श्लोक 6 . 15
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः |
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति || 15||
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति || 15||
युञ्जन् – अभ्यास करते हुए; एवम् – इस प्रकार से; सदा – निरन्तर; आत्मानम् – शरीर, मन तथा आत्मा ; योगी – योग का साधक; नियत-मानसः – संयमित मन से युक्त; शान्तिम् – शान्ति को; निर्वाण-परमाम् – भौतिक अस्तित्व का अन्त; मत्-संस्थाम् – चिन्मयव्योम (भवद्धाम) को; अधिगच्छति – प्राप्त करता है।
इस प्रकार शरीर, मन तथा कर्म में निरन्तर संयम का अभ्यास करते हुए संयमित मन वाले योगी को इस भौतिक अस्तित्व की समाप्ति पर भगवद् धाम की प्राप्ति होती है।
अब योगाभ्यास के चरम लक्ष्य का स्पष्टीकरण किया जा रहा है | योगाभ्यास किसी भौतिक सुविधा की प्राप्ति के लिए नहीं किया जाता, इसका उद्देश्य तो भौतिक संसार से विरक्ति प्राप्त करना है।
जो कोई इसके द्वारा स्वास्थ्य-लाभ चाहता है या भौतिक सिद्धि प्राप्त करने का इच्छुक होता है वह भगवद्गीता के अनुसार योगी नहीं है, न ही भौतिक अस्तित्व की समाप्ति का अर्थ शून्य में प्रवेश है, क्योंकि यह कपोलकल्पना है।
भगवान् की सृष्टि में कहीं भी शून्य नहीं है | उलटे भौतिक अस्तित्व की समाप्ति से मनुष्य भगवद धाम में प्रवेश करता है | भगवद्गीता में भगवद् धाम को भी स्पष्टीकरण किया गया है कि यह वह स्थान है जहाँ न सूर्य की आवश्यकता है, न चाँद या बिजली की | आध्यात्मिक राज्य के सारे लोक उसी प्रकार से स्वतः प्रकाशित हैं, जिस प्रकार सूर्य द्वारा यह भौतिक आकाश।
वैसे तो भगवद् धाम सर्वत्र है, किन्तु चिन्मयव्योम तथा उसके लोकों को ही परमधाम कहा जाता है।
एक पूर्णयोगी जिसे भगवान् कृष्ण का पूर्णज्ञान है जैसा कि यहाँ भगवान् ने स्वयं कहा है (मच्चितः, मत्परः, मत्स्थान्म्) वास्तविक शान्ति प्राप्त कर सकता है और अन्ततोगत्वा कृष्णलोक या गोलोक वृन्दावन को प्राप्त होता है।
ब्रह्मसंहिता में (५.३७) स्पष्ट उल्लेख है – गोलोक एव निव सत्यखिलात्मभूतः – यद्यपि भगवान् सदैव अपने धाम में निवास करते हैं, जिसे गोलोक कहते हैं, तो भी वे अपनी परा-आध्यात्मिक शक्तियों के कारण सर्वव्यापी ब्रह्म तथा अन्तर्यामी परमात्मा हैं | कोई भी कृष्ण तथा विष्णु रूप में उनके पूर्ण विस्तार को सही-सही जाने बिना वैकुण्ठ में या भगवान् के नित्यधाम (गोलोक वृन्दावन) में प्रवेश नहीं कर सकता ।
अतः कृष्णभावनाभावित व्यक्ति ही पूर्णयोगी है क्योंकि उसका मन सदैव कृष्ण के कार्यकलापों में तल्लीन रहता है (स वै मनः कृष्णपदारविन्दयोः) | वेदों में (श्र्वेताश्र्वतर उपनिषद् ३.८) भी हम पाते हैं – तमेव विदित्वाति मृत्युमेति – केवल भगवान् कृष्ण को जानने पर जन्म तथा मृत्यु के पथ को जीता जा सकता है |
दूसरे शब्दों में, योग की पूर्णता संसार से मुक्ति प्राप्त करने में है, इन्द्रजाल अथवा व्यायाम के करतबों द्वारा जनता को मूर्ख बनाने में नहीं ।।
एक गाय को मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। हाथी को भी नहीं और शेर को भी नहीं । मोक्ष केवल मानव को प्राप्त हो सकता है।
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सिद्धयोग, योग के दर्शन पर आधारित है जो कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है।
इस युग का मानव भौतिक विज्ञान से शान्ति चाहता है परन्तु विज्ञान ज्यों-ज्यों विकसित होता जा रहा है, वैसे-वैसे शान्ति दूर भाग रही है और अशान्ति तेज गति से बढती जा रही है। क्योंकि शान्ति का सम्बन्ध अन्तरात्मा से है, अतः विश्व में पूर्ण शान्ति मात्र वैदिक मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर ही स्थापित हो सकती है। अन्य कोई पथ है ही नहीं। भारतीय योग दर्शन में वर्णित “सिद्धयोग” से विश्व शान्ति के रास्ते की सभी रुकावटों का समाधान सम्भव है।
समर्थ सिद्धगुरु के अनुग्रह से सिद्धयोग ध्यान की
क्रियात्मक प्रक्रिया के माध्यम से सबसे पहले कुंडलिनी
का जागरण होता है, फिर उसका उत्थान होता है।
इसके बाद क्रम से चक्रों का भेदन होता हैं और अंत में
आज्ञा चक्र में अपने सद्गुरु के चिन्मय स्वरुप का दर्शन
होता है।
क्रियात्मक प्रक्रिया के माध्यम से सबसे पहले कुंडलिनी
का जागरण होता है, फिर उसका उत्थान होता है।
इसके बाद क्रम से चक्रों का भेदन होता हैं और अंत में
आज्ञा चक्र में अपने सद्गुरु के चिन्मय स्वरुप का दर्शन
होता है।
अंत में सहस्त्रार स्थित शिव से शक्ति का सामरस्य महा मिलन होता है।
समर्थ सिद्धगुरु श्री रामलालजी सियाग के फोटो का आज्ञाचक्र पर ध्यान करने से कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है।
समर्थ सिद्धगुरु श्री रामलालजी सियाग के फोटो का आज्ञाचक्र पर ध्यान करने से कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है।
यह जाग्रत कुण्डलिनी साधक का मन, बुद्धि व प्राण अपने अधीन कर उसे स्वतः यौगिक क्रियाएँ करवाती हैl
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May you live a long and healthy life!
Siddha Yoga In Short:
Anyone of any religion, creed, color, country
Anytime morning, noon, evening, night
Any duration 5, 10, 12, 15, 30 minutes. For as much time as you like.
Anywhere office, hosme, bus, train
Anyplace on chair, bed, floor, sofa
Any position cross-legged, lying down, sitting on chair
Any age child, young, middle-aged, old
Any disease physical, mental and freedom from any kind of addiction
Any stress related to family, business, work
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Anytime | morning, noon, evening, night |
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Anywhere | office, hosme, bus, train |
Anyplace | on chair, bed, floor, sofa |
Any position | cross-legged, lying down, sitting on chair |
Any age | child, young, middle-aged, old |
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