इतने सरल सहज और सुलभ दर्शन की पवित्रता को बनाये रखें
🙏श्री गुरुदेवाय नमः🙏
कुछ भी लिखने से पहले आप सबको अंतर्मन की गहराइयों से प्रणाम!🙏
किस दिशा में ये लेख जाएगा मैं नहीं जानता.....तो शुरआत एक गुरुभाई की बात से करते हैं! उनका संक्षिप्त परिचय ये है कि 📚 चारों वेद, 10 उपनिषद, रामायण-महाभारत व गीता के साथ-साथ लगभग सभी धार्मिक पुस्तकों का ज्ञान! कुछ सिद्धियाँ भी थीं उन्हें, तंत्र-मंत्र और भी न जाने कौन-कौनसे धार्मिक क्रियाकलाप! मेरे साथ उनसे हुई एक चर्चा में उनका कहना ये था कि "गुरुदेव के 15 मिनट के 🧘♀️ध्यान के आगे मेरा सारा किताबी ज्ञान, पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और कर्मकांड सब कुछ धरा का धरा रह गया! सारी आडम्बर और पाखंड की दीवारें ढह गयीं! उसी पल मुझे समझ आया कि जितनी मिलावट धर्म के साथ हुई है उतनी शायद ही कही हुई होगी!"
मैने उनसे अनुरोध किया कि Sir आप 🖥️ live सेशन करें जिससे और लोगों को भी लाभ हो मेरे अनुरोध पर उन्होंने एक-दो 📲सेशन किये भी और फिर बोले कि इसमें 'स्व आत्म सुखाय' के अलावा कुछ नहीं है! मेरा तो फायदा होगा लेकिन लोगों का नुकसान होगा! मैंने पूछा वो कैसे?
उन्होंने कहा कि "गुरुदेव की 📻आवाज से परिवर्तन आएगा मेरी आवाज से किसी में कोई परिवर्तन नही होगा! बिना मतलब के मैं लोगों का 🕘 समय ही खराब करूँगा! जितनी देर वो मुझे सुनेंगे उतनी देर यदि नाम जपेंगे तो उन्हें ज्यादा और स्वानुभूत फायदा होगा! और ऐसा मैं क्या बता दूंगा जो गुरुदेव नहीं बता पाए या ऐसा कौनसा अनुभव मैं उन्हें करवा दूंगा जो गुरुदेव उन्हें नहीं करवा सकते? "
उन्होंने एक कमाल की बात कही कि "जो मैंने पहली बार गुरुदेव का ध्यान करके महसूस किया उसको मैं शब्दों में कैसे बता सकता हूँ? न मैं बता सकता, न कोई समझ सकता! ये भीतर जाने का रास्ता अकेले का ही है और इस रास्ते में आने वाले सभी अनुभवों को प्रत्येक साधक अकेले ही अनुभव कर सकता है!"
उन्होंने आगे कहा कि "मुझे बहुत दुःख होता है कि गुरुदेव जिस आडम्बर, पाखंड, अन्धविश्वास, फालतू के कर्मकाण्ड और नियमादि से मुक्त करवाने के लिए सारी उम्र संघर्षरत रहे उनके कुछ स्वयंभू चेले उसी पुराने ढर्रे पर चल निकले! जिधर देखो ये फलाने के और वो ढिमके के प्रशंसक, गुरुदेव का कोई नहीं! फिर कहते हैं कि आराधना में 📝 RESULT नहीं मिलता जबकि गुरुदेव ने साफ कहा है कि 'श्रद्धा divert होगी तो मैं टैकल नही करता, फिर मुझे दोष मत देना'!"
और आगे वो कहने लगे कि
"कोई गुरुभाई दूसरों के सामने स्वयं को गुरुदेव का नजदीकी और विशुद्ध शिष्य दर्शाने के लिए कह रहा है मुझे अमुक आदेश हो गया गुरुदेव का तुम भी ऐसा करो, कोई मन्त्र को तोड़ मरोड़ के बता रहा है, कोई गुरुदेव की आवाज़ में नहीं बल्कि स्वयं की आवाज़ में ही मंत्र बाँट रहा है, कोई कुछ भी मनगढ़ंत बोलने में लगा है, कोई अपने आप को Superior और Senior समझकर स्वयं के या कहीं से पढ़-सुनकर या किसी अन्य दार्शनिक या गुरु के विचारों को गुरुदेव के दर्शन में मिलाकर प्रचार कर रहा है! कुछ लोगों ने लाइव ध्यान के कार्यक्रम की परंपरा शुरू कर दी है और कुछ लोग तो प्रचार का ही दम्भ दिखाकर स्वयं को प्रचारित करते दिखते है! अमर्यादित आचरण की हद तो तब हो जाती है जब कोई गुरुदेव की आज्ञा को लांघकर मन्त्र के अक्षरों को चित्र/text रूप में प्रचारित कर देता है जबकि गुरुदेव का स्पष्ट कहना है कि "मेरी 📻 आवाज़ साथ रखो मेरी आवाज़ के बिना इफ़ेक्ट नहीं होगा", सब अपने Name & Fame के चक्कर में लगे हुए हैं! ये लोग शिष्य नहीं 'SPIRITUAL ORGANIZERS' (आध्यात्मिक प्रबंधक) हैं!"
आगे उन्होंने कहा कि "इस तरह का प्रचार करने वाले गुरुभाइयों का इन सभी क्रियाकलापों के पीछे एक तर्क होता है वो ये कि इससे साधक को "MOTIVATION" मिलता है! मेरा मानना है कि भाई यदि लगातार नाम जाप और सुबह-शाम ध्यान करोगे तो भीतर से गुरुदेव स्वयं ही मोटिवेट करेंगे! किसी और का मोटिवेशन बड़ा कि गुरुदेव का?
और यदि ये कहो कि नाम जप और ध्यान के लिए ही मोटिवेशन चाहिए तो फिर मेरा उनको ये कहना है कि उनके लिए अध्यात्म का रास्ता त्यागना ही ठीक है, क्योंकि कोई भी कर्म यदि किसी से प्रभावित होकर किया जाता है, भीतर से इच्छा ही नहीं है तो उसके फलीभूत होने में सदैव संशय ही रहेगा! इसका कारण ये है कि यदि आप भीतर से किसी लक्ष्य के प्रति समर्पित नहीं है तो सफलता कभी मिल ही नहीं सकती! गुरुदेव ने हमेशा कहा है कि "गुरु बनाना कोई फॉर्मलिटी नहीं है! इससे साधक का नया जन्म होता है!"
गुरु शरीर नहीं है वह तो हमारे बाहर भीतर हर जगह मौजूद है! गुरुदेव को जो भी आपको कहना होगा वो स्वयं आपको प्रत्यक्ष या ध्यान में ही कहेंगे-सुनाएंगे-दिखाएंगे, संकेत देंगे और वो केवल आप तक ही सीमित रहेगा!"
वो आगे कहने लगे कि "कुछ साधक यह भी गलती करते हैं कि वे कुछ पुराने गुरुभाइयों को गुरुदेव के रूप में देखने और मानने लगते हैं! ये गलत है, क्योंकि गुरुभाई कितना भी पुराना और बुजुर्ग हो वो गुरु का स्थान नहीं ले सकता! नये साधक गुरुदेव की 📲 स्पीच सुनने के बजाय ऐसे वाकपटु गुरुभाइयों को सुनते है तो उनको फायदा होने के बजाय नुकसान ही होता है! उनका जो समय नामजप, 🧘♀️ध्यान या गुरुदेव की आवाज़ सुनने में व्यतीत होना था वो व्यर्थ हो जाता है! नये संशय पैदा होते है, नये संकल्पों और विकल्पों आवागमन होता है जो साधना और ध्यान को मंद कर देते हैं!गुरुदेव और आपके बीच तीसरा कोई नहीं है ये बात सभी गुरुभाई सदैव स्मरण रखें! जो बात किसी और से करनी है, जो प्रश्न किसी और से करना है, जो संशय किसी और से दूर करना है उसके बारे में साधक को सीधे गुरुदेव से ही बात करनी चाहिए! गुरुदेव का वचन है कि "ये तस्वीर कभी नहीं मरेगी, आपकी हर बात का जवाब ये तस्वीर देगी!" अतः गुरुदेव में पूर्ण विश्वास रखते हुए संशयरहित होकर अपनी आराधना करते रहिये, सफलता निश्चित मिलेगी!"
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गुरुदेव के प्रति एकनिष्ठ रहना अत्यंत जरूरी है एकनिष्ठता गुरु के प्रति रखनी है और किसी के प्रति नही!
वो गुरुभाई आगे कहने लगे कि....
"आज से 10-12 साल पहले तक 📰 प्रिंट मीडिया और गुरुदेव के 🧘♂️ध्यान प्रोग्राम ही गुरुदेव के दर्शन के 📡प्रचार के मुख्य साधन हुआ करते थे जिनमें ज्यादातर गुरुदेव के सगुण स्वरुप का मार्गदर्शन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हुआ करता था अन्य शिष्यों का प्रभाव ज्यादा नहीं था, इसीलिए दर्शन का प्रचार समर्पण के साथ मिशन मोड में हुआ करता था! फिर 📺 टीवी के माध्यम से प्रचार शुरू हुआ तो गुरुदेव के साथ-साथ कुछ अन्य लोगों का प्रभाव भी प्रचार में दिखने लगा और गुरुभाइयों के बीच ही विरोधाभासी विचारधाराओं का टकराव होने से जो प्रचार जितनी तीव्र गति से होना चाहिए था उतना नहीं हो पाया और इसी बीच गुरुदेव के देहावसान से वो प्रचार का माध्यम भी लगभग समाप्त हो गया! गुरुवर के शरीर के पंचतत्त्व में विलीन होने के पश्चात प्रचार का नया और सस्ता माध्यम 📲'सोशल मीडिया' ने अपना स्थान लिया और प्रचार की गति काफी 📽️ तेज हो गयी परन्तु गुरुदेव और समर्पित शिष्यों के हाथ से प्रचार की कमान नये, स्वघोषित समर्पित और दर्शन के बारे में कम जानकारी रखने वाले लोगों के हाथ में पहुँच गयी! जो भिन्न-भिन्न विचारधाराओं से समबन्धित थे और जिनकी संख्या भी अधिक होने की वजह से उन पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल था! इसी वजह से कमोबेश सभी विचारधाराओं का समावेश गुरुदेव के दर्शन में हो गया और एक साधारण, सीधा और प्रभावी दर्शन 🔎जटिल और क्लिष्ट हो गया! इसका सीधा सा कारण ये रहा कि गुरुदेव के दर्शन में पूर्व में दीक्षित शिष्यों के विचारों के समावेशन का प्रभाव भी नये साधकों को स्वतः ही मिला और वो गुरुदेव से सीधा सम्बन्ध स्थापित करने के बजाय "MEDIATORS" (बिचौलियों) के माध्यम से गुरुदेव से जुड़ने लगे!
हर व्यक्ति/संस्था/गुरुभाई/प्रचारक/मीडिएटर/का काम तो ये होना चाहिए था कि वो 🎞️सीधे शब्दों में गुरुदेव के दर्शन को एक बार समझा दे और ज्यादा से ज्यादा इस बात पर जोर दे कि नाम जप के माध्यम से एक नया साधक गुरुदेव से भीतरी सम्बन्ध स्थापित करे परन्तु "NAME-FAME", "FACE PUBLICITY" और अन्य कारणों की वजह से वो ऐसा नहीं करके भिन्न-भिन्न प्रकार से स्वयं को आगे रखकर प्रचार करने लगे! जो जितना ज्यादा प्रभावित कर सका उससे उतने ही नये साधक उसके साथ जुड़ने लगे! जिस साधक के जैसे विचार थे वो वैसे ही प्रचारकों के साथ जुड़ता चला गया और परिणामस्वरूप गुरुभाइयों के विभिन्न ग्रुप तैयार हो गये! इसका सीधा परिणाम ये हुआ कि साधक-गण गुरुदेव के 🧘♂️दर्शन के प्रचार पर केंद्रित ना रहकर अपने अपने ग्रुप के लीडर के प्रचारक बन कर रह गये और स्वयं और मिशन दोनों का विकास अवरुद्ध करने का काम करने लगे! फिर स्वयं को दूसरे से बड़ा प्रचारक सिद्ध करने में लग गए!
अब तो लोग कुछ व्यक्तिविशेष के प्रवचन, लाइव ध्यान के वीडियो , फोटो अधिक शेयर करते हैं, गुरुदेव के नहीं, मतलब गुरुदेव से अधिक महत्व व्यक्ति विशेष को देते हैं और परिणाम की अपेक्षा गुरुदेव से करते हैं! अब ऐसे मूर्खों को कौन समझाये कि स्वप्रकाशित(Enlightened) तो गुरुदेव की आवाज़ है क्योंकि वो स्वप्रकाशित शरीर(Enlightened Body) से निकलती है! परिवर्तन तो 📻 गुरुदेव की आवाज़ से आएगा क्योंकि वो आवाज़ सीधे आत्मा तक जाती है बाकी आवाज़ तो स्थूल शरीर को ही प्रभावित कर पाती है आत्मा को नहीं!
ये 🧘♂️सिद्धयोग है इसमें केवल गुरुकृपा ही काम करती है कोई बौद्धिक, शारीरिक, राजनैतिक या आर्थिक शक्ति नहीं! इस दर्शन में किसी की मीठी कही हुई बातें, अगर-मगर, ऐसा-वैसा, ये कर लो-वो कर लो, ये सब काम नही करता! क्योंकि ये 🧘♀️योग ऐसा योग है जो सबसे पुराना होने के साथ-साथ एकदम नूतन है! जिस रास्ते के अंतिम पड़ाव तक अभी तक गुरुदेव के अलावा कोई साधक नहीं गया है! चूंकि ये बिल्कुल नया पथ है इसीलिए गुरुदेव सगुण स्वरुप (मूर्ति रूप) में हमारे सामने विराजमान होने के साथ-साथ सूक्ष्म-वृहद रूप में हमारे भीतर और बाहर बैठ जाते हैं और सबकुछ अपने हाथ में लेकर योग(ईश्वर और आत्मा का मिलन) करवाते हैं! परन्तु आजकल तथाकथित महाज्ञानी, बुद्धिमान और श्रेष्ठ प्रचारक वो बातें भी प्रचारित कर रहे हैं जो गुरुदेव ने कभी भी अपनी 🎞️ स्पीच में कहीं पर भी नहीं बोलीं! ऐसे लोग 📖 किताबी और सुना सुनाया ज्ञान बघार रहे हैं!
मेरे भाइयों शानदार भाषण , कथा - प्रवचन से कुछ नही मिलेगा! जो मिलेगा वो केवल गुरुदेव द्वारा दिए गए संजीवनी मंत्र के जाप व ध्यान से ही मिलेगा! केवल गुरुदेव के प्रति सच्ची निष्ठा, समर्पण और गुरुकृपा ही आत्मिक ज्ञान के भंडार खोले सकते है!"
"ईश्वर प्रत्यक्ष अनुभूति व साक्षात्कार का विषय है , कथा - प्रवचन का नही है"- समर्थ सदगुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग!"
वार्तालाप आगे बढ़ने के साथ-साथ उन गुरुभाई का बातचीत में पीड़ा मिश्रित क्रोध भी बढ़ने लगा और उन्होंने कहा कि "गुरुदेव ने तो ऐसे दिखावे, प्रदर्शन, पाखंड, आडंबरों के खिलाफ ही हमेशा बोला है! लेकिन ऐसे लोगों ने इतनी सरल आराधना को केवल अपने स्व-आत्म सुखाय के लिए इतना क्लिष्ट (Complecated) बना दिया है, कि कई बार तो अच्छे-अच्छों को शंका हो जाती है कि कहीं वो गलत चक्कर में तो नहीं फंस गया! मुझे ये समझ नहीं आता 😡कि इतनी सरल आराधना(लगातार मानसिक नामजप और दो समय 15-15 मिनट ध्यान) को इतना घुमा-फिरा कर इतना लंबा-चौड़ा और ढोंग- पाखंड से भरने की क्या जरूरत है? चिकनी चुपड़ी बातें कर के नए साधकों को भ्रमित कर के क्या मिलता है ऐसे लोगों को? ऐसा क्या सुनाते हैं जो गुरुदेव नही सुना पाए? ऐसा क्या बताते हैं जो गुरुदेव नही बता पाए? गुरुदेव के नाम पर आखिर ये चल क्या रहा है?😡
गुरुदेव ने यह सिद्धयोग दर्शन के मार्ग (पथ/यात्रा) को सरल, सुलभ, सटीक और निःशुल्क बनाया हुआ है। फिर क्यों इस दर्शन को कठिन बना रहे हैं लोग? इससे किसका भला होगा?
आप स्वयं इसका चिंतन - मनन अवश्य करें! गुरुदेव के पुराने , नए शिष्य (साधक) सतर्क रहें , संभल कर रहें ...
🙏जय गुरुदेव!🙏
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