✅ Siddha Yoga: A Divine Gift for Humanity













ध्यान से जप करो और संजीवनी सिद्ध कर लो। ऐसा कहकर मछिंदरनाथ तो चले गए और गोरखनाथ जप करने लगे।

वे जप और ध्यान कर ही रहे थे वहीं तालाब के किनारे बच्चे खेलने आ गए। तालाब की गीली-गीली मिट्टी को लेकर वे बैलगाड़ी बनाने लगे। बैलगाड़ी बनाने तक वो सफल हो गए, लेकिन बैलगाड़ी चलाने वाला मनुष्य का पुतला वे नहीं बना पा रहे थे। किसी लड़के ने सोचा कि ये जो आंख बंद किए बाबा हैं इन्हीं से कहें- बाबा-बाबा हमको गाड़ी वाला बनाके दीजिए। गुरु गोरखनाथ ने आंखें खोलीं और कहा कि अभी हमारा ध्यान भंग न करो फिर कभी देखेंगे। लेकिन वे बच्चे नहीं माने और फिर कहने लगे।

बच्चों के आग्रह के चलते गोरखनाथ ने कहा- लाओ बेटे बना देता हूं। उन्होंने जप संजीवनी जप करते हुए ही मिट्टी उठाई और पुतला बनाने लगे। संजीवनी मंत्र चल रहा है तो जो पुतला बनाना था बैलगाड़ी वाला वो पुतला बनाते गए। बनाते-बनाते नन्हा-सा उसके अंग-प्रत्यंग बनते गए और मंत्र प्रभाव से वो पुतला सजीव होने लगा उसमें जान आ गई। जब पूरा हुआ तो वो पुतला बोला प्रणाम। गुरु गोरखनाथजी चकित रह गए। बच्चे घबराए कि ये पुतला कैसे जी उठा?

वह पुतला सजीव होकर आसन लगाके बैठ गया। बच्चे तो चिल्लाते हुए भागे। भूत-भूत मिट्टी में से भूत बन गया। जाकर उन बच्चो ने गांव वालों से कहा और गांव वाले भी उस घटना को देखने जुट गए। सभी ने देखा बच्चा बैठा है।

गांव वालों ने गोरखनाथ को प्रणाम किया। इतने में गुरु मछिंद्रनाथ भिक्षा लेकर आ गए। उन्होंने भी देखा और फिर अपने कमंडल से दूध निकालकर उस बालक को दूध पिलाया। उन्होंने सभी दूसरे बच्चों को भी दूध पिलाया। फिर दोनों ने सोचा अब एकांत, जप, साधना के समय वहां से विदा होना ही अच्छा। दोनों नाथ बच्चे को लेकर जाने लगे।

इतने में गांव के ब्राह्मण और ब्राह्मणी जिनको संतान नहीं थी उन्होंने आग्रह किया कि आप इतने बड़े योगी हैं तो हमारा भी कुछ भला करिए नाथ। ब्राह्मण का नाम था मधुमय और उनकी पत्नी का नाम था गंगा। गांव वालों ने कहा कि आपकी कृपा से इन्हें संतान मिल सकती है। गोरखनाथ और मछिन्द्रनाथ भी समझ गए। उन्होंने कहा तुम इस बालक को क्यों नहीं गोद ले लेते। कुछ सोच-विचार के बाद दोनों ने उक्त बालक को गोद लेना स्वीकार कर लिया।

यही बालक गहिनीनाथ योगी के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ। यह कथा है कनक गांव की जहां आज भी इस कथा को याद किया जाता है। गहिनीनाथ की समाधि महाराष्ट्र के चिंचोली गांव में है, ‍जो तहसील पटोदा और जिला बीड़ के अंतर्गत आता है। मुसलमान इसे गैबीपीर कहते हैं।
श्री गोरक्षनाथ का नाम नेपाल प्रान्त में बहुत बड़ा था और अब तक भी नेपाल का राजा इनको प्रधान गुरु के रुप में मानते है और वहाँ पर इनके बड़े-बड़े प्रतिष्ठित आश्रम हैं। यहाँ तक कि नेपाल की राजकीय मुद्रा (सिक्के) पर श्री गोरक्ष का नाम है और वहाँ के निवासी गोरक्ष ही कहलाते हैं।

काबुल-गान्धर सिन्ध, विलोचिस्तान, कच्छ और अन्य देशों तथा प्रान्तों में यहा तक कि मक्का मदीने तक श्री गोरक्षनाथ ने दीक्षा दी थी और ऊँचा मान पाया था।





नाथ इतिहास: Nath Cult History with diagram: Online Initiation by Nath Yogis(Guru Gangainath-Guru Siyag)




13 Jul 2018

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