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 ये बहुत बड़ी शक्ति है भाई बस इतना जानलो कहीं पढा था कि संसार की सभी महान चीजों में एक समानता जरूर थी, कि वे सब अत्यंत साधारण/सरल थी 



 


ये बहुत बड़ी शक्ति है भाई बस इतना जानलो,

किसीका ध्यान लग रहा है या नहीं लग रहा है , कोई अनुभूति हो रही है या नहीं हो रही है सब फिक्र छोड़ दो ।

किसी भी प्रकार का मन में शक है भरम है तो उसे त्याग दो ।

इसे कोई मैडिटेशन थैरेपी न समझे कि  जिस प्रकार आप इसका रिजल्ट चाहते हैं वैसे आपको मिलता जाएगा ।

ये इससे बहुत ऊपर की चीज है और जिस दिन आपको इसका भान हो गया उस दिन सब सवाल जवाब भूल 

बस कृष्ण की मीरां की तरह गुरु प्रेम में पगलाए फीरोगे ।


बहुत से महान लोगों ने अनेकों प्रकार की पद्धतियाँ बताई ध्यान की, योग की, मन को नियंत्रण में रखने की, खुश रहने की ।

पर सबने कुछ न कुछ अपने पास रख लिया, या तो हमें उसके योग्य नहीं समझा या उस महान रहस्य को हमें समझा पाने में असमर्थ रहे ।

अपने गुरुदेव ने तो सब कपाट खोल दिए, आओ और ले जाओ ... जिसको जितना चाहिए ले लो, अपने पास कुछ भी नहीं रखा उन्होंने ।

और उस महान रहस्य को भी सामान्य रूप में ढालकर सबको बांट दिया, ऐसी ऐसी अनुभूतियां साधकों को हो रही है जैसी शायद हिमालय के योगियों को भी न होती होगी ।

सभी दुकानों के मालिक अचंभे में है, विज्ञान निःशब्द है और गुरु सियाग के चेले मजे में है ।

ज्यादा तो मैं भी न समझ पाया पर इतना जरूर कह सकता हूँ कि बस प्रेम करलो मेरे गुरुदेव से इतना काफी है, पिता मानो भाई मानो मित्र मानो चाहे भगवान मानो इन्हें, बस प्रेम की गगरी भरलो अपनी ।

अन्य शब्दों में शायद इसे ही सब समर्पण कह रहे हैं पर मैं तो इसे प्रेम कहूंगा, निस्वार्थ प्रेम, अटूट प्रेम ।

और कुछ भी हाथ पैर मत मारो आप, कुछ न कर पाओगे ।

है ही नहीं ऐसा कुछ भी निश्चित इस पद्धति में कि आप उसे कर पाओ, 30-30 बरस से ध्यान कर रहे साधक भी कई बार एक दिन पहले बने साधक का अनुभव सुनकर हैरान हो जाते हैं कि ऐसा भी भला होता है क्या ।

इतने बरसों में भी वे इसे समझ नहीं पाए तो इसके पीछे उनकी अज्ञानता या समर्पण की कमी नहीं है,या वे इसके योग्य नहीं है ऐसा नहीं है, बात सिर्फ इतनी सी है कि इस पद्धति में पहले से कुछ भी तय नहीं है ।

सब कुछ आपके और गुरुदेव में बीच की बात है ।

सब कुछ आप दोनों के प्रेम पर निर्भर करता है ।

बैठ गया हठयोगी बनकर नाम जप करने ... पर मन में अब भी भरम है, घड़ी घड़ी इस उम्मीद में बैठा है कि अब कुछ होगा अब कुछ होगा, देखो मेरी गर्दन डोली, देखो मैं पीछे झुका ।

और कोई कोई इस दुख में बैठा है कि देखो मुझे तो ऐसा कुछ भी न हो रहा, कभी गुरुदेव को शिकायत कर रहा है कभी नाराज हो रहा है कि मैंने आपका क्या बिगाड़ दिया जो मुझे कुछ भी न हो रहा ।

अरे भाई ... 

बिना किसी अनुभूति के भी किसी किसी ने अपना पूरा चक्र पूरा कर लिया, अपने जन्म जन्मांतर के पाप धो लिए और परम् धाम की अपनी रिजर्व टिकट बुक कराए निश्चिंतता से बैठा है , कान भी न हिला उसका आज तक ....

और तुम भाग रहे हो अनुभूति के पीछे ।

होनी होगी तो हो जाएगी न, अगर आवश्यक हुई तो, न हुई तो क्या ...

अनुभूति होना तो इस पद्धति का बस एक छोटा सा अंश मात्र है, एक साधन मात्र है उसे साध्य न बनाओ ।

साध्य तो गुरुवर का प्रेम है, और उन्होंने तो तेरा हाथ उसी दिन थाम लिया था जिस दिन तूने बस इतना सा कहा था कि मुझे भी अपनी शरण मे ले लो ।

अब तुम्ही बार बार हाथ छुड़ा छुड़ा के भागोगे इस कुंभ के मेले में तो कौन क्या कर सकता है, गुम हो जाने के बाद तुमको अहसास होगा कि अरे ये हमने क्या कर दिया, अब तो किधर भी जाने का रास्ता न बचा ।

मैंने ऐसे गुरु भक्तों को भी भव सागर से पार होते देखा है  जिनके गुरु का एक तोला अफीम बिना सवेरा न हो, प्रवचन के दौरान एक चिलम खत्म तो दूजी शुरू ... और भक्त उन्हें बिना किसी सवाल के मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे हैं ।

हम जैसे तथाकथित विद्वान शिष्य तो हजार सवाल उठाले उन गुरु की विद्वता पर ...

पर उन भक्तों की आँखों मे गुरु के प्रति किसी भी प्रकार का सवाल न होना ही उनकी भक्ति को अमर कर गया ।

जिस दिन शिष्य गुरु को मापने की दृष्टि से देखने लग जाए उसी दिन उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है ।

जब कोई सवाल नहीं होगा तभी तो निष्कपट प्रेम कर पायेगा भाई न कोई ...

और यही प्रेम ही तो मुख्य सूत्र है भारत की इस गुरु चेला परम्परा का, क्योंकि इसे हर कोई बड़ी सरलता से कर सकता है चाहे वो ठूंठ गंवार ही क्यों न हो, कालिदास के बारे में तो सुना ही होगा न,भारत के सबसे महान नाटककार, अभूतपूर्व विद्वान .... नीरे गंवार थे गुरु से मिलने से पहले, उसी डाल को काट रहे थे जिस पर स्वंय बैठे थे ।

पर गुरु भक्ति ने उन्हें इतिहास का अद्वितीय विद्वान बना

दिया ।

बड़ा सरल है बड़ा ही सरल है ... पर ज्यादा चतुराई शायद आगे न बढ़ने दे ।

कहीं पढा था कि संसार की सभी महान चीजों में एक समानता जरूर थी, कि वे सब अत्यंत साधारण/सरल थी ।

सबको गुरुदेव का प्रेम मिलता रहे, गुरुभक्ति के सागर में आप सब गोते लगाते रहें और गुरुदेव आप सबके जीवन को सुखों से भर दे ।

जय गुरुदेव जय गुरुदेव जय गुरुदेव ।।



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