वैदिक ज्ञान को विज्ञान सिद्ध करने में जुटे वैज्ञानिक
वैदिक दर्शन विश्व दर्शन होगा, मगर वैज्ञानिक ढंग से होगा- गुरु सियाग
गुरु सियाग की स्पीच (in Hindi) | |||
तो योग की बड़ी चर्चा है, कुण्डलिनी जागरण की बड़ी चर्चा है. पश्चिम मान चुका है कि धन-बल और जन-बल से तो हमने जोर लगा लिया शांति हो नहीं सकती, अब केवल एक ही आत्म-बल से, कि अगर मानव के कुण्डलिनी जागृत हो जाये तो ही विश्व-शांति संभव है. ये शारीरिक कसरतें, योग के नाम से पूरी दुनियां में हो रही हैं. मैं यू.एस. गया, वहाँ शारीरिक कसरतें इसी को योग कहते हैं. पर भारतीय योग-दशर्न में जिस सिद्धयोग का वर्णन आता है उसका तो मूल उद्देश्य ही मुक्ति है, मोक्ष है भाई. भारतीय दर्शन रोग की बात ही नहीं करता. पातंजलि योग-दर्शन की दुहाई दी जाये, पातंजलि योग-दर्शन आप उठा कर देख लो, १९५ सूत्र हैं उसमें, उसमें कहीं भी रोग का वर्णन नहीं आएगा. कहीं नहीं है. वो तो जो संस्कार पूर्व-जन्म के, उसके बीज नष्ट करने की बात करता है. पातंजलि योग-दर्शन में ४ चेप्टर हैं. समाधि-पाद, साधन-पाद, विभूति-पाद और केवल्य-पाद. पहला चेप्टर समाधि-पाद, उसमें ऋषि ने दूसरे सूत्र में कहा है कि चित्त कि वृत्तियों का निरोध ही योग है. ये जो भाग रहा है रूकता नहीं है, जब तक चुप होकर बैठ नहीं जाएगा तब तक न ध्यान है न कोई योग है. और समाधि-पाद में ही २४ से लेकर २९ सूत्र तक स्पष्ट कहा है ऋषि ने, कि हरि-नाम के जप के बिना कोई योग सिद्धि नहीं, कोई मुक्ति नहीं. इस युग में केवल ईश्वर का नाम-जाप ही मोक्ष पहुंचाता है, मोक्ष पर पंहुचा देता है. अब मोक्ष तक विकसित जब आदमी होता है तो उसके सारे, जब तक कष्ट दूर नहीं होते तब तक मुक्ति नहीं हो सकती. तो ये एक ऐसा ज्ञान प्रकट हो रहा है मेरे जैसे साधारण आदमी के माध्यम से. मैं भी आपके जैसा एक गृहस्थी आदमी हूँ भाई. कोई विशिष्ट आदमी नहीं, कोई महान आदमी नहीं. मैं ऊपर बैठ गया, आप नीचे बैठ गए, में बड़ा नहीं हो गया, आप छोटे नहीं हो गए. ये एक व्यवस्था चली आ रही है कि श्रद्धा के हिसाब से नीचे बैठो. तो इसमें दो तरीके हैं. देने-लेने कि किसी गुरु में सामर्थ्य नहीं है, मैं ये आपको आज बता दूं. जैसा आपका शरीर वैसा मेरा शरीर. मुझ में एक परिवर्तन आ गया है, नाथजी कि शरण में गया. आप में भी वो परिवर्तन आ सकता है, हर मानव मात्र में वो परिवर्तन आ सकता है. स्त्री-पुरुष में वो परिवर्तन आ सकता है. केवल ये अपने आपको समझने की जरूरत है कि आप क्या हो? मैं तो आपको अपने आप से इंट्रोडक्शन करवाउंगा कि आप क्या हो? आप ये शरीर नहीं हो. आप आत्मा हो जो अजर-अमर है. हमारे धर्म में कहा है गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती. अब मुक्ति कोई खिलौना है, गुरु के पास जाते ही, जो हाथ में पकड़ा देगा. भाई, वो तो एक रास्ता रास्ता बताता है कि इस मंजिल पर पहुँचने के लिए ये रास्ता है और वो केवल एक ही है नाम-जप. गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है कि “कलियुग केवल नाम आधारा, सुमरि-सुमरि नर उतरे पारा”. कलियुग में केवल ईश्वर के नाम से ही सारी समस्याओं का अंत होता है. मंत्र-दीक्षा का विधान देखिये. हठ-योग, सहज-योग, जप-योग, लय-योग कई तरह के योग हैं. मैं जिसकी दीक्षा दे रहा हूँ वह है सिद्धयोग, सिद्धयोग. इसे सिद्धयोग कहते हैं. शक्तिपात-दीक्षा. इसमें गुरु जो है ४ तरह से साधक को चेतन करता है. हाथ टच करे आज्ञा-चक्र पर, मूलाधार पर या फिर मंत्र से, या फिर नजर से भी शक्तिपात होता है. और चौथा है शिष्य जो ले जाता है, गुरु बैठा देखता रह जाता है. ऐसे तो बहुत कम होते हैं. जैसे एकलव्य ने ले लिया, कबीर साहब ने ले लिया. तो इस प्रकार से एक परिवर्तन आ रहा है. ईश्वर के नाम-जप से आ रहा है. ये कोई जादू नहीं है. कोई करिश्मा नहीं है. लोग दिखावा करते हें धार्मिक होने का दिखावा करते हैं. दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि हम देखो कैसे धर्मिक हैं. समझे. अब मैं कई दफे कह देता हूँ, अब कोई पूछे किस जाति किस धर्म के हो? कहने लगे जी, हिंदू हैं. कोई पूछ ले हिन्दू क्या होता है? योरोप के कई, मतलब वहाँ के जिज्ञासु लोग पूछे कि, व्हाट इज हिन्दुइज्म? तो वही घंटी बज रही है. मैं तो कहता हूँ पूर्ण मनुष्य का मतलब ही हिन्दू है. चाहे वह कोई जाति का हो, कोई धर्म का हो. हिन्दू धर्म मनुष्य के पूर्णता की बात करता है. महर्षि अरविन्द ने एक जगह लिखा है की “मैन इज ए ट्रांजिशनल बीइंग, ही इज नॉट फ़ाइनल बट ही विल बी”. तो मनुष्य परिवर्तनशील प्राणी है और वो पूर्णता प्राप्त करेगा. महर्षि की भविष्यवाणी है कि आगामी मानव-जाति दिव्य-रूप धारण करेगी. डिवाइन फॉर्म में बदल जायेगी. इससे विज्ञान बहुत परेशान है. पर एड्स कैंसर ठीक हो रहे हैं इसका क्या है जबाब हमारे पास? इसमें दो ही तरीके हैं भैया, नाम-जप और ध्यान. पहला जो नाम-जप जो गुरु देता है, उसको निरंतर जपना होता है. राउंड दी क्लोक. अब जप-विज्ञान में एक टर्म है अजपा-जाप, अजपा-जाप. भई आपके अंदर जो बैठा है वही जपना शुरू कर देगा. रैदासजी के भजन से स्पष्ट होता है अजपा क्या है. रैदास के गुरु ने बताया नाम जपो, तो जपने लग गया बेचारा. अब वो बंद ही नहीं होवे. तो रैदासजी परेशान हो गए. कहने लगे “अब कैसे छूटे नाम रट लागी” इस प्रकार आप जो बीमार हैं, कैंसर है, एड्स है, कोई भी असाध्य रोग है, ठीक हो रहा है. समझे नहीं समझे? महर्षि अरविन्द ने कहा है कि इस देश का उद्धार दो मंत्र करेंगे. पहला मन्त्र १९०६ में प्रकट हो गया. आज भी वंदे मातरम नहीं बोलने दिया जा रहा है. आई टेल यू फैक्ट है. और दुसरे के लिए कहा है वो संजीवनी मंत्र होगा. मैं जो दीक्षा दे रहा हूँ वो संजीवनी मंत्र है. मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि संजीवनी मैं क्या है आफ्टरआल. लक्ष्मण के तीर लगा शक्ति का, बेहोश हो गए, मूर्छित हो गए. हनुमानजी लाए संजीवनी बूटी, उससे वो होश में आ गए. चेतना भी आ गई. अगर मर जाते तो संजीवनी काम नहीं करता. तो आपको चाहे एड्स है, कैंसर है, हेपेटाइटिस “बी” है, ब्लड कैंसर है, कुछ भी है. मेडीकल साइंस न असाध्य कह दिया है. ये मंत्र आपने सुन लिया, तो मरोगे नहीं. एक केस यहाँ आया था. इस वरांडे में लेटा हुआ था, भंवरलाल नाम का. सन २००० कि बात है. मथुरादास माथुर होस्पीटल में एडमिट था, जोधपुर में ही. ड्रिप चढ़ रही थी. ड्रिप बंद हो गई. डोक्टोर्स ने कहा- ले जाओ. ये अब २-४ घंटे का मेहमान है. तो उसके छोटे भाई को किसी ने बताया कि यहाँ एक गुरूजी बैठते हैं. कहते हैं रोग ठीक होते हैं. नहीं मरा. शाम को गुरुवार को यहाँ ले आये. उसने मुझे बताया कि गुरुजी ना मैं बोल सकता था, ना आँख खोल सकता था, ना हिलडुल सकता था. इतनी शक्ति थी ही नहीं. सुन सकता था, समझ सकता था. वहाँ वरांडे में लेते आदमी ने नाम सुना और जपना शरू कर दिया, तो ३-४ दिन में कोमा से बाहर आ गया. और वो आदमी आज भी पूर्ण स्वस्थ है. ७ साल हो गए. तो ये एक ऐसा मंत्र है. शक्तिपात दीक्षा का एक सिद्धांत है- एक संजीवनी मंत्र है. इसके बारे में अरविन्द ने लिखा है कि वो मिस्टिक है, बहुत सीक्रेट है. समझे कि नहीं समझे? पर नोट यट रिवील्ड. अभी प्रकट नहीं हुआ है. तो मैं तो राधा और कृष्ण के मंत्र की दीक्षा देता हूँ भाई. वो कृष्ण की शक्ति है कि आपको जीवन दे देता है. वो कृष्ण जो है पूर्ण अवतार थे. उनके लिए कोई भी काम असंभव नहीं है. अब वो ठीक है कृष्ण के नाम से दुकानदारी चल रही है. आप भी जानते हो, मैं भी जानता हूँ. योग के नाम से जो बाज़ार लगा है, खूब बिकता है. योग के नाम से खूब बिकता है. वैस्ट में भी बिकता है. इस देश में ही नहीं बिकता है, अमेरिका में भी खूब बिकता है. खूब मंहगा बिकता है. तो इस प्रकार जो आपको नाम बताऊँगा उसको आपको जपना है हर समय. दूसरा ध्यान. अब हमारा योग दर्शन कहता है जो ब्रह्माण्ड में है वो सारा पिण्ड में है जो पिण्ड में है वो ही ब्रह्मांड में है. जब सारा ही ब्रह्माण्ड आपके अंदर है तो सारे देवता और दानव आपके अंदर हैं. एक कैंसर का डाक्टर आ गया था मेर पास २००० के आसपास, बीकानेर में, आर.के चौधरी. आजकल वो अजमेर में है होस्पिटल सुपरिंटेंडेंट. मेने कहा- डाक्टर साहब, कैंसर ठीक क्यों नहीं होता? कहने लगा- गुरूजी पता ही नहीं इसकी जड़ कहाँ है? मेने उसको कहा- बी.बी.सी. में एक न्यूज़ आई थी कि शारीर के कुछ ऐसे जीन्स विचलित हो जाते हें, मतलब कोई ऐसी शक्ति उनको आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करती है और इस प्रकार उसका आदेश मानकर सेल जो है डरने लगता है, मरने लगता है और आदमी मर जाता है. तो कहने लगा- बात ये फेक्ट है. तो अब सुने मेरी बात सुने, हम जो कर रहे हैं भई. हम कहते हैं देव और दानव अंदर हैं और किसी कारणवश दानव प्रभावी हो गया. रावण पॉवर में आ गया. उसका तो काम अपना मारना काटना. उसने अपना काम शुरू कर दिया. उसी आदमी में जिसमें रावण प्रभावी हो गया अगर राम प्रभावी हो जाये तो? इसका कहना नहीं मने तो? फिर कहने लगा- कैंसर क्योर होगा. मैंने कहा- ये ठीक है, मैं जानता हूँ आप आसानी से नहीं मानोगे. फिर उसके बाद से मेने शुरू कर दिया कि राम को चेतन करो, रावण को मारो. ये आदमी के अंदर जो रावण राज, तामसिक व् सात्विक वृत्तियों का द्वंद्व अनादि कल से चला आ रहा है. आज रावण प्रभावी है पूरी दुनियां में. पहले-पहले एक बोहरा जी आये थे फलोदी से, उनको हेपेटाइटिस “बी” और ब्लड कैंसर था. गाँधी मैदान में प्रोग्राम होता था. आश्रम नहीं था. उस वक्त तो वो आ गए. और २२ वें दिन रिजल्ट नेगेटिव आ गया. और वापस मुंबई चले गए. फिर मेरे शिष्यों ने बताया. हेपेटाइटिस “बी” कैसे ठीक हो गया? उन्होंने कहा जी ये तो पोजिटिव रिपोर्ट है. नेगटिव रिपोर्ट लाओ नेगटिव. बॉम्बे फोन किया गया उनको. उन्होंने कहा जी सारा मामला ही चोपट हो गया. फ्लेट बिक गया. सामान बिक गया. मेरे पास तो नहीं है. इसके टेस्ट के लगते हैं ५००० रुपये. आप ही भिजवा दो. अब हमारे ना तो लेते हैं ना देते हैं. तो मेने कहा- भाई, रहने दे. आज वो आदमी है नेगटिव में जिन्दा. अभी है. इंटरव्यू हुआ था पिछले प्रोग्राम में. मगर वो नेगटिव रिपोर्ट नहीं है. ५००० रुपये ना वो कर सकता है ना में दे सकता. तो इस प्रकार हरेक रोग ठीक होता है. हेपेटाइटिस “बी” तो ऐसी बीमारी है कि डॉक्टर्स ने कहा, बॉम्बे में मुझे डॉक्टर्स ने कहा जी विश्व में करोडों आदमी इससे ग्रसित हैं. हम जानते हैं ईश्वर नहीं बचा सकता. वो ठीक हो गया. इस प्रकार सारे रोग ठीक हो जायेंगे. एड्स वाले घबराइयेगा नहीं. एड्स का आदमी अगर, जो नाम बताऊँगा वो जपना शुरू कर देगा तो ४५ वें दिन में नेगटिव हो जायेगा. हो रहे हैं. एक नहीं, हजारों हो रहे हैं. अब तो मेने रिपोर्ट्स लेनी बंद कर दी हैं. पड़ीं हैं ढेर सारी रिपोर्ट्स पूरे देश की, कम से कम ७-८ हज़ार लोगों की. अब वो डोक्टर्स ने, कई डोक्टर्स मेरे शिष्य हैं. मेने कहा जी आप बोलो. उन्होंने कहा- हम तो बोल कैसे सकते हैं? डोक्टर्स के समाज को छोड़ कैसे सकते हैं? एक डॉक्टर ने बोला गुरूजी, मुझे सन्देश दिया गुरूजी, ये भर घटने-बढ़ने की आप कहते हो ना, आज भंवरलाल जो है ४६ के.जी. हो गया. पहले ६५ के.जी. वजन था. और जो एड्स डिक्लेअर हुई और चलते ४६ के.जी. आ गया. आज वो ९० के.जी. का है. तो एक डॉक्टर ने मेसेज किया गुरूजी आप एच.आई.वी. वाइरल लोड टेस्ट करवा लो. वो अगर ५० से नीचे चला जायेगा तो फिर एड्स खतम. अब मैं क्या जानूँ, सी.डी.-४, सी.डी.-८ क्या होता है? एच.आई.वी. वाइरल लोड क्या होता है? मैं डॉक्टर तो नहीं हूँ भाई. ये तो उनकी टर्म्स है. मैंने वाइरल लोड शुरू करवा दिया वो २० से भी नीचे आ गया. बॉम्बे में एक लड़की का हसबंड मर गया. जे.जे. हॉस्पिटल में. वो टेस्ट कराने गई. मेरे से दीक्षा ली है. ४-५ महीने बाद टेस्ट करने गई. डॉक्टर ने ३ बार खून लिया तो उसने कहा- डॉक्टर साहब, आप तो एक बार ही खून लेते हो. कहने लगे, तेरा हसबंड तो एड्स से मारा था ना. कहने लागी हाँ. तो तेरे तो है ही नहीं एड्स. तो एम्स में सारी रिपोर्ट्स जा रही है. मगर सरकार इसलिए परेशान है कि इसको कैसे हाईलाइट करें. मतलब विज्ञान के पास स्पिरिट नाम कि कोई चीज ही नहीं है. मैटर ही मैटर है. अब जो मुझमें परिवर्तन आ गया, देखिये अगर मुझ में परिवर्तन नहीं आता तो आपको कुछ भी नहीं दे सकता था. नाम-जाप ४२ साल कि उम्र से शुरू किया था ये नाम जपना. और आज ८१ पूरे हो जायेंगे २००७ को, ८२ में लग जाऊंगा. तो इस कारण से मुझमे जो बदलाव आ गया और मैं आपको बताऊँ आप में भी आ जाता है, मैं कुछ नहीं दूँगा आपको. कोई कुछ नहीं दे सकता, समझे नहीं समझे? आपको एक तरीका बताऊँगा उसका नाम जपोगे तो अन्दर वाला डॉक्टर चेतन हो जायेगा. मैं पेशेन्ट को कहता हूँ, डॉक्टर को भी कहता हूँ कि बाहर जो बैठा है डॉक्टर, उसका इलाज लेते रहो. मैंने साइंस को कभी इंकार नहीं किया, साइंस एक सच्चाई है मगर अभी अपूर्ण है. ये सत्य है, पूर्ण नहीं है. सिकन्दर के गुरु थे अरस्तू, अरस्तू. वो अपने टाइम के बहुत बड़े वैज्ञानिक, उन्होंने कहा कि “विज्ञान एक अपूर्ण दर्शन है, दर्शन पूर्ण विज्ञान है. तो हमारा ये दर्शन पूर्ण विज्ञान है. विज्ञान तो एक सप्लीमेंटल चीज दे रहा है. विज्ञान का विरोध मैंने कभी नहीं किया. मगर मैं कहता हूँ एक डॉक्टर अंदर भी बैठा है. अंदर वाले डॉक्टर ने बाहर वाले डॉक्टर को जो बता दिया वो उतना ही जानता है. अभी उसके पास बहुत कुछ है देने को. मैं तो आपके अन्दर बैठे उस डॉक्टर से परिचय करवा दूँगा भाई. इंट्रोडक्शन करवा दूँगा, दोस्ती आपको करनी पड़ेगी, वो काम आपका है. मतलब उसका नाम निरंतर जपना पड़ेगा. तो नाम जाप से क्या है आपकी कुण्डलिनी जग जाएगी. कुण्डलिनी जिसे आप बाहर पूजते हो देवी के रूप में, राधा कह दो, अम्बा कह दो, दुर्गा कह दो, पार्वती कह दो, सीता कह दो. आपने वो नाम अलग-अलग रखे हैं. हमारे योग में उसको कह दिया कुण्डलिनी, जो रीढ़ की हड्डी के आखिरी में सेक्रम होता है छोटा हिस्सा, उसमें साढ़े तीन आंटा लगाकर सोई रहती है और अपनी पूँछ अपने मुंह में दबाए रखती है. वो चेतन होकर के ऊपर उठने लग जाती है. वो पृथ्वी तत्व है, मदर ऑफ यूनीवर्स है वो अपने मालिक के पास यहाँ (सहस्रार) पहुचने के लिए ऊपर उठेगी. जागृत होकर सीधी खड़ी हो जाएगी और ऊपर उठने की कोशिश करेगी. अब ऊपर उठे कैसे? पीछे से कोई धक्का दे तो ऊपर उठे ना. तो योग में ५ प्रकार के वायु होते हैं. प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान. हरेक वायु अपने-अपने शरीर में अलग-अलग काम करता है. अपान वायु, नाभि से नीचे-नीचे के डिस्चार्ज को बाहर फेंकता है. जब तक अपान वायु ऊपर ना उठे, कुण्डलिनी को धक्का ना दे तब तक ऊपर नहीं उठेगी. हमारा धर्म पूर्ण साइंटिफिक है. राकेट ऊपर जाता है. आप देखते हो नीचे स्पार्क होता है. इसी तरह का पुश उसको लगना चाहिए. इससे पहले ३ बंध लगते हैं, तीनों बंध अपने आप लगेंगे, आपको कुछ नहीं करना. आप तो केवल यहाँ (आज्ञाचक्र पर) मुझे देखो आज्ञाचक्र पर और जो नाम बताया वो जपो. बस इससे आगे आपकी ड्यूटी नहीं है. और इससे कुछ नहीं परिवर्तन होता तो मैं तो कहता हूँ भाई, दूसरा गुरु देखो. गुरु बनाना कोई फोर्मलिटी नहीं है. गुरु दूसरा जन्मदाता है, उससे दीक्षा लेकर अगर वही करो जो पहले कर रहे थे बाद में करो तो गुरु का मतलब क्या हुआ? क्या किया? गुरु बनाना कोई फोर्मलिटी नहीं है. हांलाकि इस वक्त ये ऐसा प्रोफेशन है कि इसमें सिर्फ आशीर्वाद देते हैं गुरु, लेना-देना नहीं है, ठीक है, बदनाम हो गया गुरु. गुरुडम एक बदनाम पेशा है. कहीं कोई गुरु आया तो पूछेगा, तो बात करेंगे, बोलेंगे नहीं, कहेंगे कलेक्शन करना होगा और क्या है, कमी पड़ गयी होगी रूपये-पैसे की. इसके अलावा कोई मान्यता नहीं है, ये बात फेक्ट है. और आज तो आप देख रहे हो ओपन में फीस लगती है. एंट्री फीस, अलग-अलग मंत्र की अलग-अलग फीस. पता नहीं क्या-क्या धंधा है. तो मैं जो आपको बता रहा हूँ इसमें धन का जोर कोई काम नहीं करेगा. आज एच.आई.वी. पॉजिटिव को एक अरब रुपया देकर भी नेगटिव नहीं करवा सकते, और हो रही है इस देश में. दोनों डॉक्टर काम करेंगे तो कोई रोग असाध्य नहीं है भैया. ये संजीवनी मंत्र है, इसको जपो. आप सुन रहे हो, अभी जीवन है, चाहे एड्स के बीमार हो, चाहे कैंसर के बीमार हो, चाहे कोई बीमारी हो, सुन रहे हो, अभी डैड नहीं हुए हो तो मरोगे नहीं इस जीवन में, उस बीमारी से जिसको, डोक्टोर्स ने असाध्य कह दिया. १६ साल ये कम कर रहा हूँ १६ साल से. और हजारों लोग ठीक हो गए और एक बात और बताऊँ, मेसेज जो जा रहा है उससे मेरी तस्वीर से योग हो रहा है, तस्वीर से योग हो रहा है. मैं साइंस वालों को कह कर आया हूँ अमेरिका में, कि ये मेरी तस्वीर है, मैं तो भला-बुरा कर दूँ, मेरी तस्वीर तो निर्जीव मैटर है. इससे योग होकर ठीक क्यों हो रहें हैं लोग. इससे क्यों ठीक हो रहे हैं? अमेरिका में ध्यान करती हैं औरतें मेरी तस्वीर का, तो योग हो जाता है अपने आप, एक नहीं हजारों कर रही हैं. तो एक ये एक ऐसा विचित्र परिवर्तन मुझ में आ गया. बताऊँ देखिये क्या आ गया. मेरे को जो ये आराधनाये करनी पड़ गईं, परिस्थितियों ने मजबूर किया. लोगों ने कहा आपको मारकेश की दशा है मारकेश की. मैं नहीं जानता था मारकेश क्या होता है. पुछा तो कहने लगे ये होता है. मैंने कहा-ये तो सभी को होता है. कहने लगे बचा जा सकता है. कैसे? कहने लगे, गायत्री जपो. तो गायत्री का सवा लाख मंत्र जपा. मैंने हर मंत्र के पीछे आहुति दी हवन-कुण्ड में. उससे एक प्रकाश पैदा हो गया मेरे शरीर में. पहले मैं नहीं जानता था गायत्री का अर्थ क्या होता है. अब तो समझता हूँ उस दिव्य प्रकाश को अपने अन्दर धारण करने की प्रार्थना है गायत्री मंत्र. अन्दर बॉडी जो है ट्रांसफोर्म हो गई. भई आज तो नहीं उठाना है. आगे तो आँख खुल गई और ध्यान लग गया तो क्या देखता हूँ मेरे शरीर में कोई ऑर्गन नहीं दिख रहा था, ना लीवर दिख रहा है, ना तिल्ली, ना हार्ट, ना ब्लड सर्कुलेशन, न किडनी. मेने कहा ये ऑर्गन्स कहाँ गए? ऑर्गन्स कहाँ गए? एक प्रकाश स्तम्भ शरीर कैसे बन गया? मेने कहा- दिखता तो आँख से है ये अन्दर प्रकाश? बड़े आश्चर्य की बात, फिर उसमें एक भँवरे की गुंजन सुनाई दी पेट में. उसपे कंसन्ट्रेट हुआ तो गायत्री मंत्र जपा जा रहा है नाभि से, कंठ से नहीं, नाभि से, जैसे साईकिल की चैन चलाते रहो. कोई ब्रेक नहीं कोई स्टॉपेज नहीं. इसी तरह से चलता रहा, चलता रहा. और बहुत देर तक सुनता रहा. समझे नहीं समझे. फिर सुबह का टाइम था, नल के पानी की आवाज़ से ध्यान भंग हो गया. फिर बहुत आँख बंद की, देखा, कुछ नहीं हुआ. ३-४ महीने से एक ही रत लगाये हुआ था तो ख्याल रह गया. लोगों ने बताया- सिद्धि हो गई है, तो मुझे कहा गया, इसका तांत्रिक प्रयोग करो. क्यों तो धन्धे में खूब लाखों रूपया... हमारा भी भला हो जायेगा. फिर मेरे समझ आ गई, कुछ गड़बड़ तो हो गई. तो मैंने कहा- भैया ये काम तो बहुत महंगा है. सोना दो और लोहा लो. ये मैं नहीं करूँगा. आखिर समझाने से नहीं माना तो एक सर्टिफिकेट देके गए, ये जाट है, इसमें अक्ल नहीं है. समझे? फिर मैंने कहा- मन्त्रों से ऐसा होता है. स्वामी विवेकानन्दजी आ गए, उसको पढ़ा. गंगाईनाथजी को गुरु बना लिया. जामसर में बैठते थे. समझे नहीं समझे? आज भी बरसी होती है हर साल जिस दिन डेथ हुई थी. उसको बरसी बोलते हैं. अभी है ३ जनवरी को, जामसर में है. कोई जाना चाहे तो जा सकता है. मुझे तो उसीने दी है जामसर वाले ने. मैं देखिये नौकरी करता था पहले, रेल्वे में हेड-क्लर्क था. इन्होने जाते हुए आदेश दे दिया, बेटा आगे का काम तेरे को करना है तो प्री-मेच्योर रिटायरमेंट ले लिया ७ साल पहले. अब इसकी नौकरी है गंगाईनाथजी की, पहले रेल की नौकरी. भई डिपार्टमेंट बदला है, सही बात तो यही है. समाधि पे प्रार्थना करके आया, पेट वाला मामला तो चालू रहे, बाकी धन-दौलत मुझे नहीं चाहिए. तो इस प्रकार एक परिवर्तन आ गया मुझमें, वो आप सब में आ सकता है. नाम-जाप करोगे, कुण्डलिनी जागृत हो जायेगी. अच्छा ३ बंध लगते हैं, ज्यों ही कुण्डलिनी नाभि से ऊपर उठी, दूसरा बंध लग जायेगा. इसको कहते हैं उड्डयान बंध. फिर ऊपर उठते-उठते ये कंठ-कूप है, कंठ का खड्डा. यहाँ से ऊपर उठी तो तीसरा बंध लग जायेगा इसे कहते हैं जालंधर बंध. अब बाकि जो हिस्सा रह गया रीढ़ की हड्डी का उसमें हर तरह का मूवमेंट संभव नहीं है तो प्राणायाम शुरू होता है. आज तो लोग प्राणायाम पहले ही शुरू करवा देते हैं. प्राणायाम तो अंतिम क्रिया है. प्राणायाम तो जब पूर्ण कुम्भक हो जाता है, कुंडलिनी आज्ञाचक्र से ऊपर उठ जाती है तो साधक समाधिस्थ हो जाता है. समाधि लगे बिना मृत्यु का रहस्य पता नहीं लगता. मेरे गोडे में दर्द है तो दर्द की तरफ ध्यान रहेगा. आज्ञाचक्र से ऊपर निकलने का प्रश्न ही नहीं है. तो हमारे नाथ संप्रदाय में ९ नाथ आज भी अमर हैं. मछिंदरनाथजी आदि गुरु थे कलियुग के, उन्होंने इस योग के बारे में कहा है कि ये भारतीय योग-दर्शन में जिस योग का वर्णन है वो वेद-रुपी कल्पतरु का अमरफल है. वेद-रुपी कल्पतरु का अमरफल है, इससे साधक के त्रिविध-ताप शांत होते हैं. आदि-दैहिक, आदि-भौतिक, आदि-दैविक. आपकी अंग्रेजी भाषा में फिजीकल डिजीज, मेंटल डिजीज, एंड स्पिरीचुअल डिजीज. फिजीकल और मेंटल को तो डॉक्टर टेकल करता है. स्पिरिट का मामला आते ही पीछे हट जाता है. मैनें वैस्ट में यही कहा है, मेटर प्लस स्पिरिट, जभी पर पड़ेगी नहीं तो नहीं. तो इस प्रकार जो योग होगा उससे आपके सारे शारीरिक रोग ठीक हो जायेंगे. गठिया, अस्थमा, डायबिटीज़ पता नहीं क्या-क्या बीमारियाँ हैं शारीरिक, वो सब ठीक हो जायेगीं बिना दवाई के. अच्छा कई लोग कहते हैं, लें दवाई कि ना लें. मेरे जो १० साल का अनुभव है, उसमें ये है कि दवाई को लोगे और साथ में ये भी जपोगे तो आस्था २ जगह डिवाइड हो जायेगी, तो टाइम लगेगा ठीक होने में. ३-४ महीने लग सकते हैं. और केवल मंत्र पर बेस हो जाइये ४५ दिन में ठीक हो जायेंगे. हो रहे हैं. रोगी कि शक्ति पर निर्भर है, बिल्कुल ही बैठ गया है तो दवाई चलने दो और अगर चलता-फिरता है तो कोई जरूरत ही नहीं है दवाई की, ठीक हो जायेगा. चाहे कोई रोग हो, ये संजीवनी मंत्र है. अभी जिन्दा है, इस रोग से मरोगे नहीं. मैं ये चेलेन्ज १०-१५ साल से दे रहा हूँ और सारे ठीक हो रहे हैं. मगर गुरु मानना पड़ेगा. मैं आपको बताऊँ, ये नाथजी को नहीं मानता तो मेरे पास भी कुछ नहीं था. ये नाथजी की कृपा से हो रहा है भाई. अब वो अरविन्द ने कहा है कि गुरु अगर मंत्र देता है शिष्य को, वेदों का देता है, उपनिषदों का देता है या ईश्वर के नाम का देता है तो उसकी आवाज़ में ये ताकत होती है. अब आप सुन रहे हो जो पहले-पहले आये हो जो आप लोग, विश्वास नहीं हो रहा कि, होगा तो होगा कैसे? ये आवाज को आ रही है, ये एक एनलाईटण्ड बॉडी में से आ रही है. एक ऑर्डिनरी बॉडी में से नहीं आ रही है. एनलाईटण्ड हो गई, ठीक है, पूर्व-जन्म के संस्कारों से ही हो गई समझो, तो फिर ८४ में कृष्ण कि सिद्धि हो गई. दोनों सिद्धि. अरविन्द ने कहा है एक आदमी, देखिये हमारे यहाँ आराधना के दो तरीके हैं, एक तो सन्यासी से दीक्षा लेकर के मंत्र-जप करते हैं, दूसरे मंदिर जाने वाले, तुलसी चरणामृत लिया, कृष्ण के मंदिर गए और दोनों मुक्ति पा रहे हैं, मुक्ति पा रहे हैं. मुक्ति के लिए असेंड करना पड़ता है. यहाँ पहुंचना पड़ता है, सहस्रार में, जहाँ मालिक बैठा है. अरविन्द ने कहा है ये विकास अगर एक आदमी में हो जाय, मतलब दोनों सिद्धियां, मतलब गायत्री की और कृष्ण की, दोनों सिद्धियां एक ही जगह में, एक ही फिजीकल बॉडी में हो जाये तो फिर मानव मात्र के लिए समस्याओं का अंत हो गया पूरी मानव जाति के लिये. एक हो गया वैसा हर मानव हो सकता है. आप सब हो सकते हो. कोई वंडर नहीं है. कोई आश्चर्य नहीं है. अब आश्चर्य इसलिए कि आज तक ऐसा हुआ नहीं. समझे नहीं समझे? और फिर हो भी रहा है मेरे जैसे एक साधारण आदमी के पास, जिसके पास कोई साधन नहीं है. तो आज तो धन का धन का बोलबाला है, मगर धन के बल से ठीक होता तो आज अब तक अमेरिका सारे रोग ठीक नहीं करवा देता. मेरे पास क्यों आ रहे हैं? बहुत लोग आ रहे हैं. बॉम्बे से आ रहे हैं, गुजरात से आ रहे हैं. पूरा देश बॉम्बे जाता है इलाज के लिए, वो लोग मेरे पास आ रहे हैं क्योंकि बॉम्बे में मेरे बहुत से प्रोग्राम हुए हैं. तो इस प्रकार नाम-जप और ध्यान से, ध्यान-जप करो तो योग होगा और योग होने से सारे शारीरिक रोग खत्म हो जायेंगे. छोटी सी बीमारी है थायरोइड, ७-८ दिन में ठीक हो जाति है, नहीं तो जीवन भर दवाई लो डॉक्टर की. महीने में २-३ विजिट देओ. कभी एक गोली, कभी आधी, कभी डेढ़ गोली. यहाँ तो ७-८ दिन में गोली बंद. ये दो तरह का होता है हायपर और हाइपो. ये कोई मिरेकल नहीं हो रहा है. ये आदमी में होने वाला ड्यू विकास है भाई. हमारा ऋग्वेद कहता हैं शरीर की रचना ७ प्रकार के सैल से हुई है, उसमे आत्मा है, फिर वैदिक ऋषि अलग-अलग सैल्स की बात करते हैं. पहले वो मेटर से शुरू करते हैं, अन्न से बनने वाला कोश, अन्नमय-कोश, प्राणमय-कोश, मनोमय-कोश, फिर विज्ञान मय-कोश. विज्ञानमय-कोश तो पश्चिम ने खूब चेतन कर लिया. मैं इसलिए गया था यू.एस., मैने कहा- केवल विज्ञान से पार नहीं पड़ेगी. ऊपर वाले ३ कोश चेतन होंगे मानव-जाति में सत्-चित-आनंद. जिसे हम कहते हैं सत्+चित+आनंद, सच्चिदानन्द. भगवान कृष्ण को सच्चिदानन्द कहते हैं. सत्-चित-आनंद, मैं उसी के नाम की दीक्षा देता हूँ. राधा-कृष्ण के नाम की दीक्षा देता हूँ. तो ये विकास जब आ जायेगा मानव-जाति में, तब फिर कोई रोग असाध्य नहीं रहेगा. मैं ये प्रैक्टिकल कर रहा हूँ, पहले तो कहता था. कहना तो कोई मानता नहीं है, अब कहना बंद कर दिया, प्रैक्टिकल करके बता रहा हूँ. आ जो अब फैसला हो जायेगा. एक भी पैसा नहीं लगेगा. कैंसर एड्स ठीक हो जायेगा फ्री में. समझे नहीं समझे? मगर गुरु मानना पड़ेगा. और मैं बताऊँ उस मंत्र को ही जपना पड़ेगा. उसमे एडीशन अल्टरेशन नहीं चलेगा. समझे नहीं समझे? कोई ओम आगे लगा लेता है कोई नमः पीछे लगते हैं. ये नहीं है. ये आदिगुरु शंकराचार्य ने जिस अद्वैत दर्शन की बात कही है, प्रूव किया है अद्वैत-दर्शन, मतलब क्या है आप जानते हो? दो है ही नहीं, एक ही परमसत्ता अंदर बैठी है. एक ही परमसत्ता. राम सबके अंदर बैठा है, घट-घट का वासी है, ये अद्वैतवाद है. मैं इसको मूर्तरूप दे रहा हूँ. ये तो आदिगुरु शंकराचार्य पहले से प्रूव कर गए. मगर अब बीच में हमारी संस्कृति थोड़ी पतन की तरफ चली गई थी इसलिए ज्ञान लोप, लुप्त हो गया, फिर वापस सरफेस में आ गया. और पूरे विश्व में फेलेगा तो ये तीनों कोश चेतन हो जायेगे. इसी को ध्यान में रखते हुए अरविन्द ने कहा है आगामी मानव-जाति दिव्य-शरीर रूप-धारण करेगी. इस प्रकार जो शारीरिक रोग हैं वो इससे ठीक हो जायेगे इस योग से बिना दवाई के. दूसरे होते हैं मानसिक रोग. ८०% बीमारियाँ मनोरोग से होती हैं. मानसिक टेंशन से होती हैं. डॉक्टर के पास मानसिक टेंशन को खत्म करने के लिए कोई दवाई नहीं है. कोई एक फोर्मुला नहीं है जिससे टेंशन खत्म हो जाये. नशे की दवाई देते हैं. ४-५ घंटे असर रहता है. जब तक असर रहा, सुख-शांति रही और असर खत्म हुआ तो रोग वैसा का वैसा और टेंशन वैसा का वैसा. मानसिक तनाव खत्म नहीं कर पा रहे डॉक्टर. वो नशा वास्तव में एक दवाई है. ये हम भी मानते हैं. समझे नहीं समझे? मगर वो नशा मैटर का नहीं होना चाहिए, स्पिरिट का होना चाहिए. समझे नहीं समझे? वो नशा स्पिरिट का होना चाहिए. तो मैं आपको मंत्र दूँगा वो कृष्ण के नाम का उससे आपको आनंद आना शुरू हो जायेगा. अब वो हमारे संतो ने इसको नाम-खुमारी कहा है, नाम-खुमारी. नानकदेवजी महाराज ने कहा है- भांग-धतूरा नानका उतर जाये परभात, भांग-धतूरा ले के देख लो, रात भर सोओ, सुबह नशा साफ़. नाम-खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन-रात. भांग-धतूरा नानका उतर जाये परभात, नाम-खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन-रात. यही बात कबीरदास ने कही है. नाम अमल उतरे ना भाई, नाम का नशा उतरता नहीं, और अमल छिन-छिन चढ़ उतरे, नाम अमल दिन बढे सवाया. तो गीता में भगवान ने इसको आनंद कहा है, दिव्या आनंद कहा है, अक्षय आनंद कहा है, अनंत आनंद कहा है, अद्वितीय आनंद कहा है, ईश्वर ध्यान-जनित आनंद कहा है. गीता में ५ श्लोक हैं. ५वें अध्याय में २१वां श्लोक, छठे अध्याय में ४ श्लोक हैं-१५,२१,२७,२८ समझे नहीं समझे? तब वो नाम वाला नशा उतरता नहीं है, डाक्टर वाला उतर जाता है, इसलिए रोग खतम हो रहे हैं. इसलिए टेंशन से रिलेटेड सारे रोग इस नाम के नशे से ठीक हो जायेंगे. शारीरिक रोग ठीक हो गए कसरत से, जो योग कुण्डलिनी करवाएगी. पहले आपका आसन बदलेगा फिर बंध लगेंगे, फिर कुण्डलिनी ऊपर पहुंचेगी. यहाँ से ऊपर गई तो समाधि लग जायेगी. पूर्ण रोग मुक्ति के लिए समाधिस्त होना बहुत जरूरी है. तो इस प्रकार मानसिक रोग खतम, शरीरिक रोग खतम, नशे छूट जाते हैं. अब नशे छूट रहे हैं, वैस्ट को बहुत परेशानी है नशे से, वो लोग मुझे कहते थे, कहने लगे- हम लोग तो भगवान-वगवान से डरते नहीं हैं, ये हेरोइन मारेगी, छूटती नहीं. अफीम, बीढ़ी, सिगरेट तक नहीं छूटती, जोर लगा लिया. तो हमारे यहाँ सब छूट जाती है चंद दिनों में छूट जाती है. तो ये सब वृत्ति बदलने से होता है. आपको मालूम है, त्रिगुणमयी-माया से सृष्टी की उत्पत्ति हुई. रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण. तो तामसिक ग्लैंड डिमांड करती है अंदर नशा, मीट, शराब. वो डिमांड जो है उसको साइंस खत्म नहीं कर पाती, उससे छीनती है. उस छीना-झपटी में वो मर जाता है. अफीम का बीमार है वो मर जायेगा. किराडा एक गांव है हिसार हरियाणा का. वहाँ एक आदमी इन्ट्रावीनस हेरोइन के इन्जेक्शन लेने लग गया. लगते-लगते रोज के १०-१२. अपने आप लगाने लगा तो घर वालों को पता लगा, एम्स ले गए, उन्होंने कहा जी- छुड़वा दोगे तो १० दिन में मर जायेगा, नहीं तो दो साल से ज्यादा जिन्दा नहीं रहेगा. वो मेरे पास आ गया. ५-६ दिन में ही सारी गोलियां-नशा वगेरह छूट गया. आज भी वो जिन्दा है. डॉक्टर कहते हैं हमारी साइंस तो कहती है उसको जीने का अधिकार नहीं है. आज भी जिन्दा है. हिसार में अपने कृषि फार्म में ट्रेक्टर चला रहा है. तो ये क्यों हो रहा है कि ये वृत्ति नहीं बदल सकते. स्वामी विवेकानन्दजी यू.एस. मैं स्पीच दे रहे थे, एक अमेरिकन ने खड़े होकर कहा किजी महाराज आप लंबा-चोड़ा लेक्चर दे रहे हो, आपके धर्म में तो शाकाहारी-मांसाहारी बड़ा लफड़ा है, हमारे में तो सारे मीट शराब खाने वाले लोग हैं. तो स्वामी जी ने कह दिया चलती स्पीच में- यू नीड नॉट टू गिव-अप द थिंग्स, थिंग्स विल गिव यू अप. आपको उन वस्तुओं को छोड़ने कि जरूरत नहीं है, वस्तुएं आपको छोड़ जाएँगी, फिर क्या करोगे? कितने संत उपदेश देते हैं शराब मत पियो, अफीम मत खाओ, ये मत करो कोई मानता है क्या? इधर से सुनता है इधर से निकाल देता है. अब मेरी क्यों मानेगा? मैं कहता हूँ मत छोड़ो. शराब पीते हो तो एक कि जगह डेढ़ बोतल आज से ही शुरू कर दो, हाँ चेलेन्ज! मगर नाम को नहीं छोड़ो. आज तक नाम और नशा साथ नहीं चला. हजारों आदमियों ने छोड़ दिया. गिनती क्या है, लाखो में हो सकता है. बाड़मेर में अफीम छूट गई केवल मेरी तस्वीर से. अब साइंस वहाँ जाकर परेशान है, इसकी तस्वीर से ये सब क्या अडंगा होना शुरू हो गया. ये तो मुझमे परिवर्तन आ गया भाई इन्नोसेंट वे में आ गया. आज जो हूँ वो बनना नहीं चाहता था. मैं भी आपकी तरह एक गृहस्थी और बहुत ईगो वाला आदमी था. तो इस प्रकार नशा छूट गया, शारीरिक रोग खतम, मानसिक रोग खतम, भौतिक सुख तो मिल ही गया ना. अब भगवान कृष्ण ने कहा है गीता में चौथे अध्याय में, यदा-यदा ही धर्मस्य .... ग्लानिर्भवति.... वो युग आ गया. समझे नहीं समझे? वो युग आ गया. सारे संसार के धर्मो की एक जैसी स्थिति है, हमारी ही नहीं है. मैं इज़रायल गया था वाहन भी यहूदियों की यही हालत है. अमेरिका में वहाँ भी अमेरिकन्स की यही हालत है. सब यही कहते हैं धार्मिक क्षेत्र की बात, देखो जी ईसा ने किया, मूसा ने किया, मोहम्मद ने किया. हम कह रहे हैं राम ने किया, कृष्ण ने किया, बुद्ध ने किया. सब कह रहे हैं पीछे देखो पीछे, और हम देख देख रहे हैं पीछे और चल रहे हैं आगे. देख रहे हैं पीछे और चल रहे हैं आगे तो ठोकर नहीं लगेगी तो खड्डे में नीचे नहीं गिरोगे तो और क्या होगा? आगे चलने की कोई बात ही नहीं बताता. आगे तो मौत है ना. मौत क्या है? इसकी तो किसी को जानकारी, किसी को समय का मालूम ही नहीं है और ठोकरें खा रहे हैं और परेशान हो रहे हैं. सारे विश्व के धर्म, एक धर्म नहीं, सब धर्मों की यही स्थिति है. अब पातंजलि योग-दर्शन की बात कहने वाले लोग ये बताना भूल जाते हैं कि पातंजलि योग-दर्शन के तीसरे चैप्टर मैं विभूति-पाद, उसमें ऋषि ने कहा है कि यदि साधक को प्रातिभ ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तो उसे ६ सिद्धियों प्राप्त होती हैं, उसमें पहली सिद्धि है ध्यान और समाधि कि स्थिति में साधक अनलिमिटेड पास्ट-फ्यूचर को देखता-सुनता है. तीसरी आँख से जब तक दसवां द्वार नहीं खुलेगा तब तक ना कोई योग है ना कोई ध्यान है. इसलिए गुरु को यहाँ देखते हैं आज्ञा-चक्र पर, गुरु मन को अरेस्ट कर लेता है. गुरुत्वाकर्षण का नाम ही गुरु है. ये शरीर गुरु थोड़े ही है. ये तो अभी मर जायेगा २-४ साल में, गुरु तो आपके अंदर बैठा है. तो हमारे विज्ञान में टाइम एंड स्पेस कि कोई वेल्यु नहीं है. आप मेरे में हो, मैं आप में हूँ. आप जहां याद करोगे मैं प्रेजेन्ट रहूँगा. गुरु अगर वास्तव में गुरु है तो ओम्निप्रेजेन्ट है और ठीक है प्रोफेशनल है तो आशीर्वाद देदो, जो देदो ले जायेगा, राजी-खुशी हो जायेगा. चल रहा है. इसमें कोई बात नहीं है फीस भी ली जा रही है. अब एक एच.आई.वी. पोजिटिव होने के बाद में, मैने वैस्ट में भी कहा, एक अरब रुपये दे दूँगा अगर ठीक कर दो तो और मुफ्त में हो रहा है. तो इस प्रकार ध्यान-जप करोगे, ध्यान-जप करोगे, आपको अनलिमिटेड पास्ट-फ्यूचर दिखेगा, सुनाई देगा. विज्ञान भी मानता है जो शब्द बोला जा चुका, वो ब्रह्मांड में रहता है, कभी नष्ट नहीं होता. अगर आपके पास प्रोपर यन्त्र है तो आप उसे, ध्वनि को सुन सकते हो. हमारा योग कहता है, जब आवाज़ है, शब्द है तो बोलने वाला भी कोई रहा होगा. उसको बोलते देखा सुना जाना संभव है. वो तो रिप्ले दिखाते हैं क्रिकेट वाले. मैने कहा ये तो रिप्ले दिखा रहा है. डन इज डन. महाभारत हो गया वो अनडन थोड़ी होगा. (अब आगे क्या होना है)२, क्या होना है, वो आदमी देख सकता है. ये खुली चुनोती है विज्ञान को. समझे नहीं समझे? आ नहीं रहे वो सामने आ नहीं रहे. पश्चिम को बड़ा गर्व है, साइंस इज गोड. मैने यू.एस. में कहा- गलत, गोड इज साइंस. चुप हो गए. मैंने कहा- ईश्वर ने मनुष्य को पैदा किया, साइंस तो बाद में सीखी. तो साइंस को भगवान बना दिया. तुम्हारा भगवान ठीक क्यों नहीं कर पा रहा और हमारे वाला भगवान ठीक कर रहा है. तो इस प्रकार ध्यान कि स्थिति में आपने कई आदमियों कि मौत देख ली. अपने कई परचितों कि मौत देख ली, आया है उसको जाना है- २० में, ३० में, ५० में, १०० में. आप सब जानते हो, मारना तो पड़ेगा ही. बचने का कोई उपाय नहीं है फिर क्यों डरते हो? तो माया ने मौत को ऐसा डरावना बना दिया है, कोई उसको स्वीकार नहीं करता और वो किसी को छोड़ती नहीं. तो इस नाम-जप और ध्यान से माया का आवरण क्षीण हो जायेगा. मौत कि सच्चाई सामने आ जायेगी. अब जब देखोगे कि ये तो ऐसा वरदान है ईश्वर का, जो जन्म-मरण से छुटकारा दिलाता है. जल्दी आवे, डरोगे नहीं. कबीर ने कहा है इस बारे में- जा मरने से जग डरे मोरे मन आनंद, कब मरिहों कब पाईयों पूरण परमानन्द. तो ये स्थिति आपकी इसी जन्म में हो जायेगी. चाहे किसी जाति, वर्ण, धर्म के हो, कोई फर्क नहीं पड़ता. कश्मीरी शैव-सिद्धांत जो है, आजकल तो कश्मीर के नाम से लड़ाई-झगड़े हैं, कोई बात नहीं. कश्मीरी शैव्-सिद्धांत तो मानव मात्र में परिवर्तन कि बात करता है. मैं कश्मीरी शैव-सिद्धांत को मूर्त-रूप दे रहा हूँ. तो प्रातिभ-ज्ञान प्राप्त हो जायेगा. तो ध्यान कि स्थिति में आपने अपने कई परचितों की मौत देश ली, कैसे मरेगा? और वो मरते गए, मरते गए. १०-२०-३० एक आध होता है, एक्सेप्शन मान कर छोड़ दो. १०-२०-३० जैसे दिखे वैसे मरे तो? कल को ख्याल आ गया, तू कौनसा अमर रहेगा? तो दिख जायेगा कैसे मरोगे? एक्साक्ट. किस उम्र में मरोगे दिख जायेगा? अपने वाली दिखी तो घबरा गए. दुनिया मरे अपने क्या लेना-देना. आप वाली मौत दिखी तो फिर खोटे-खरे किये जीवन में वो सामने आ जाता है. दुनिया से तो छिपा लो अपने आप से कोई छिपा सकता है क्या? तुमने क्या किया क्या नहीं किया? और उसको देखकर जो खोटे कर तो लिए भगवान से प्रार्थना करता है तू तो दयालु है ना. सुना है तू दयालु है. मेरे से गलती हो गई. मैं नालायक था अब माफ कर दे, आइन्दा नहीं करूँगा. फिर वो उसको जैसे अर्जुन को चिड़िया की आँख दिखी बस वो आँख बंद करके प्रार्थना करता है प्रभु अब की बार बचा दे. पलक उलट के देखो, अन्दर ही बैठा है. सारा ब्रह्मांड अंदर है तो सारे ब्रह्मांड का रचियता अन्दर है, साक्षात्कार हो जायेगा. उससे साक्षात्कार हो जायेगा उससे, इसका मतलब, जन्म-मरण से पीछा छूट जायेगा. इस सायकल से आदमी मुक्त हो जायेगा. मेरा ऑब्जेक्ट ये है. मेरा ऑब्जेक्ट रोग है ही नहीं. मैने कभी नहीं कहा मैं ठीक करता हूँ रोग. ठीक करने वाला आपके अंदर बैठा है, बाहर वाले से आप इलाज करा लो अंदर वाले से जुड़ जाइये. फिर देखिये कैसे नहीं होता ठीक. हो रहे हैं तभी तो लोग आ रहे हैं. देश के कोने-कोने से आये हैं बेचारे. तो इस प्रकार कबीर ने, एक और उदाहरण दूँ कबीर का, कबीर ने कहा- जल-विच कुम्भ, कुम्भ-विच जल है, बाहर भीतर पानी, फिर कहता है, मिटटी का घड़ा है, पानी से भरा है, और पानी के अंदर रख दो तो घड़े के अंदर भी पानी बाहर भी पानी. जल-विच कुम्भ, कुम्भ-विच जल है, बाहर भीतर पानी, विघटा कुम्भ जल जल ही समाना, यह गति विरले ने जानी. कबीर कहता है मिट्टी का घड़ा गल जाये, फूट जाये, फिर बाहर वाला पानी अंदर वाला पानी एक. तो यह घड़ा लिए बैठे हो ना, यह तो आज नहीं कल गलना है भाई. अगर जन्म-मरण के चक्कर से छूटना चाहते हो तो फिर नाम-जप और ध्यान की, लगा दो नाम की झड़ी. यह नाम-जप मत छोड़ना, नाम चाबी है. नाम का नशा नहीं आएगा तो ध्यान नहीं लगेगा. तो नाम-जप हर समय जपो. उठते-बैठते, खाते-पीते, टट्टी जाते, पेशाब करते, कोई इसमें रोक नहीं है. हाँ, बोल के जपो, तो फिर नहाओ-धोओ, आसान पे बैठो, अगरबत्ती करो, करम कांड. मानसिक जप, गायत्री मंत्र, मानसिक जप कोई भी कर सकता है. वो एक तरीका है जीवन में परिवर्तन लाने का. अब मैं वो मंत्र बताऊँ आपको, उससे पहले थोड़ी मर्यादा बतादूं. महर्षि अरविन्द ने भी कहा है, मंत्र गुरु द्वारा दिया गया ही काम करता है. गुरु के मुँह से जो मंत्र दिया, वही काम करता है. किताब से पढ़ा हुआ असर नहीं करता. उसको भी मिस्टिक कहा है, सीक्रेट कहा है. गुप्त है वो. तो आप को वो मैं मंत्र दूँ उसको आप और किसी को नहीं बताओगे. और किसी को मतलब जो दीक्षा में शामिल नहीं हैं. अनपढ़ स्त्री-पुरुष साथ बैठे हुए बता सकते हो एक दूसरे को, मगर जो आया ही नहीं है, उसको नहीं बतायेंगे. और बता दिया तो क्या है, उसका तो कोई लाभ भी नहीं होगा. भगवान का नाम लेने से भौतिक समस्याओं का अंत नहीं होता तो नाम ही क्यों लो? मगर जिसने लिया ही नहीं वो उपदेश देवे और खुद उससे उल्टा चले, तब फायदा नहीं. तो मुझे करना पड़ गया, मुझे जपना पढ़ गया. राजी-खुशी तो मैंने भी नहीं जपा भाई. परिस्थितियों ने मजबूर किया और यहाँ तक पहुंचा दिया. तो गुरु का आदेश है की तेरे दरवाजे से खाली नहीं जाये. पात्र उल्टा रखोगे, मेरे बस की बात नहीं है. और गुरु के प्रति समर्पित भाव, और गुरु कुछ नहीं चाहता. अब वो मेरी आवाज में परिवर्तन आ गया, स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में स्पीच दे रहे थे तो किताबी ज्ञान तो बोल दिया, आज क्या बोलेंगे, चले गए स्टेज पे, बोलने लग गए. जब नीचे उतरे तो कहने लगे, “आज मैंने क्या बोला, मुझे नहीं मालूम, मगर तालियाँ हमेशा से ज्यादा बजी.” तब उन्होंने ने कहा “मैं तो भ्रम में था कि मैं बोल रहा हूँ. वो रामकृष्ण परमहंस बोल रहे थे.” तो मुझे वो भ्रम नहीं है. मैं नहीं बोल रहा हूँ. वो ये नाथजी बोल रहे हैं, गंगाईनाथजी. मैं तो एक माइक हूँ भाई. यह आवाज तो उनहीं की है. सीधी बात है. (गुरुदेव यहाँ मंत्र बताते हैं. मंत्र प्राप्त करने हेतु “मंत्र कैसे प्राप्त करें” लिंक को क्लिक करें) http://www.the-comforter.org/How_to_Meditate.html
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