछ भी दुर्गम/अभेद नहीं
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं कि "समाधि में मन वायुरहित स्थान पर
स्थित हुई दीपक की लौ के समान स्थिर व शान्त हो जाता है।'' आज के इस
अशान्त तथा भौतिकतावादी वातावरण में जो भी साधक ध्यान करते हैं वे विश्व
का कल्याण करते हैं क्योंकि "जो पिंडे सो ब्रह्माण्डे''। जब-जब एक भी
चित्त शान्त होता है, तो शान्ति से पूर्ण तरंगे ब्रह्माण्ड में भी शान्ति
का संचार करती हैं। ऐसे ही यदि अधिक से अधिक लोग ध्यान करें तो जगत में
शान्ति स्थापित करने में ये बहुत बड़ा योगदान होगा, क्यूँकि हमारे भीतर की
प्रकृति ही बाहर की प्रकृति को निर्धारित करती है। आज के युग में सबसे
अधिक जिस वस्तु की आवश्यकता है वह है-शान्ति। तो क्यूँ न हम सब प्रभु के
दिए जीवन में से थोड़ा-थोड़ा समय ध्यान के लिए लगाकर स्वयं को तथा विश्व को
शान्ति देने का महान कार्य करें? ध्यान करते समय व्यक्ति को कोई विशिष्ट
अनुभूतियाँ होती हैं, कुछ सिद्धियाँ भी प्राप्त हो जाती हैं, जिनमें से
सबसे अधिक चमत्कृत करने वाली सिद्धि है सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर से
बाहर निकलकर विचरण करना। सूक्ष्म शरीर के लिए कुछ भी दुर्गम नहीं कुछ भी
अभेद्य नहीं। वहाँ देशकाल की सीमाऐं पिघल जाती हैं। सूक्ष्म शरीर भूत,
भविष्य, वर्तमान तीनों कालों में किसी भी स्थान तक यात्रा कर सकता है। ऐसे
में सूक्ष्म शरीर स्थूल के साथ एक चाँदी की तरह चमकती डोर से जुड़ा रहता
है। प्राचीनकाल में ऋषि मुनि इसी के माध्यम से बैठे-बैठे ही सभी स्थानों
पर घटित होने वाली घटनाओं को जान लेते थे तथा त्रिकालदर्शी हो जाते थे।
साथ ही वे विचारों के आदान-प्रदान को भी ध्यान के द्वारा ही बैठे-बैठे कर
लेते थे।
Please forward this message and save the life of human beings...
Thank You for having patience and reading this.
Thank You for having patience and reading this.
0 comments:
Post a Comment