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मानव-मुर्गा संवाद-सतयुग की दस्तक-सच्ची घटना पर आधारित अनुभूति 

बहुत ही अद्भुत अनुभूति, इन्सानो  के साथ  तो  बातचित भावनाओ का  आदान प्रदान होता देखा पर बेजुबान के साथ की बात देखिए 

ये गुरू भाई छतीसगढ के है, में इनसे दो साल पहले जोधपुर आश्रम  मे मिली, पुलिस विभाग मे है, बहुत समर्पित है.




गुरुकुल के सभी सदस्यों को जय गुरुदेव......  मैं राजेश कुमार पैकरा अंबिकापुर सरगुजा छत्तीसगढ़ का निवासी हूं आप सभी गुरु भाइयों एवं गुरु बहनों से गुरु कृपा से हुई दिव्य अनुभूति साझा करना चाहता हूं यह अनुभूति मार्च 2017 की है इस दिव्य अनुभूति को मैं पहले भी साझा कर चुका हूं पर बहुत से गुरु भाई बहन इस अनुभूति को दोबारा सुनना चाहते हैं गुरु शरणागत हर एक साधक को अपने प्रारब्ध संस्कार वश अलग अलग अनुभूतियां होती है कोई भी गुरु साधक दूसरे साधकों की अनुभूतियां से अपनी अनुभूतियां की तुलना न करें इस अनुभूति को साझा करने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे साधक को प्रेरित करना है हो सके मेरी अनुभूतियों से आप सभी को कोई नई प्रेरणा मिल सके  या आप लोगों की अनुभूतियों से मुझे प्रेरणा मिल सके.... हमारे परम पूज्य सद्गुरु श्री रामलाल जी सियाग की तस्वीर के दर्शन एवं उनसे दीक्षित होने उपरांत मार्च 2017 में गुरु कृपा से मुझे एक दिव्य अनुभूति हुई जिसने मेरे जीवन को एक नई दिशा दी एवं तीव्र गति से उस दिन से मेरे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन होने लगा इससे पहले जो जीवन था मैं समझता हूं वह जीवन कतई नहीं था या किसी भी व्यक्ति का जीवन  इस सिद्ध योग दर्शन का ज्ञान को पाने से पूर्व नारकीय जीवन समान है इस ज्ञान के अभाव में मानव जीवन पशुवत व्यवहार समान है एक रोज की बात है जब मैं सुबह उठकर घर आंगन में बाहर देखा तो मेरा एक पालतू मुर्गा आंगन में खड़ा था मेरे दरवाजा खुलते ही मेरी नजर उससे मिली और एकाएक मेरी नजर उस पर टिक गई और हमारे बीच अंतर मन से संपर्क सध गया और उसने मुझसे हाथ जोड़कर कहा आप मेरी रक्षा करो मैं मरना नहीं चाहता इतना सुनते ही मेरी आंखों से अश्रु बहने लगे मैं समझ नहीं पा रहा था यह क्या हो रहा है यह कैसे हो सकता है आगे उस मुर्गे ने और भी मुझसे बहुत सारी बातें कही उसने कहा हमारी जो मुर्गे की प्रजातियां हैं जब से हमारा जीवन प्रारंभ हुआ तब से हम मानव रूप को ही अपना ईश्वर अपना मालिक अपना रक्षक समझते रहे हैं बेफिक्र होकर अपने मालिक के घर में निवास करते हैं पर हमें क्या पता जिसे हम अपना मालिक अपना रक्षक समझते हैं वह ही हमारे भक्षक हैं हमें अपने घर में शरण देकर हमारे किलो 2 किलो होने का इंतजार करते हैं और जब इंतजार खत्म हो जाता है तो या तो हमारा मोलभाव कर देते हैं या तो घर पर ही निपटा देते हैं इसमें हमारा क्या कसूर हम तो समझते हैं ईश्वर ने जीव मात्र को अपनी संतान समझकर सभी को स्वतंत्र अधिकार दिया है जीने को पर हमें क्या पता इस संसार में सबसे बुद्धिजीवी जीव प्राणी जिसे ईश्वर ने सब की रक्षा हेतु नियुक्त किया है वे ही हमारे हत्यारे बने घूम रहे हैं  हमारी मुर्गे की प्रजातियां की दिनचर्या इस प्रकार है हम सभी घर से निकलने के बाद तीन परिस्थितियों में ही अपने घर वापस आते हैं पहला जब हमारा मालिक हमें दाना चुगने को आवाज देकर प्रेम से बुलाता है दूसरा तब जब हमें किसी जीव जंतु का भय होता है हम दौड़े चले आते हैं अपने मालिक के  आंगन में और हमे ऐसा महसूस होता है कि आंगन में हमारा मालिक खड़ा है अब हमारा कोई बाल बांका भी नहीं कर सकता और तीसरा जब रात होने को आती है हम सभी अपने घर को आ जाते हैं और अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं आज तक हम समझते थे कि कोई जीव प्राणी अपना दर्द तकलीफ किसी से बयां नहीं कर सकता पर जब अचानक उस मुर्गे से मेरा अंतर्मन से संवाद हुआ मैं एकदम से भावुक हो उठा और बार-बार अपने गुरुदेव से हाथ जोड़कर विनती करने लगा हे गुरुदेव मुझसे ऐसी परीक्षा न  लीजिए जिसमें मैं पास ना हो सकूं यह कैसी परीक्षा है गुरुदेव जिसे मैं स्वयं लोगों का भोजन समझता था जो आज मुझसे अपनी जान बचाने की गुहार कर रहा है मैं अपने जीवन के एक ऐसे मोड़ पर खड़ा था जहां एक  आम लोगों के लिए बेजुबान प्राणी अपने जीवन हेतु करुण प्रार्थना कर रहा था मुझे भारी पश्चाताप होने लगा यदि इसके जीवन को मैं नहीं बचा सका तो मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसकी रक्षा कैसे करूं अपने घर के सदस्यों को कैसे समझाऊं मैंने किसी से कुछ ना कहा और उसकी प्राण रक्षा हेतु गुरुदेव से निरंतर प्रार्थना करता रहा गुरुदेव इस तरह से मेरी परीक्षा न लीजिए उसकी रक्षा आप स्वयं करिए कुछ दिनों पश्चात गुरुदेव ने हमारे घर के सभी सदस्यों  की मानसिकता बदल दी सभी ने निर्णय ले लिया यह मुर्गा जब तक जिएगा घर की शोभा बना रहेगा तब मैं निश्चिंत होकर गुरुदेव का बारंबार धन्यवाद किया सद्गुरु के प्रति मेरी धारणा और पक्की होती गई जीव मात्र के प्रति मेरे हृदय में वात्सल्य निर्मित हो गया जीवन जीने का एक अलग आनंद हो गया|.......  इस अनुभूति के ठीक 8 - 10 दिनों बाद एक और दिव्य अनुभूति हुई जो मेरे जीवन में  यह अनुभूति बहुत ही प्रेरणादायक रही और इससे बहुत से लोगों को भी प्रेरणा मिली 1 दिन की बात है जब मैं सुबह नहाकर सूर्य की ओर निहार रहा था एकाएक जैसे बादलों में जैसे भविष्यवाणियां होती थी उसी प्रकार संपूर्ण आकाश में मुझे मुर्गों का झुंड दिखाई देने लगा उन सब ने मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम किया उस परिणाम के जवाब  हेतु मेरे हाथ भी  स्वयं जुड़कर उनका अभिवादन करने लगे अंतर्मन से हमारे कनेक्शन फिर से जुड़ गए हम सब ने मुझसे कहा आपको जो पहले संदेश दिया गया था वह तो प्रथम संदेश था आज हम आपसे कुछ और कहना चाहते हैं जब तक हमें पता न था कि मानव प्रजाति हमारी रक्षक नहीं भक्षक है तब तक हम उनके पास दौड़े चले आते थे उन्हें रिझाने की कोशिश किया करते थे पर जब हमें पता हो गया कि वह हमारे रक्षक नहीं भक्षक हैं  फिर भी हमारे सामने एक बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो गई ईश्वर ने लगभग लगभग सभी जीव मात्र को  रहने हेतु आश्रय  बनाने को बुद्धि प्रदान किया हम ही एक जीव मात्र ऐसे हैं जिसे अपना घर बनाना नहीं आता ऐसे में हम करें भी तो क्या करें मजबूरी वश हमें उन मनुष्यों के साथ रहना पड़ा उनका शिकार होना पड़ा इतना संवाद होने के साथ वह सभी और ऊपर की ओर निहारने लगे और कहने लगे हे ईश्वर हे परमात्मा हम सब की इतनी सी अर्जी स्वीकार कर लीजिए इस मानव समाज को इतनी सी सद्बुद्धि  प्रदान कर दीजिए जैसे वह स्वयं अपने जीवन की कल्पना करता है वैसे ही हम सबको स्वतंत्र जीने दे आपने तो सभी जीवो को स्वतंत्रता प्रदान कर सभी जीवो को स्वतंत्र जीने हेतु धरती पर भेजा था पर यहां तो कुछ और ही चल रहा है  प्रभु.... कृपा करो प्रभु कृपा करो प्रभु कृपा करो प्रभु इतना कह कर वे सभी अंतर्ध्यान हो गए..... गुरु कृपा से इन दोनों अनुभूतियों ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया सात्विक व सकारात्मक जीवन जीने को एक नई दिशा प्रदान किया मैं जानता था इस अनुभूति को लोगों के समक्ष रखूंगा तो लोगों को बहुत अजीब लगेगा पर गुरु कृपा से वह  सामर्थ्य मेरे अंदर आ गई कि जो गुरु कृपा से जो जो मैंने अपने अंदर देखा बाहर देखा जब तक उसे मैं प्रकट न कर देता निरंतर गुरुदेव का आदेश मिलता गया और बिना किसी परवाह  के लोगों के समक्ष अपनी अनुभूतियों को रखा चाहे कोई भी कुछ भी समझे हमें जहां से जो संदेश प्राप्त हुआ इस संदेश को सुनने वाले लोगों में क्या प्रतिक्रिया होगी जहां से संदेश आया है संदेश भेजने वाले की जिम्मेदारी होगी जब सद्गुरु कृपा से यह संदेश मुझे मिला मेरे जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ आगे गुरुदेव से समझें समझ कर साझा किया था इस संदेश को सुनने के बाद बहुत से लोगों में परिवर्तन हुआ बहुत से लोगों के बीच पीठ पीछे हंसी का पात्र भी बना जहां हमारा रोजी रोटी का काम है हमारे साथ काम करने वाले भाई बंधु एवं हमसे बड़े आदरणीय लोग कहते थे इनका इलाज कराना होगा पर हमें उससे कुछ भी फर्क न पड़ता था और ना पड़ेगा क्योंकि गुरुदेव ने ऐसी नौकरी दे रखी है जहां स्वयं से कुछ नहीं करना होता यहां सिर्फ गुरुदेव के आदेश निर्देश पर ही काम होता है यहां ना कोई निलंबित होने का कालम है और नहीं रिटायरमेंट का गुरुदेव की नौकरी तो जब तक यह जीवन है तब तक करना ही होगा इस नौकरी में कोई टेंशन नहीं है बस पेंशन है| अनंत समय तक और नौकरी बहुत ही सहज सरल पोस्टमैन डाकिया का काम गुरुदेव से जो डाक प्राप्त होगा उसे लोगों में बांटने का काम प्राप्तकर्ता का घर भी ढूंढना नहीं है भला इससे अच्छा और क्या काम हो सकता है..... इससे आगे उस मुर्गे से हमारा संबंध ऐसा रहा जब तक वह जीवित रहा मेरे साथ दो दो घंटे बिस्तर पर बैठकर भागवत कथा सुनता रहा और अचानक एक दिन वह घर वापस नहीं आया  बहुत ढूंढने पर भी नहीं मिला और 3 दिन बाद तीन व्यक्ति घर पर आकर सूचना दिए आपका मुर्गा किसी पुराने कुएं में गिर गया है तब हम सभी लोग जाकर कुए से उसको बाहर निकाले 3 दिन बाद भी उसका शव ज्यों का त्यों रहा उसे ना ही  कोई जीव जंतुओं द्वारा या चीटियों द्वारा कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया था ना ही उस पवित्र शरीर से कोई बदबू आ रहा था गुरु कृपा से आदेश लेकर उस पार्थिव देह को अपने आंगन में कफन के साथ अपने साथ उसकी याद लिए दफन कर दिया...... गुरुदेव हमेशा कहा करते हैं कथा प्रवचन से मानव मात्र में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला मानव में जो भी परिवर्तन होगा वह परिवर्तन आपके अंदर से प्रकट होगा वह भी गुरु की शरणागति मे  आने के बाद इसी कड़ी में भागवत कथा  या राम कथा क्या होता है इस कथा के बारे में मुझे कुछ भी मालूम ना था कथा प्रवचन के बारे में उसे रत्ती भर जानकारी नहीं था पर भागवत को जानने की प्रेरणा भी मुझे गुरुदेव से ही मिली यह प्रेरणा मुझे कैसे मिली फिर कभी बताऊंगा..... गुरुदेव से प्राप्त अनुभूतियां कभी न समाप्त होने वाली अनुभूतियां है बहुत से गुरु भाई व गुरु बहन मुझसे मेरी अनुभूतियों के बारे जानना चाह रहे थे जिसमें यह मेरी विशेष अनुभूति थी गुरु के प्रति सभी समर्पित शिष्यों को अलग-अलग प्रकार से अनुभूतियां होती है कोई भी गुरु भाई व गुरु बहन अपने अनुभूतियों से इस अनुभूति की तुलना ना करें और यदि आप सभी अपनी अनुभूति शेयर करना चाहते हैं तो जरूर करें इससे सभी ग्रुप सदस्यों को एक दूसरे से प्रेरणा मिलेगी..... अनुभूतियों का तो बहुत से गुरु भाइयों के पास अंबार लगा है और इसलिए बताना उचित नहीं समझते  क्योंकि  नए साधकों के सामने असमंजस वाली स्थिति पैदा हो जाती है  ऐसे कैसे सकता है और बहुत से साधकों को हंसी का पात्र होने से डर लगता है स्वयं का कल्याण होने के बाद स्वयं तक ही सीमित रह जाते हैं जैसे कुछ दिन पहले किसी गुरु भाई ने   अपनी अनुभूति मुझे बताई की रास्ता चलते मुझे एक आवाज सुनाई दी जब मैं पलट कर देखा तो एक आम का पेड़ मुझसे कुछ कह रहा था और जब मैं उस पर गौर किया तो वह करीब 1 घंटे तक मुझ से वार्तालाप करता रहा बहुत ही अद्भुत अनुभव रहा पर वह साधक कभी भी सम्मान हानि के भय से अपनी अनुभूति किसी से साझा नहीं किए जबकि गुरुदेव की कृपा उन पर इस कदर रही जैसे उनकी सांस आज ही थमने वाली हो पर गुरुदेव ने उनके जीवन की बागडोर अपने हाथों में ले ली फिर भी वह साधक किसी के सामने खुलकर नहीं आना चाहता... जबकि हमारे परम पूज्य सद्गुरु का दिव्य ज्ञान हमें अपने तक सीमित रखने के लिए नहीं मिला है हम सभी गुरु भाइयों एवं गुरु बहनों को यह ज्ञान बांटने को शुभ अवसर प्राप्त हुआ है जो  परम पूज्य सद्गुरु की अनायास कृपा हमें प्राप्त हुई वह औरों को भी प्राप्त हो इसी भाव इसी सद्भाव के साथ गुरुदेव के इस महा मिशन में sahbhagi Bankar निष्काम भाव से पोस्टमैन की भूमिका अदा करनी है..... और बाकी तो  स्वयं अपना-अपना स्वतंत्र विचार... प्रचार करें तो भी ठीक ना करें तो भी ठीक... क्योंकि इस दर्शन का प्रचार-प्रसार का कार्य भी बहुत  कम लोगों को अवसर प्रदान होता है...... शेष अनुभूति अगली कड़ी में ... लेख में कोई त्रुटि हो तो  कृपया सुधार कर पढ़ें..... जय-जय  समर्थ सदगुरुदेव  परम पूज्य श्री रामलाल जी सियाग व शिव अवतारी बाबा श्री गंगाई नाथ जी महाराज की जय हो🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏👏👏👏


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1 comments:

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